Rajasthan: प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार की लोकसभा के बाद दूसरी परीक्षा माना जा रहा है। चुनाव आयोग ने तारीख घोषित कर दी है और उनके मुताबिक 13 नवंबर को प्रदेश की सबी 7 सीटों पर उपचुनाव होंगे तता 23 नवंबर को नतीजे घोषित होंगे। राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों में संगठन के स्तर पर विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
मुकाबला सीधे सीधे दो दलों के बीच ही संभव
प्रदेश में संभावना इसी बात की है कि यह उपचुनाव सीधा दो पक्षीय होगा। हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और राजकुमार रोत की भारत आदिवासी पार्टी को एक एक सीट पर कांग्रेस की तरफ से समर्थन मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि राजस्थान में उपचुनाव की बिसात बिछ गई है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने कमर कस ली है और उम्मीदवारी पर आंकलन जारी है। परिहार कहते हैं कि प्रदेश में बीजेपी सरकार में है और इसी कारण उसके लिए ये उपचुनाव इज्जत का सवाल बने हुए हैं। परिहार की बात को आगे बढ़ाते हुए राजस्थान के पत्रकार हरिसिंह कहते हैं कि खास तौर से छह महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से तगड़ी पटखनी दी थी, क्योंकि लगातार दो लोकसभा चुनाव से प्रदेश की सभी 25 सीटें जीतती रही बीजेपी से इस बार कांग्रेस गठबंधन ने 11 सीटें छीनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मेदी की अजेय यात्रा में रोड़ा डाल दिया। हालांकि, राजस्थान की राजनीति के जानकारों का राय में बीजेपी की तरफ से प्रदेश में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अकेले इस उपचुनाव में सबसे बड़े नेता होंगे, क्योंकि उनकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ अभी तक अपनी अध्यक्षीय पहचान बनाने की मशक्कत ही करते दिख रहे हैं। उधर, कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश में सबसे बड़े नेता होंगे, तो सचिन पायलट के भी गुर्जर बहुल सीटों पर प्रचार करने का असर होगा। राजनीतिक विश्लेषक परिहार कहते हैं कि गहलोत और डोटासरा की कोशिश है कि वे बीजेपी को उपचुनाव में भी पटखनी देकर लोकसभा चुनाव की दृश्य को पिर ताजा कर दें। लेकिन हरियाणा की जीत से उत्साहित बीजेपी भी अपनी अलग रणनीति बना रही है।
बीजेपी के लिए लोकसभा का कलंक मिटाना जरूरी
राजस्थान की जिन 7 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें सात में से केवल एक सीट सलूंबर विधानसभा में बीजेपी के पास थी। बाकी 4 पर, दौसा, देवली- उनियारा, झुंझुनूं व रामगढ पर कांग्रेस का कब्जा था और शेष, दो में से खींवसर में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल और चौरासी पर भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत जीते थे। अब जबकि बीजेपी सत्ता में है तो उसे इन सभी सीटों पर जीत दर्ज करके लोकसभा चुनाव में करारी हार के कलंक से मुक्ति पानी होगी। लेकिन कांग्रेस जिस तरह से कोशिश में है, हनुमान बेनीवाल जैसे अपने तेवर दिखा रहे हैं और आदिवासी एकता के नाम पर राजकुमार रोत का जो दबदबा दिखाई दे रहा है, उसके हिसाब से बीजेपी के लिए इन उप चुनाव की सभी विधानसभा सीटों पर जीत बेहद मुश्किल लग रही है। इस उपचुनाव में सात में से चार सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना हैं, ऐसे में दो दलों की सीधी जंग वाले प्रदेश में बीजेपी के लिए यह अलग मुसीबत हो सकती है। कांग्रेस ने उपचुनाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं, तो बीजेपी में भी प्रदेश प्रभारी डॉ राधामोहन दास गुप्ता कई दिनों से पार्टी को संगठित करने, ताकतवर बनाने और नेताओं की ताकत का इस्तेमाल करने की मशक्कत कर रहे हैं।
दौसा की जीत में गुर्जर – मीणा सबसे ऊपर
सचिन पायलट के करीबी मुरारी मीणा दौसा से कांग्रेस के विधायक के रूप में जीते थे, बाद में वे दौसा से सांसद बन गए, तो सीट खाली हुई। कांग्रेस अपने गढ़ की इस सीट को बचाए रखना चाहती है। मीणा बहुल इस सीट पर दौसा लोकसभा सीट से सांसद रह चुके बीजेपी नेता किरोड़ी लाल मीणा का भी खासा प्रभाव है। पिछले विधानसभा चुनाव में मुरारी मीणा 31,204 मतों से जीते थे। इस बार कांग्रेस के लिए इस फर्क को सहेजना मुश्किल लग रहा है।
खींवसर की सियासत में बेनीवाल ताकतवर
राजस्थान के सबसे चर्चित नेता हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने बाद भी नागौर जिले की खींवसर सीट काफी चर्चित सीट रही है। बेनीवाल यहां से विधायक रहे हैं और माना जा रहा है कि इस उपचुनाव में यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला संभव है। बेनीवाल वैसे कहने को तो इंडिया गठबंधन में हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के साथ प्रदेश में उनका गठबंधन नहीं है। हालांकि, हनुमान बेनीवाल पिछला विधानसभा चुनाव बेजीपे के रेवतराम डांगा को महज 2059 वोटों से जीते थे, लेकिन बाद में सांसद बनते ही उनकी ताकत बहुत बढ़ गई है।
देवली- उनियारा में मीणा गुर्जर दोनों बराबर
टोंक जिले में आने वाली देवली- उनियारा सीट कांग्रेस विधायक रहे हरीश मीणा के सांसद बन जाने के बाद खाली हुई है. कांग्रेस इस सीट को किसी भी कीमत पर जीतना चाहेगी। यह सीट सचिन पायलट के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि सचिन पायलट खुद टोंक से विधायक हैं, सांसद हरीश मीणा को पायलट का करीबी माना जाता है. पिछले चुनाव में हरीश मीणा ने भाजपा उम्मीदवार विजय बैंसला को 19,175 वोटों से हराया था.
झुंझुनूं में जीत के लिए जाट दबदबा जरूरी
झुंझुनू विधानसभा सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस की मानी जाती रही है। दिग्गज नेता शीशराम ओला के बेटे कांग्रेस विधायक बृजेंद्र ओला के सांसद बन जाने से यह सीट खाली हुई है। आज के हालात में देखा जाए, तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए यगहां से जीत बड़ी चुनौती है। इस बार के उपचुनाव में यहां पर खुद ओला और उनके राजनीतिक आका सचिन पायलट दोनों मेहनत करेंगे, लेकिन बीजेपी भी सामाजिक संमीकरण संवार कर यहां से मैदान मारने की फिराक में है।
रामगढ़ में हिंदू- मुस्लिम सामाजिक समीकरण
हिंदू- मुस्लिम सामाजिक समीकरण वाली कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती रही रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र पर कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन से उपचुनाव हो रहा है। रामगढ़ से बीजेपी के ज्ञानदेव आहूजा कुल 3 बार और जुबैर खान विधायक 4 बार रहे हैं. करीब 3 दशक से यहां दो ही परिवारों का राज रहा है। हर चुनाव में यहां पर सीधे तौर पर हिंदू व मुस्लिम वोटों का सामाजिक विभाजन होता है। ऐसे कांग्रेस के लिए हर बार यह सीट बचाना चुनौती साबित होता रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी तीसरे नंबर पर रही थी। लेकिन इस बार जीत को लेकर खासी उत्साहित है।
चौरासी जीतना ‘बाप’ के लिए ज्यादा जरूरी
राजस्थान और गुजरात में ‘बाप’ के नाम से लोकप्रिय होती जा रही भारत आदिवासी पार्टी के विधायक राजकुमार रोत के सांसद बन जाने से इस सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है। लेकिन यहां भी त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद है। वैसे, पिछले दो विधानसभा चुनाव से इयहां पर लगातार दो बार से बाप जीतती आ रही है। इस बार सांसद बन जाने से रोत की इज्जत दांव पर है, क्योंकि इस सीट पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार को विधानसभा चुनाव जिताना उनके लिए ज्यादा जरूरी हो गया है।
सलूम्बर में बीजेपी फिर जीतने को बेताब
मेवाड़ की सलूंबर सीट बीजेपी के लिए चुनौती है, अमृतलाल मीणा बीजेपी के विधायक थे। अमृतलाल मीणा के अकाल निधन से यह सीट खाली हुई है। राजस्थान में जिन 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें सलूंबर अकेली सीट है, जो बीजेपी के खाते में थी। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रघुवीर मीणा को बीजेपी ने करीब 14 हजार वोटों सो मात दी थी। लेकिन अब बीजेपी सत्ता में है और उसकी परंपरागत सीट से फिर जीतना उसके लिए बड़ा सिरदर्द माना जा रहा है क्योंकि कांग्रेस पहले से ज्यादा आक्रामक दिख रही है।
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