मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से खास बातचीत
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत केंद्र सरकार पर बड़े हमलावर नेता के रूप में उभर रहे हैं। बरबाद होती जा रही वित्तीय व्यवस्था और देश के आर्थिक हालात को लेकर वे सरकार पर लगातार हमले कर रहे हैं। उनका मानना हैं कि केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था और सामान्य जीवन के प्रति डर का माहौल पैदा कर दिया है। और उधर से ध्यान भटकाने के लिए सरकार एनआरसी, सीएए और राष्ट्रवाद की बात कर रही है। मुख्यमंत्री गहलोत हाल ही में वे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई आए, तो इन्हीं मुद्दों पर राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार से उनकी लंबी बातचीत हुई। पेश है उसी के खास अंश –
इन दिनों आप केंद्र सरकार के प्रति कुछ ज्यादा ही आक्रामक हैं ?
देश के आर्थिक हालात बहुत चिंताजनक हैं। जीडीपी का कोई अता पता नहीं है, बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है, व्यापार उद्योग की हालत किसी से छिपी नहीं है। रोजगार नहीं है और रोजगार देनेवाले उद्योगपति व व्यापारी परेशान हैं। अर्थ व्यवस्था का कोई माई बाप ही नहीं है। सिर्फ पांच सालों में ही केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था का इतना नुकसान कर दिया है कि किसी की भी समझ से परे हैं कि आगे क्या होगा। आज पढ़े लिखे बेरोजगारों की संख्या सबसे ज्यादा हमारे देश में हैं, वे सबसे ज्य़ादा परेशान हैं। किसी को कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। किसी को भी आक्रामक क्यों नही होना चाहिए।
आप कह तो रहे हैं या वास्तव में हालात इतने खराब है?
सरकार अर्थव्यवस्था की हालत पर एक श्वेत पत्र लेकर आए। पता चल जाएगा। ये विदेशी निवेश की बात करते हैं, श्वेत पत्र जारी होने के बाद देखते हैं, कितना विदेशी निवेश आता है। वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारामन के पति भी आर्थिक हालत पर चिंता जता चुके हैं। साथ ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन सहित कई अर्थशास्त्रियों ने भी अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता व्यक्त की है। अधिकांश इकोनॉमिक इंडेक्स नीचे जा रहे हैं। केंद्र की नीतियों की वजह से अर्थव्यस्था अपंग हो गई है। सरकार मंदी, बेरोजगारी जैसे असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ध्यान देने के बजाय राष्ट्रवाद की आड़ में समाज को बांटने का काम रही है। देश ऐसे नहीं चलता।
तो, क्या केंद्र सरकार यह सब जान – बूझकर कर रही है ?
जी हां। आरएसएस का ‘छुपा हुआ एजेंडा’ है कि भारत को ‘हिन्दू राष्ट्र’ बनाना है। इसीलिए ये एनआरसी, सीएए, राम मंदिर और हिंदुत्व के बहाने देश में समाज को बांटने के लिए राष्ट्रवाद के नाम पर जहर घोलते रहते हैं। मेरा प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी भाजपा व आरएसएस से सवाल है कि आप आखिर इस तरह से समाज को बांट कर भारत में कितने देश बनाना चाहते हों ? समाजसेवा की लुकाछिपी का खेल खेलने के बजाय आरएसएस सीधे राजनीतिक पार्टी बनकर मैदान में उतरे और भाजपा का अपने में विलय कर ले। क्योंकि देश जान गया है कि बीजेपी तो मुखौटा है, सरकार तो संघ परिवार ही चलाता है।
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में आप क्यों है ?
विरोध क्यों नहीं करें। हमारा संविधान सर्वधर्म समभाव पर आधारित है। लेकिन फिर भी इनका बहुमत है, इसीलिए भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ ये कानून पास करा लाए है। यह भारत की जनता का अपमान और संविधान का उल्लंघन है। इसीलिए, तो देश भर में इसका विरोध हो रहा है। इनकी बात कोई सुन भी नहीं रहा है और मान भी नहीं रहा।
वे तो धर्म की बात कर रहे हैं, इसमें गलत क्या है ?
नहीं, वे धर्म की बात नहीं कर रहे, बल्कि धर्म के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। भारत सर्व धर्म समभाव की भावना का देश है। और किसी भी देश का निर्माण धर्म के नाम पर हो ही नहीं सकता। अगर ऐसा होता भी है, तो जो देश धर्म के नाम पर बनते हैं, वे स्थिर नहीं रहते। टूट जाते हैं।
लेकिन बीजेपी तो सीएए के बारे में जनजागृति अभियान चलाए हुए हैं ?
यह बहुत ही हास्यास्पद है। अगर इस विवादित कानून का कोई आधार होता तो ऐसे जागृति अभियान की जरूरत ही नहीं पड़ती। एक समय था, जब प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अपनी बात कहते थे, और पूरा देश उन्हें सुनता था। लेकिन अब सीएए के लिए उनकी पार्टी नेता और मंत्री जनता को समझाने, मनाने और जानकारी देने के लिए घर-घर जाने को मजबूर हैं। यह हास्यास्पद स्थिति है।
कह रहे हैं कि सीएए हर हालत में लागू करेंगे ?
अमित शाह जी इस कानून को समझाने हाल ही में जोधपुर आए थे। लेकिन वहां उन्होंने किसी को भी उन्हें नागरिकता देने का जिक्र नहीं किया। जोधपुर जिले में ही करीब 10 हजार से भी ज्यादा ऐसे लोग हैं, जो कई सालों से नागरिकता का इंतजार कर रहे हैं। मगर किसी को भी उन्होंने नागरिकता देने की बात ही नहीं की। उनका यह कानून केवल समाज को बांटने के लिए है। यह हो नहीं पाएगा।
भारत सरकार कानून लाई है, फिर भी क्यों नहीं होगा ?
ऐसा इसलिए नहीं होगा, क्य़ोंकि इसका अंजाम उनको पता नहीं है। देखिये, ये एनआरसी लाए, और अपनी पार्टी भाजपा के शासनवाले असम से ही शुरूआत की। करीब 900 करोड़ों रूपए खर्च कर दिए, लेकिन असम में 19 लाख ऐसे लोग निकले, जिनके पास नागरिकता का कोई सबूत नहीं था और उनमें से 16 लाख हिन्दू थे। फिर सरकार उन्हें कानून के जरिए क्यों नागरिकता नहीं दे रही है। देश जानना चाहता है कि सरकार आखिर इस मामले पर चुप क्यों है।
(12 जनवरी, 2020 को हुई बातचीत के खास अंश)