Rajasthan Politics: राजस्थान में मुख्यमंत्री को लेकर असमंजस बरकरार है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में गुमनाम चेहरों को सत्ता सौंपने की रणनीति के बाद राजस्थान में सत्तासीन होने जा रही बीजेपी (BJP) की राजनीति का मंजर में भी कई सामान्य नाम खंगाले जा रहे हैं। हालांकि, वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनने को बेताब हैं, मगर बीजेपी आलाकमान के मन में उनको लेकर या किसी भी और के बारे में फिलहाल क्या है, या यह कोई नहीं जानता। चुनाव किसी के चेहरे पर नहीं लड़ा गया है और पार्टी का चेहरा कमल ही कहा गया था। इसलिए यह तो तय है कि वसुंधरा राजे दरकिनार हैं फिर भी जो राजनीतिक विश्लेषक कह रहे थे कि वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) मुख्यमंत्री बन सकती हैं, क्योंकि राजस्थान (Rajasthan) में वे ही अकेली नेता हैं, जो लोकसभा चुनाव जिताने की योग्यता व ताकत दोनों रखती हैं। वे भी पहले छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और मध्य प्रदेश में अनाम से चेहरे मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद वसुंधरा राजे के बजाय कोई गुमनाम सा नाम तलाशने लगे हैं। हालांकि वसुंधरा राजे पर सबका फोकस है। मगर, राजनीति में किसकी नैया किनारे लगेगी और किसकी डूब जाए कोई नहीं जानता।
लगभग 10 नेताओं के नाम मुख्यमंत्री के रेस में
किसी भी मामले में त्वरित व तत्काल फैसले लेने के लिए मशहूर नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी (BJP) ने हालांकि यह तय कर लिया होगा कि राजस्थान में विधायक दल का नेता कौन होगा, लेकिन घोषित नहीं किया है। वैसे तो राजस्थान (Rajasthan) में करीब 10 से ज्यादा नेताओं के नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आमजन की चर्चा में हैं, मुख्यमंत्री पद की रेस में वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) ही लोगों की चर्चा में सबसे आगे दिख रही हैं। वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनना चाहती भी है, जो किसी से छिपा नहीं है और उसके लिए ताकत भी दिखा रही हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अनाम से चेहरों के मुख्यमंत्री बनने के बाद गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जन मेघवाल और अश्विनी वैष्णव, सीपी जोशी, ओम माथुर, ओम बिड़ला, किरोड़ीलाल मीणा राज्यवर्धन राठौड़, दीया कुमारी, बाबा बालकनाथ, कैलाश चौधरी जैसे कई नाम हवा में तैरते हुए लग रहे हैं। माना जा रहा है कि राजस्थान में भी मुख्यमंत्री वहीं होगा, जिस पर कहीं भी कोई चर्चा ही नहीं है।
लोकसभा में जीत केवल वसुंधरा राजे के हाथ
बीजेपी को राजस्थान (Rajasthan) में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार ज्यादा वोट मिले हैं। बीजेपी (BJP) को 41.69 फीसदी वोट मिले, वहीं कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत वोट मिले। पांच साल पहले 2018 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो तब बीजेपी को 39.3 फीसदी और कांग्रेस को 39.8 फीसदी वोट मिले थे। उस समय बीजेपी 73 सीटों पर विजयी हुई थी और कांग्रेस को 99 सीटें मिली थीं। इस बार बीजेपी के 2 प्रतिशत वोट बढ़े और 42 सीटें बढ़ गईं हैं। वहीं, कांग्रेस का वोट परसेंट 0.3 फीसदी बढ़ गया, मगर उसकी 30 सीटें घट गईं। इसके बावजूद चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव का कहना है कि बीजेपी को इस बार के लोकसभा चुनाव में केवल 14 सीटें ही मिल सकती हैं। बीजेपी इसीलिए चिंतित है, क्योंकि उसका लक्ष्य लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतने है। ऐसे में, राजस्थान की राजनीति के जानकार विजय विद्रोही की राय में लोकसभा चुनाव जिताने के लिए राजे ही सबसे बड़ी मददगार साबित हो सकती हैं। विधानसभा चुनाव में 7 बागी भी जीते हैं, वे भी वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के खेमे के ही हैं, जो लोकसभा चुनाव में जीत में हिस्सा बंटा सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार का भी कहना है कि राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं और इनमें से 24 सीटें आज बीजेपी के पास हैं। फिर, बीजेपी को राजस्थान (Rajasthan) में ज्यादा लोकसभा सीटों पर जितानेवाला मुख्यमंत्री चाहिए, और यह चमत्कार केवल वसुंधरा राजे ही कर सकती हैं। परिहार कहते हैं कि जिस तरह से विधायक लगातार वसुंधरा राजे से मिलते जा रहे हैं, और वसुंधरा भी नई दिल्ली से लौटने के बाद भी विधायकों से मुलाकात किए जा रही है, उसे देख कर तो यही लग रहा है कि वे अपने कदम पीछे हटाने वाली नहीं हैं। परिहार कहते हैं कि श्रीमती राजे अपनी राजनीतिक यात्रा को आगे बढ़ाने में मगन हैं और मान कर चल रही है कि आलाकमान उनको कोई बहुत अच्छे परिणाम देने वाला नहीं है। इसीलिए वे अपने तईं कुछ खास दिखाने की कोशिश में विधायकों से मुलाकात किए जा रही है।
सबसे ज्यादा विधायक वसुंधरा के मुलाकाती
नवनिर्वाचित विधायकों का सबसे ज्यादा जमावड़ा वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के बंगले पर है। राजस्थान (Rajasthan) विधानसभा चुनाव में विजयी बीजेपी (BJP) के 115 में से वसुंधरा राजे के 34 समर्थक जीतकर आए हैं, लेकिन पहले 3 दिन तक मिलनेवाले विधायकों की संख्या 47 के आस पास थी। करीब 7 निर्दलीय विधायक बी वसुंधरा राजे के समर्थक हैं। नई दिल्ली से लौटने के बाद 10 दिसंबर को वसुंधरा राजे से जो नेता मिले, उनमें बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के अलावा विधायक कालीचरण सर्राफ, जसवंत यादव, प्रताप सिंह सिंघवी, अंशुमन भाटी, अजय सिंह किलक, बाबूसिंह राठौर, अर्जुनलाल गर्ग, नटवर सिंह, कंवरलाल मीणा आदि प्रमुख हैं। वसुंधरा राजे से मिलने वाले विधायक कह रहे हैं कि आलाकमान को ही मुख्यमंत्री तय करना है मगर आलाकमान को जनभावनाओं का भी ख्याल रखना होगा। राजस्थान में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी इस पर कहते हैं कि वसुंधरा राजे हमारा पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं और विधायकों का उनसे मिलना स्वाभाविक प्रक्रिया है, इसमें कुछ भी तलाशना नहीं चाहिए।
राजधानी में सबसे मिल रहे हैं विधायक
वैसे, चुनाव जीतकर राजधानी पहुंचे विधायकों का अपनी पार्टी के बड़े नेताओं से मिलना एक सहज परंपरा है। राजस्थान (Rajasthan) के वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन ने बीबीसी हिंदी पर लिखे लेख में कहा है कि बीजेपी (BJP) के ऐसे बहुत से नवनिर्वाचित विधायक जिनको संघ के आशीर्वाद से टिकट मिला, वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रदेश मुख्यालय भारती भवन में प्रकाशचंद्र गुप्ता और निंबाराम से भी मिल रहे हैं, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से भी मिल ही रहे हैं, और प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह सहित प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर से भी मिल रहे हैं। त्रिभुवन लिखते हैं कि पिछली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे राजेंद्र सिंह राठौड़ से भी विधायक मिल रहे हैं, जबकि वे तारानगर से चुनाव हार गए हैं। राजनितिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि जब इतना सारे नेताओं से विधायक मिल रहे हैं, तो फिर सबसे बड़ा सवाल यही है कि वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) से मुलाकात पर ही सबकी नजर क्यों हैं? राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही का कहना है कि बीजेपी आलाकमान का मतलब है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, और वे दोनों ही राजस्थान में वसुंधरा राजे को कमान सौंपना नहीं चाहते, क्योंकि वे उनकी असली तासीर जानते हैं। मगर राजस्थान में लोकसभा जीतना है, तो कई सारे तर्क वसुंधरा राजे के समर्थन में जाते हैं, इसी कारण उनको मुख्यमंत्री बनाना पड़ सकता है।
अब सबकी नजर 12 दिसंबर पर
मतलब साफ है कि बीजेपी (BJP) किसी भी तरह की कयासबाजी से बचना चाहती है, लेकिन एक तथ्य यही है कि 3 दिसंबर को राजस्थान (Rajasthan) में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे, 6 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विजयी सांसदों ने मुलाकात की और इस्तीफे दिये, 7 दिसंबर को वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलीं। 8 दिसंबर को पार्टी ने राजनाथ सिंह, सरोज पाण्डेय और विनोद तावड़े को पर्यवेक्षक नियुक्त किया और राजनाथ व जेपी नड्डा की मुलाकात हुई। उसी दिन बीजेपी महासचिव सुनील बंसल भी जेपी नड्डा से मिले। 9 दिसंबर को पर्यवेक्षक विनोद तावड़े ने जेपी नड्डा से मुलाकात की। नड्डा ने राजस्थान (Rajasthan) के बीजेपी विधायकों के साथ ऑनलाइन मीटिंग भी की। अब 12 दिसंबर को विधायक दल की मीटिंग जयपुर में बताई जा रही है। सबकी नजरें इसी पर हैं। देखते हैं, इस बैठक में क्या होता है और कौन मुख्यमंत्री बनता है।
-राकेश दुबे
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)