Putin: दिसंबर 2025 की उस ठंडी सुबह में, जब दिल्ली की हवा में शीतलता का पुट था, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत की राजधानी पहुंचे। यह उनकी पहली बड़ी विदेश यात्रा थी, जो द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रतीक बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से उनका स्वागत किया, जो दोनों नेताओं की गहन मैत्री का प्रमाण था। 5 दिसंबर को हुई इस मुलाकात ने न केवल भारत-रूस के आर्थिक बंधनों को मजबूत किया, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में भारत की रणनीतिक स्थिति को भी चमकाया। यह यात्रा महज औपचारिकता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय थी, जो यूक्रेन संकट और वैश्विक ऊर्जा संकट के बीच भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को रेखांकित करती है।
व्य़ापारिक विकास का महत्व
मुलाकात का केंद्रबिंदु रूस-भारत बिजनेस फोरम का पूर्ण सत्र था, जहां पुतिन और मोदी ने संयुक्त रूप से भाग लिया। दोनों नेताओं ने व्यापार, रक्षा, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी पर विस्तृत चर्चा की। परिणामस्वरूप, कई महत्वपूर्ण समझौते हुए। सबसे प्रमुख है 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का नया आर्थिक सहयोग कार्यक्रम। रूस भारत को सस्ते कच्चे तेल की आपूर्ति जारी रखेगा, जबकि भारत रूस को कृषि उत्पादों, फार्मास्यूटिकल्स और आईटी सेवाओं का निर्यात बढ़ाएगा। एक प्रमुख समझौते के तहत, दोनों देशों के बीच एक बड़े रूसी-भारतीय फार्मास्यूटिकल प्लांट की स्थापना होगी, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग को नई दिशा देगा। इसके अलावा, यूक्रेन में शांति प्रयासों पर फोकस करते हुए, दोनों ने वैश्विक स्थिरता के लिए संयुक्त प्रयासों की प्रतिबद्धता जताई। मोदी ने पुतिन को ‘कारपूल मोमेंट’ का अनुभव कराया, जहां दोनों एक ही वाहन में यात्रा करते हुए अनौपचारिक बातचीत की, जो उनकी निकटता का प्रतीक बनी। रात्रि भोज और संयुक्त संप्रेषण में दोनों ने ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ को और मजबूत करने की पुष्टि की।

अंतर्राष्ट्रीय बहुआयामी लाभ
रूस और भारत की यह मुलाकात भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुआयामी लाभ लेकर आई है। सबसे पहले, आर्थिक मोर्चे पर। रूस से सस्ता तेल आयात भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करता है, खासकर जब वैश्विक तेल कीमतें अस्थिर हैं। अमेरिका द्वारा रूसी तेल खरीद पर लगाई गई सजाओं के बावजूद, भारत ने अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी, जो ‘मल्टी-अलाइनमेंट’ नीति की सफलता दर्शाता है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर की बचत हुई, जो विकास परियोजनाओं में निवेश किया जा सकता है। व्यापार असंतुलन को दूर करने के प्रयासों से भारत के निर्यात में वृद्धि होगी, जिससे रोजगार सृजन और विनिर्माण क्षेत्र को बल मिलेगा।
रक्षा क्षेत्र में लाभ और स्पष्ट
रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है, और इस यात्रा ने एस-400 सिस्टम जैसे समझौतों को आगे बढ़ाया। इससे भारत की सैन्य क्षमता मजबूत होती है, जो चीन और पाकिस्तान से सीमा चुनौतियों का सामना करने में सहायक है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर, यह यात्रा भारत को ‘ग्लोबल साउथ’ का नेतृत्वकर्ता बनाती है। जी-20 और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत रूस के साथ मिलकर पश्चिमी दबाव का मुकाबला कर सकता है। यूक्रेन संकट में भारत की तटस्थता को पुतिन का समर्थन मिला, जो संयुक्त राष्ट्र में भारत की आवाज को मजबूत करता है।
कूटनीतिक लाभ भी कम नहीं
यह यात्रा अमेरिका-भारत क्वाड गठबंधन के बीच संतुलन बनाए रखती है, जबकि रूस के साथ संबंध यूरोपीय संघ के साथ भारत के व्यापार को प्रभावित न होने दें। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका बढ़ेगी, खासकर फार्मा और आईटी में। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर सहयोग से भारत की ‘वन अर्थ, वन फैमिली’ दृष्टि को बल मिलेगा। कुल मिलाकर, यह यात्रा भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर शक्ति के रूप में स्थापित करती है, जो वैश्विक अस्थिरता में स्थिरता का प्रतीक बनेगी। पुतिन-मोदी मुलाकात ने भारत-रूस संबंधों को ‘नई ऊर्जा’ प्रदान की। यह न केवल द्विपक्षीय लाभ है, बल्कि वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण। जैसे मोदी ने कहा, “हमारी साझेदारी समय की कसौटी पर खरी उतरी है।” भविष्य में यह बंधन भारत को वैश्विक पटल पर और ऊंचा उठाएगा।
– राकेश दुबे
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