Rajasthan Politics: यह कहना मुश्किल है कि आने वाला इतिहास डॉ सतीश पूनिया (Satish Poonia) को राजस्थान के एक दिग्गज राजनेता के तौर पर याद करेगा या गलती से राजनीति में भटक गए एक संवेदनशील मनुष्य को तौर पर। दोनों में से कैसे भी याद करें, डॉ सतीश पूनिया को एक जूझने वाले और सामने वाले के छक्के छुड़ा देने वाले छात्र नेता के तौर पर और फिर एक बेहद भावुक व संवेदनशील राजनेता के तौर पर जरूर पहचाना जा रहा है और आगे भी इसी पहचान से उनको पहचाना जाता रहेगा। क्योंकि उनके जैसे लोग राजनीति में बहुत कम होते हैं। डॉ पूनिया जानते हैं कि राजस्थान की परंपरागत संस्कृति में ‘राम राम’ कहकर किसी आगत का स्वागत भी किया जाता है, और मानते हैं कि विदा लेते समय किसी को ‘राम राम’ कहना भी हमारी परंपरा का हिस्सा है। डॉ सतीश पूनिया ने उसी पावन परंपरा का पालन करते हुए आमेर को ‘राम राम’ कह दिया है।
सतीश पूनिया आमेर से चुनाव हार गए हैं और ‘राम राम’ इसलिए कह दिया है कि उनको हार का यह हार पहनना सुहाया नहीं। वैसे तो राजस्थान में कई नेता चुनाव हारे हैं, मगर हारने के बावजूद वे दूसरे ही दिन से कार्यकर्ताओं के बीच जाकर मिलने लगे हैं, काम करने लगे हैं और सक्रियता दिखाने का दुर्लभ साहस भी दिखाने लगे हैं। लेकिन डॉ सतीश पूनिया के आमेर को राम राम कह देने की यह कहानी जो बहुत कुछ कहती है, उसमें सबसे बड़ी बात केवल इतनी छोटी सी है कि आमेर को उन्होने दिल से चाहा था, आमेर से उनका लगाव गहरा था और आमेर को उन्होने अपने जीवन का हिस्सा मान लिया था। इसीलिए, ‘अपनी किस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया’ की तर्ज पर डॉ पूनिया ने आमेर से नाता तोड़ने का मन बनाते हुए एक बहुत ही भावनाओं से भरी चिट्ठी की शक्ल में संदेश जारी कर दिया।
मगर, कहते हैं कि राजनीति भावनाओं से नहीं चलती, और राजनेताओं के बारे में यह एक आम धारणा भी है। शायद इसीलिए, क्योंकि ज्यादातर राजनेता, जब भावनाओं के वास्तविक प्रदर्शन की आवश्यकता होती है, तभी वे खुद को भीतर से सख्त कर जाते हैं। राजनेताओं को आम तौर पर इसी कारण अक्सर संवेदनहीन तक कह दिया जाता है। लेकिन कुछ लोग होते ही ऐसे हैं कि राजनीति में रहने के बावजूद उनके भीतर की भावनाएं नहीं मरती। बल्कि होता कुछ ऐसा है कि जैसे जैसे वे शीर्ष पदों पर पहुंचते जाते हैं, भावनाओं का भंवर उनके भीतर लगातार भरभराता रहता है, माटी के किसी धोरे की तरह। बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सतीश पूनिया (Satish Poonia) भी कुछ – कुछ ऐसे ही राजनेता हैं, जिनके बारे में राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि वे दिल के बड़े अच्छे हैं और मनुष्य को तौर पर तो और भी अच्छे।
डॉ पूनिया के अच्छेपन के कई उदाहरण, राजस्थान के लोग वैसे तो तब से जानते हैं, जब 1980 के दशक में वे राजस्थान विश्वविद्यालय की लहलहाती छात्र राजनीति के दमदार महासचिव हुआ करते थे, फिर वे प्रदेश में विद्यार्थी परिषद के नेता के तौर पर आगे और 1998 में प्रदेश में युवा मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में सक्रिय रहे तब भी उनकी भावनाओं से भरे राजनीतिक किस्से और कथाएं सुनने को मिलती रहीं। बाद में जब 2013 में विधायक बनते बनते रह गए और 2018 में जब विधायक बने तब भी और सितंबर 2019 में अध्यक्ष के रूप में लगातार 4 साल तक राजस्थान बीजेपी का भार अपने कंधों पर उठाकर समूचे प्रदेश में पार्टी को मजबूती देने और कांग्रेस सरकार को उखाड़ फैंकने का आंदोलन चलाते रहे थे, तब भी उनके मन की मासूमियत, भावनाओं के भंवर तथा संवेदनशीलता की कई कहानियां लोग सुनाते रहे। मगर डॉ सतीश पूनिया (Satish Poonia) की भावुकता और मन की मजबूरियों का ताजा किस्सा उन्होंने खुद अपने हाथ से एक चिट्ठी में 4 दिसंबर 2023 को लिखा, जब 3 दिसंबर को राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजों में उनको आमेर से हार का सामना करना पड़ा। उनको जानने वाले जान रहे हैं कि उस रात वे अवश्य ही सोए तो नहीं ही होंगे।
डॉ पूनिया ने लिखा…
राम राम सा, लोकतंत्र में जनता जनार्दन होती है, मैं आमेर की जनता के निर्णय को स्वीकार करता हूं और कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी श्री प्रशान्त शर्मा जी को बधाई देता हूँ, आशा करता हूं कि वो आमेर के विकास को यथावत गति देते रहेंगे और जन भावनाओं का सम्मान करेंगे। आमेर से मेरा रिश्ता दस बरसों से है, 2013 में पार्टी के निर्देश पर चुनाव लड़ने आया था, चुनाव में मात्र 329 वोटों की हार हुई, लेकिन भाजपा की सरकार के दौरान हमने यहां विकास को मुद्दा बनाकर काम किया, हालांकि लोग कहते हैं कि यहां बड़ी बड़ी जातियों का बाहुल्य है और जातियों के इस जंजाल में जाति से ऊपर उठकर कोई विकास की सोचे, थोड़ा मुश्किल है। 2013-2018 में हमने कोशिश की, थोड़ा सफल हुए, विकास कार्यों से लेकर कोरोना के दौरान सेवा कार्यों से लोगों में भरोसा पैदा करने की कोशिश की थी। लेकिन शायद लोगों को समझाने में हम विफल रहे। माना कि चुनाव में हार जीत एक सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन आमेर की यह हार मेरे लिए सोचने पर मजबूर करने वाली है। एक आघात जैसी है, हमने सपने देखे थे कि आमेर इस बार रिवाज बदलेगा और हम मिलकर सरकार के माध्यम से कार्यकर्ताओं का सम्मान और जनता का बेहतरीन काम करके इसे आदर्श विधानसभा क्षेत्र बनाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ, यह समय मेरे लिए कठिन परीक्षा की घड़ी जैसा है, परन्तु परिस्थितियों और मनोवैज्ञानिक रूप से मैं यह निर्णय करने के लिए मजबूर हूं कि मैं अब भविष्य में आमेर क्षेत्र के लोगों और कार्यकर्ताओं को सेवा और समय नहीं दे पाऊंगा, पार्टी नेतृत्व को भी मैं अपने निर्णय से अवगत करवाकर आग्रह करूंगा कि यहां की समस्याओं के समाधान के लिए योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति करें, साथ ही एक लंबे अरसे से पार्टी संगठन को पूरा समय देने के कारण पारिवारिक कार्यों से भी दूर रहा हूं, अत: अब मैं कुछ समय अपने पारिवारिक कार्यों को पूरा करने में लगाऊंगा, ईश्वर मुझे शक्ति दे।
-डॉ. सतीश पूनिया
लगता है, डॉ सतीश पूनिया (Satish Poonia) का आमेर से मन भर गया है। राजस्थान में बीजेपी के दिग्गज नेता और जीत गए होते तो जैसा कि चर्चा भी रही, मुख्यमंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार कहे जाने वाले डॉ पूनिया की शब्दावली को थोड़ा गहराई से समझें, तो एक राजनेता के रूप में उनमें कोमल मन वाली भावुकता से भरपूर मनुष्यपन साफ झलकता हैं। लगता तो ऐसा ही है कि समूचे राजस्थान का दिल जीतने वाला आमेर में हार गया, पूरे प्रदेश में पार्टी को मजबूती देनेवाला एक विधानसभा क्षेत्र में कमजोर पड़ गया और अपनी बुलंद आवाज से लाखों लोगों को झकझोरने वाला संघर्षशील नेता खुद भीतर से हिल गया… मगर असल में ऐसा नहीं है।
अपना न तो डॉ पूनिया से कोई राजनीतिक रिश्ता है और न ही कोई खास नजदीकी, मिलना भी कभी कभार ही हुआ है। मगर, लगभग साढ़े तीन दशक से उनको और उनकी राजनीति को अपन न केवल जानते परखते रहे हैं, बल्कि उनके राजनीतिक आचरण की आभा से अभिभूत अनेक लोगों को भी अपन समझते भी रहे हैं। इसीलिए, विनम्र आग्रह केवल यह है कि डॉ पूनिया जो ‘राम राम सा’ कह रहे हैं, उसमें कोई सार नहीं है और अपनी राय में इसे खारिज करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता। राजनीति में लाखों लोग उनको चाहते हैं, फिर राजनीति भी तो उनको करनी तो है ही और लोगों के बीच ही जब करनी है, तो फिर वहीं क्यों नहीं, जहां के लोग उनके काम को मान देते रहे हैं और दशक भर तक सेवा के नाता जोड़े रखा है। चुनाव में हार – जीत तो हर किसी की होती है, अटल बिहारी वाजपेयी भी हारे, तो भैरोंसिंह शेखावत भी हारे, मगर हिम््त नहीं हारी। फिर डॉ सतीश पूनिया (Satish Poonia) कैसे हिम्मत हार सकते हैं। आखिर, वे जुझारू हैं, योद्धा हैं और बड़ों-बड़ों से निपट चुके हैं व निपटाना जानते भी हैं, तो फिर आमेर की हार पर इस मन की हार से भी निपट ही लेंगे!
–निरंजन परिहार
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)