Arvind Kejriwal: कांग्रेस के नेता संजय निरुपम (Sanjay Nirupam) ने कहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा केजरीवाल को गिरफ्तार किए जाने के बाद निरुपम ने कई नेताओं का हवाला देते हुए कहा है कि आरोप लगने के साथ ही नैतिकता का तक़ाज़ा देकर पहले भी कई नेता तत्काल अपने पद से इस्तीफ़ा देते रहे हैं। निरुपम के इस सवाल पर बवाल मच गया है। सवाल यह है कि जब पूरी कांग्रेस पार्टी केजरीवाल के समर्थन में खड़ी है, तो उसके एक नेता को क्या इस तरह की बात कहनी चाहिए। सवाल यह भी है कि जब बहुत सारे कांग्रेस (Congress) नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, तो उस राजनीतिक नजरिये से ताजा हालात के मायने में निरुपम की इस प्रतिक्रिया को देखा जाए, तो क्या उनकी भी राहें पार्टी से अलग होने को है। माहौल संसदीय चुनाव का है, सवाल उम्मीदवारी का है और कांग्रेस में निरुपम के हालात भी कोई बहुत ठीकठाक नहीं है। शायद इसी कारण कांग्रेस की भाषा से इतर, निरुपम ने कहा है कि इस्तीफा नहीं देकर केजरीवाल, भारत की राजनीति में महज़ 11 साल पुरानी आम आदमी पार्टी (AAP) राजनीति के पूरी तरह अनैतिक हो जाने की एक मिसाल पेश कर रहे हैं।
पार्टी लाइन के विरोध में निरुपम का बयान?
आम तौर पर संजय निरुपम पार्टी की राह से अलग अपना मत कभी नहीं रखते। मगर, पिछले कई दिनों से उनका मन बी उखड़ा उखड़ा सा लगने लगा है। कमजोर होती कांग्रेस में चुनाव न जीत पाने की संभावना उनको सता रही है। संभवतया, इसीलिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी एक पोस्ट में कांग्रेस के नेता संजय निरुपम ने कहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से गुजर रहे हैं। इंसानियत के नाते उनके प्रति सहानुभूति है। लेकिन एक मुख्यमंत्री पर इस घोटाले में उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है, उनकी गिरफ़्तारी हुई है, वे हिरासत में है , मगर फिर भी मुख्यमंत्री के पद से अभी तक चिपके हुए हैं। निरुपम चाहति हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए।, भारत की यही समृद्ध परंपरा रही है। निरुपम के इस संदेश पर कांग्रेस में भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर पार्टी लाइन के विरोध में निरुपम कैसे चल रहे हैं।
राजनीति में नैतिकता की जो नई परिभाषा
कांग्रेस नेता निरुपम की पोस्ट जस की तस यहां प्रस्तुत है – दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से गुजर रहे हैं। इंसानियत के नाते उनके प्रति सहानुभूति है।कॉग्रेस पार्टी ने भी उन्हें सार्वजनिक रूप से समर्थन दिया है।लेकिन वे भारतीय राजनीति में नैतिकता की जो नई परिभाषा लिख रहे हैं,उसने मुझे यह पोस्ट लिखने के लिए मजबूर कर दिया।एक समय था जब एक हवाला कारोबारी जैन की कथित डायरी में अडवाणी जी,माधवराव सिंधिया और कमलनाथ जैसे नेताओं के नाम आए थे और उनपर रिश्वत लेने के आरोप लगे,तब उन्होंने नैतिकता का तक़ाज़ा देकर तत्काल अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।लाल बहादुर शास्त्री ने एक ट्रेन दुर्घटना पर इस्तीफ़ा दे दिया था।अभी हाल में जब वे इंडिया अगेंस्ट करप्शन का तमाशा पूरे देश को दिखा रहे थे तब यूपीए सरकार के मंत्रियों ने भ्रष्टाचार के छिछले आरोपों पर भी अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। कुछ महीने पहले की बात है,झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गिरफ़्तारी से पहले पद छोड़कर एक नैतिक आचरण पेश किया था। हज़ारों साल पीछे जाएं तो अपने पिता के वचन के लिए राम ने राजपाट त्याग दिया था।जिसके लिए राजपाट छीना गया था,वह कभी भी राजा रामचंद्र के सिंहासन पर नहीं बैठा।बल्कि खड़ाऊँ रखकर तब तक राज चलाया जब तक उनके बड़े भाई राम लौटे नहीं। भारत की ऐसी समृद्ध परंपरा रही है। दिल्ली के शराब घोटाले की सच्चाई क्या है,इसका फ़ैसला अदालत को करना है।पर एक मुख्यमंत्री पर इस घोटाले में भ्रष्टाचार का आरोप लगा है।उनकी गिरफ़्तारी हुई है।वे कस्टडी में है और मुख्यमंत्री के पद से अभी तक चिपके हुए हैं?यह कैसी नैतिकता है ? उन्हें तत्काल अपने पद से इस्तीफ़ा देना चाहिए। भारत की राजनीति में महज़ 11 साल पुरानी पार्टी राजनीति के पूरी तरह अनैतिक हो जाने की एक मिसाल पेश कर रही है। हम अपने-अपने राजनीतिक कुनबे के हिसाब से पूरी घटना पर स्टैंड ले रहे हैं, पर ख़तरा यह है कि केजरीवाल जी की अपनी कुरसी से चिपके रहने की ज़िद आगे जाकर भारतीय राजनीति को और खोखली कर देगी। इस ख़तरे को राजनीति से ऊपर उठकर भाँपने की आवश्यकता है।