Rajasthan Election: विधानसभा चुनाव में प्रदेश का 48 फीसदी ओबीसी (OBC) वोट बैंक सबके निशाने पर है। क्या कांग्रेस (Congress), क्या बीजेपी (BJP) और क्या दूसरी छोटी पार्टियां, सभी ओबीसी में अपनी पैठ बनाने के नुस्खे तलाश रही हैं। साफ लग रहा है कि राजस्थान में जीत का आधार अब केवल ओबीसी पर है। देश की सबसे बड़ी पार्टी और उसके सबसे बड़े नेता नरेंद्र मोदी (NarendraModi) जान रहे हैं कि केंद्र में बीजेपी आज अगर सत्ता में है और अगली बार भी उसके सत्ता में सीधे आने के आसार हैं, तो इसमें ओबीसी (OBC) वर्ग का ही सबसे बड़ा योगदान है। बीजेपी की कोशिश है कि ओबीसी उसके साथ जुड़ा रहे, तो विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी उसे सीधा लाभ होगा इसीलिए राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election) के लिए कांग्रेस भी मोदी और बीजेपी दोनों की काट में ओबीसी को अपने साथ जोड़े रखने पर पूरा फोकस किए हुए हैं। कांग्रेस (Congress) में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot) सबसे बड़े ओबीसी चेहरे हैं तो, क्षेत्रिय दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल के हनुमान बेनीवाल भी अपने ओबीसी (OBC) होने को ही फोकस कर रहे हैं।
ओबीसी 48 फीसदी और 150 सीटों पर ताकत
राजस्थान में जनसंख्या के हिसाब से वर्ग विभाजन देखा जाए, तो एससी 18 फीसदी और एसटी 14 फीसदी हैं, जबकि ओबीसी सबसे ज्यादा 48 फीसदी हैं। ओबीसी (OBC) वर्ग में तीन सबसे बड़ी जातियां जाट, गुर्जर व माली-सैनी ओबीसी के ताकतवर समुदाय गिने जाते हैं। ओबीसी (OBC) में जाटों की हिस्सेदारी लगभग 10 फीसदी है, गुर्जर 7.5 फीसदी और माली 6.5 फीसदी के आसपास हैं। हालांकि, राजस्थान चुनाव (Rajasthan Election) में जाटों और दलितों की दोस्ती का बीजेपी पर असर क्या होगा, इसकी तस्वीर फिलहाल साफ नहीं है, मगर कांग्रेस (Congress) को सीधा नुकसान और बीजेपी को लाभ जरूर होगा, यह दिख रहा है। राजस्थान की आबादी में ओबीसी (OBC) मतदाता सर्वाधिक लगभग 48 फीसदी होने और 200 विधानसभा सीटों में से सीधे सीधे 150 सीटों पर निर्णायक होने के बावजूद ओबीसी को सामान्य वर्ग में ही गिना जाता हैं, क्योंकि विधानसभा सीटों में आरक्षण केवल अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए ही हैं।
Rajasthan Election में सभी बड़े नेता ओबीसी
प्रदेश की राजनीति में ओबीसी (OBC) के सबसे ज्यादा ताकतवर होने और सबसे ज्यादा संख्या होने के बावजूद सन 2018 के विधानसभा चुनाव में जाट, गुर्जर व माली इन तीनों जातियों के विधायक 200 सीटों में से केवल 48 सीटों पर ही जीत सके। 38 सीटों पर जाट विधायक जीते, गुर्जर 8 और माली-सैनी केवल 2 ही विधायक जीते। जाटों में कई नेता हैं, लेकिन जाट राजघराने धौलपुर रिसायत की पूर्व महारानी होने के कारण वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) जाटों की भी सबसे बड़ी नेता हैं और इन दिनों राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) जैसे क्षेत्रिय दल के मुखिया के रूप में जाट नेता हनुमान बेनीवाल भी सुर्खियां बटोर रहे हैं, तो गुर्जरों में सचिन पायलट (Sachin Pilot) कद्दावर नेता गिने जाते हैं। जाट समुदाय के लोग राजस्थान विधानसभा के चुनाव (Rajasthan Election) में कम से कम 65 विधानसभा सीटों पर हार जीत को प्रभावित करते हैं, इसी कारण दोनों पार्टियों में कुल मिलाकर 38 यानी लगभग 20 फीसदी विधायक पदों पर जाट जीतते हैं। माली विधायक सबसे कम होने का सबसे बड़ा कारण है कि इस समाज ने अपनी ताकत की राजनीतिक एकजुटता कभी नहीं दिखाई और ज्यादातर लोग भले ही वोट बीजेपी (BJP) को भी देते रहे, मगर समाज ने अपनी सारी ताकत तीन बार मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) में निहित मान ली है, क्योंकि वे ही माली समाज के सबसे बड़े नेता भी हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election) की कुल 200 सीट में से 33 सीटें अनुसूचित जाति और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। बाकी बची 142 सीटें सामान्य वर्ग के लिए है, जिसके लिए बहुत गहराई से अध्ययन करने के बाद ही आरएलपी के मुखिया हनुमान बेनीवाल ने 10 फीसदी जाटों और 18 फीसदी एससी को मिलाकर दलित – जाट मतदाता का गठबंधन बनाया है, जिसका अगर सही और सीधा असर रहा, तो माना जा रहा है कि यह आने वाले विधानसभा (Rajasthan Election) के चुनावी समीकरण बदलने में जबरदस्त सफल रहेगा। बेनीवाल ने रावण के नाम से बहुचर्चित आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के मुखिया चंद्रशेखर आजाद से राजस्थान में हाथ मिलाया है।
मोदी से बड़ा ओबीसी नेता देश में और कौन
राजस्थान में चुनाव (Rajasthan Election) के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हाल के दिनों में जब – जब राजस्थान आए, तो उन्होंने ओबीसी (OBC) वर्ग को बीजेपी (BJP) द्वारा दिए गए फायदों को गिनाते हुए कहा कि उनकी पार्टी सभी वर्गों का विशेष ध्यान रखती है, खासतौर पर वंचित वर्ग का। मोदी यह कहते रहे हैं, तो उनके दिमाग में स्पष्ट तौर पर यही था कि राजस्थान में ओबीसी (OBC) से बड़ा वंचित वर्ग और कोई नहीं है। बीजेपी (BJP) जान रही थी कि इस गठबंधन के कारण ओबीसी को साधने का उसका निशाना चूक सकता है, इसी वजह से बीजेपी हनुमान का निशाना असफल बनाने की कोशिश में बेहद सधे हुए कदमों से अपनी चाल चलते हुए बीजेपी (BJP) ने अपने कद्दावर जाट नेताओं के सामने आरएलपी – दलित गठबंधन के कमजोर उम्मीदवार देने के मामले में बेनीवाल को मना लिया है, ऐसा साफ लग रहा है। राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election) में बीजेपी ओबीसी के सबसे बड़े वर्ग जाटों को साथ रखे रहने की पूरी कोशिश में है, तो गुर्जर वोट भी बड़े पैमाने पर बीजेपी (BJP) के साथ तेजी से जुड़ रहा है, जो कि पिछली बार नहीं था। जिसका सीधा फायदा बीजेपी (BJP) की सीटों में इजाफा करेगा। साफ दिख रहा है कि राजस्थान में बीजेपी (BJP) यह अच्छे से जान रही है कि वैसे तो ओबीसी (OBC) वर्ग के वोटरों का सबसे बड़ा हिस्सा उसी के पास है और अशोक गहलोत ओबीसी वर्ग से होने और लगातार 5 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद ओबीसी (OBC) को कांग्रेस के साथ जोड़ने में कोई खास सफल नहीं रहे हैं।
कांग्रेस में पायलट व गहलोत दोनों ओबीसी
राजस्थान में कांग्रेस (Congress) के दो बड़े नेता अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) माली व सचिन पायलट (Sachin Pilot) गुर्जर हैं, व दोनों ओबीसी (OBC) के हैं। अशोक गहलोत को इस बार के मुख्यमंत्री काल में फ्री हैंड तो मिला, मगर कांग्रेस (Congress) के अंदरूनी राजनीतिक हालातों और सचिन पायलट (Sachin Pilot) द्वारा हर कुछ माह में कुर्सी हड़पने की कोशिशों के कारण वे पूरे पांच साल अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने में ही लगे रहे। इसके कारण वे ओबीसी (OBC) को अपने साथ जोड़ने पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सके। सचिन पायलट गुर्जर होने के बावजूद ओबीसी (OBC) नेता के रूप में स्वयं को स्थापित करने से बचते रहे। अपने समुदाय में उनका जबरदस्त प्रभाव है। गुर्जर बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है, लेकिन 2018 के चुनाव (Rajasthan Election) में पायलट के मुख्यमंत्री बनने की आस में गुर्जर मतदाता कांग्रेस (Congress) के साथ खड़ा था, मगर पायलट (Sachin Pilot) मुख्यमंत्री न बन पाए, तो गुर्जर कांग्रेस से बिदक गए। इस चुनाव में गुर्जर कांग्रेस (Congress) को मजा चखाने की फिराक में है।
ओबीसी में कांग्रेस पर बीजेपी ज्यादा भारी
राजस्थान की राजनीति में किसी भी प्रादेशिक नेता के मुकाबले अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) का राजनीतिक कद सबसे बड़ा है, वे ओबीसी (OBC) हैं, और मुख्यमंत्री के नाते उनकी योजनाओं का लाभ बड़े पैमाने पर ओबीसी (OBC) वर्ग को भी सबसे ज्यादा मिला है, फिर भी ओबीसी वर्ग कांग्रेस (Congress) के गहलोत के बजाय बीजेपी के नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ खुद को सहजता से कनेक्ट करता है, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी (Narendra Modi) देश में सबसे प्रभावशाली ओबीसी नेता है। इसी वजह से मोदी के मुकाबले गहलोत का ओबीसी (OBC) जुड़ाव कमजोर पड़ जाता है। फिर अब तो वे दूसरी बार प्रधानमंत्री भी हैं और तीसरी बार की संभावनाएं भी बलवती दिख रही हैं, इसीलिए कांग्रेस (Congress) के गहलोत व पायलट और आरएलपी के बेनीवाल के मुकाबले राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election) में ओबीसी को ताकतवर तरीके से देखा जाने लगा है और बीजेपी (BJP) इसी वजह से राजस्थान में ओबीसी (OBC) वर्ग में कांग्रेस के मुकाबले मजबूत सेंध मारने में ज्यादा सफल होती लग रही है।
-निरंजन परिहार