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Home»ग्लैमर»Dharmendra: जिंदादिल और शायर अभिनेता धर्मेंद्र की खूबसूरती को आखरी सलाम…!
ग्लैमर 8 Mins Read

Dharmendra: जिंदादिल और शायर अभिनेता धर्मेंद्र की खूबसूरती को आखरी सलाम…!

Prime Time BharatBy Prime Time BharatNovember 25, 2025No Comments
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Dharmendra: बॉलीवुड अभिनेता धर्मेंद्र 24 नवंबर को संसार से चले गए। मुंबई में उनका निधन हो गया और इसी दिन उनकी पार्थिव देह पंचत्व में विलीन भी हो गई। धर्मेंद्र भारतीय सिनेमा के दिग्गज रहे, संसद सदस्य रहे, और पद्म भूषण से सम्मानित भी थे, लेकिन फिर भी धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ क्यों नहीं हुआ। यह सवाल लाखों लोगों को कचोट रहा हैं। इस सबके बीच देश के वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी, राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार, राजस्थान के विख्यात पत्रकार नारायण बारेठ और फिल्मकार – पत्रकार पंकज शुक्ला धर्मेंद्र से जुड़ी अपनी यादें साझा कर रहे हैं। वे खुद बहुत खूबसूरत थे, मगर जयपुर की खूबसूरती से धर्मेंद्र को बेहद प्यार था। वे बेहद साफगोई पसंद इंसान थे और उनकी सहजता हर किसी का मन मोह लेती थी। ‘कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ डयलट पर उनको मलाल रहा और वे वे कई मौकों पर कहते भी थे कि मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। शायरी के शौकीन धर्मेंद्र खुद शायरी लिखते थे, तो उनसे मिलने गए लोगों को शायरी सुनाते भू थे, खास तौर पर पत्रकारों को तो वे सवालों के जवाब के बजाय शायरी ही सुनाते थे।

Table of Contents

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  • जयपुर की खूबसूरती पसंद थी खूबसूरत धर्मेंद्र को – परिहार
  • हर किसी का दिल जीत लेते थे धर्मेंद्र – ओम थानवी
  • ‘कुत्ते तेरा खून…’ डायलॉग पर दुखी भी हुए धर्मेंद्र – बारेठ
  • धरमजी की यादें कभी भूल नहीं सकता – पंकज शुक्ला
          • -साक्षी त्रिपाठी

जयपुर की खूबसूरती पसंद थी खूबसूरत धर्मेंद्र को – परिहार

राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार का धर्मेद्र से करीब का परिचय रहा। वे जब सांसद बने, तो उनसे ये नाता और गहरा हो गया। तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के साथ जब परिहार को धर्मेंद्र से मिलना हुए तो यह करीबी का नाता और गहरे परिचय में बदल गया। फिर, मुंबई में जुहू बीच इलाके में दोनों के घर आस – पास ही होने के कारण दशक भर पहले तक, धर्मेंद्र से मिलना – जुलना भी चलता रहा। परिहार कहते हैं कि धरम जी से मिलने पर हर बार दो ज्किर जरूर होते थे, एक तो जयपुर की खूबरसती का, और दूसरा उनकी खूबसूरती का। दरअसल, जयपुर शहर की शालीनता और खूबूरती उनको बेहद पसंद थी। वे जब रास्थान में बीकानेर से सांसद बने, और उस नाते जयपुर के उनके दौरों तीन – चार उनके साथ जयपुर में रहना हुआ, तो हर बार वे कहते थे कि जयपुर बहुत खूबसूरत है। परिहार बताते हैं कि मैंने एक बार जयपुर की खूबसूरती को सहेजने में राजस्थान की तत्कालीन सरकार की नाकामी की बात कही तो धरमजी बोले – खूबसूरती तो खिलती है, उसे सहेजने से वह नहीं संवरती। नजर बदलो, जयपुर ज्यादा खूबूरत दिखेगा। परिहार कहते हैं कि धर्मेंद्र अपने बालपन से ही सच में बेहद खूबसूरत रहे होंगे। इसीलिए, जवानी के दिनों में उनकी खूबरीसतू कुछ ज्यादा ही खिल उठी थी। आज लाखों लोग उनकी जवानी की तस्वीरें देख कर ‘कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकते है…’ गाना गुनगदुनाते दखे जा सकते हैं। और मानते हैं कि कोई मर्द भी सचमुच इतना खूबसूरत हो सकता है, और धर्मेंद्र ने यह साबित भी किया था।

Dharmendra and Niranjan Parihar Prime Time Bharat
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हर किसी का दिल जीत लेते थे धर्मेंद्र – ओम थानवी

देश के दिग्गज पत्रकार एवं जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी कहते हैं कि वे अभिनय में धर्मेंद्र के फ़ैन कभी नहीं रहे, पर उनकी ज़िंदादिली और साफ़गोई का सदा क़ायल जरूर रहे। थानवी का उनसे दो बार मिलना हुआ। पहली बार 1980 में, जब वे हेमा मालिनी के साथ ‘रज़िया सुल्तान’ फ़िल्म की शूटिंग के लिए जयपुर में थे। थानवी कहते हैं – मेरे मित्र अशोक शास्त्री (अब नहीं रहे) और जगदीश शर्मा साथ थे; ‘राजस्थान पत्रिका’ के दफ्तर केसरगढ़ से तीनों मेरी यज़दी पर सवार होकर गए थे। तब होटल क्लार्क्स आमेर बहुत दूर लग ता था। आज तो हमारा घर उसी के निकट है। धरम जी से बहुत गम्भीर बात नहीं हो सकी। पर उनकी सहजता ने मन मोह लिया। उन्होंने जो रेशमी चोग़ा पहन रखा था, और उन्होंने बताया कि वह उन्हें शूटिंग में पहनने को मिला था, पसंद आ गया, तो गाउन की तरह बरत रहा हूं”। दूसरी मुलाक़ात उनसे बीकानेर से दिल्ली ट्रेन के सफ़र में हुई। संभवतः 2005 में। दो बिस्तरों वाले कूपे में हम साथ चढ़े। मैंने बरसों पुरानी चोग़े वाली मुलाक़ात याद दिलाई। घुल-मिल गए। मैंने ऊपर चढ़कर आंखें बंद कीं तो नीचे से उनकी पुकार आई — चार्जर हैगा? वे होटल में भूल आए थे। धर्मजी बीकानेर के अनिच्छुक सांसद थे। ट्रेन रतनगढ़ पहुंची तो टीटीई आया और बोला कि स्टेशन पर आपके चाहने वाले आ पहुँचे हैं। किसी ने बीकानेर से ख़बर की होगी। धर्मेंद्र बग़ैर झिझक दरवाज़े पर जा खड़े हुए। नज़ारा देखने को मैं भी। उन्होंने सब मुरीदों को ऑटोग्राफ दिए। एक ने पीछे से दो रुपए का नोट ऊंचा कर दिया। धर्मेंद्र हंसते हुए बोले, कुछ तो मेरी इज़्ज़त का ख़याल किया होता! यह कहकर उसे भी कृतार्थ किया।

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‘कुत्ते तेरा खून…’ डायलॉग पर दुखी भी हुए धर्मेंद्र – बारेठ

अपनी सज्जनता व मासूमियत के लिए विख्यात राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ धर्मेंद्र के बारे में कहते हैं कि क्या अंदाज और क्या अंदाजे बयां था उनका! वो महज एक अदाकार नहीं थे। उनके बोल और सोच में एक सूफियाना लहजा, एक दार्शनिक पुट था। वे बीकानेर के सांसद थे। मूंगफली खरीद को लेकर किसानों और सरकार में ठन गई थी। उनकी ही पार्टी सरकार में थी, लेकिन धर्मेंद्र किसानों के हक में खड़े हो गए। किसान संघ के एक नेता ने मुझे धर्मेंद्र से फ़ोन पर कनेक्ट किया। धर्मेंद्र बोले – जिस मुल्क का बादशाह फ़क़ीर होता है। उस रियासत का हर शहरी बादशाह होता है। उन्होंने अपनी जेब से भी फसल खरीद में मदद की कोशिश की। थोड़ा पीछे जाते हैं – वो 70 का दशक था। यादों की बारात फिल्म का एक डायलॉग बहुत मशहूर हुआ। ‘कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ लेकिन उसके बाद धर्मेंद्र ने एक इंटरव्यू में अपने इस बोल पर दुःख व्यक्त किया, कहने लगे मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। कुत्ते तो वफादार होते है। धर्मेंद्र सिनेमा के सितारे थे,  2004 में सियासत में आ गए। बीकानेर से सांसद चुने गए मरुस्थल के हर गांव कस्बे में जीव दया का जीवन का अहम हिस्सा है। लोग श्वानो (कुत्तों) को भोजन देते है और पकड़ने नहीं देते। बीकानेर में भी कुत्ते अच्छी खासी संख्या में है। कुत्ते का खून पीने का डायलॉग दुनिय़ा भर में फालाने वाले धरम जी जब चुनाव प्रचार में निकले तो भी श्वान उनसे डरे नहीं। उन्हें पता था धर्मेंद्र ऐसे नहीं है। वो 2004 का वक्त था, तब न तो आदमी की आदमी से अदावत ऐसी थी, न कुतों को गाडी के पीछे बांध कर खींचने के मंजर देखे जाते थे। भारतीय सिनेमा की इस अजीम हस्ती के निधन पर फिजा में ग़मो शोक के गर्दो गुब्बार है।

धरमजी की यादें कभी भूल नहीं सकता – पंकज शुक्ला

फिल्मकार होने के साथ साथ कलमकार और पत्रकार के रूप में भी विख्यात पंकज शुक्ला कहते हैं – धरमजी से मिलने की मेरे मन में सबसे पहले हूक सी उठी तो, वह 1986 का साल था, जब मैं पहली बार मैं मुंबई आया। यूं ही जुहू में भटक रहा था कि एक बंगले के सामने ऊंचे, लंबे, चौड़े हट्टे कट्टे सरदारों और जाटों की भीड़ देखकर रुक गया। पता चला कि ये धर्मेंद्र का बंगला है। और, अभी वह बाहर निकलने वाले हैं, पंजाब से आए अपने इन शुभचिंतकों से मिलने के लिए। मैं भी रुक गया। थोड़ी देर में धर्मेंद्र निकले। क्या डीलडौल, और क्या ही आकर्षण! उफ़्फ़..!  पंजाब से आए बंदे सब उनकी ही कद काठी के थे, वे सबसे गले मिले। पंजाबी में बातें कीं। मैं वहीं पास में खड़ा देखता रहा। अचानक उनकी नज़र मुझ पर पड़ी। कुछ तो कहा, उन्होंने पंजाबी में, जो मुझे समझा नहीं, लेकिन अगले ही पल वे बाहें पसारे मुझे गले लगाने को आगे बढ़ें। उन दिनों मैं डेढ़ पसली का इंसान हुआ करता था, न गले तक पहुंच पाया उनके और न ही दोनों बाहें पसार कर सीने से ही लगा पाया। वह मेरे चेहरे पर आया हकबकापन देख मुस्कुराए और आगे बढ़ गए। दूसरी भेंट उनसे उनके उसी बंगले के भीतर ड्राइंग रूम में हुई, वह भी कोई दसेक साल पहले। शायद एशा देओल की फ़िल्म की रिलीज़ से पहले की बात है। लेकिन, मज़े की बात ये रही कि पूरी बैठकी के दौरान उन्होंने फ़िल्म पर ही कोई बात नहीं की।  भीतर से अपनी डायरी ले आए। शायरी ख़ूब करते थे धरम जी। डायरी के पन्ने वहीं सोफे के सामने टेबल पर पसार कर बैठ गए। पीछे से पलटना शुरू किया तो दिखा कि डायरी में जो कुछ लिखा है वह सब अरबी लिपि में हैं। उस बैठक के बाद धरम जी से आख़िरी मुलाकात शायद, यमला पगला दीवाना के दौरान ही हुई। ‘मैं जट यमला पगला दीवाना’ गाने को सुनते ही उनका चेहरा हज़ार वॉट के बल्ब की तरह बार बार चमक जाता था। एक बालसुलभ मुस्कान धरमजी की पहचान आख़िर तक रही।

-साक्षी त्रिपाठी

 

इसे भी पढ़ेंः Dharmendra: संसद में रहे फिर भी सियासत रास नहीं आई धर्मेंद्र को

 

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