Natwar Singh: भारत सरकार में विदेश मंत्री रहे कुंवर नटवर सिंह नहीं रहे। 93 वर्ष के नटवर सिंह ने 10 अगस्त 2024 की रात गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में आखरी सांस ली। वे काफी समय से अस्वस्थ थे। वे राजस्थान के भरतपुर जिले के थे और सन 1984 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। नटवर सिंह ने कई किताबें भी लिखीं और उनकी एक किताब तो कांग्रेस के लिए ही सरदर्द बन गई। वे कांग्रेस के राजदार माने जाते रहे और राजनीति में आने से पहले वे भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी थे। उन्होंने पाकिस्तान में भारत के राजदूत के रूप में भी काम किया और 1966 से 1971 तक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से जुड़े रहे थे। हालांकि 2008 में नटवर सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी और बगावत पर उतर आए थे। ये बगावत उनकी पुस्तक ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ : एन आटोबायोग्राफी’ में साफ तौर पर नजर आई। इस पुस्तक में नटवर सिंह ने गांधी परिवार को लेकर कई बड़े खुलासे किए। वे पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बहनोई थे।
पढ़ाई में बहुत तेज थे, तो आइएफएस बने
राजस्थान के और भरतपुर जिले में स्थित जघीना गांव उनका अपना गांव था। जघीना से उनको बेहद प्रेम था। इसीलिए जघीना के विकास के लिए नटवर सिंह ने वह सब कुछ किया, जो वे कर सकते थे। इस गांव के कई विकास कार्यों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने गांव में पहली सड़क का निर्माण करवाया, और 10वीं से 12वीं तक की पढ़ाई के लिए स्कूल के भवन का निर्माण भी करवाया। नटवर सिंह के पिता भरतपुर के राजदरबार में अहम पद पर थे। उन्होंने अपने बेटे को सबसे पहले अजमेर को मेयो कॉलेज में पढने भेजा, वहां से ग्वालियर के सिंधिया स्कूल में और फिर नई जदिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ाई के बाद नटवर इंग्लैंड चले गए और कैंब्रिज में दाखिल ले लिया। वे पढ़ाई में बहुत तेज थे। नेहरू गांधी के करीबी कृष्णा मेनन ने नटवर सिंह को सिविल सर्विसेस एग्जाम से जुड़ी टिप्स दी और उसी के जरिए नटवर सिंह ने इंडियन सिविल सर्विसेस की परीक्षा पास करके करके भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी बन गए।
नेहरू के साथ नाश्ता करते थे नटवर सिंह
दुनिया के कई देशों में भारत सरकार की सेवा करने के बाद नटवर सिंह भारत वापस आए और उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू गांधी के दफ्तर में काम करना शुरू कर दिया इस दौरान उन्हें उस वक्त के सबसे ताकतवर नौकरशाह पीएन हक्सर के साथ काम करने का मौका मिला। नटवर सिंह ने बहुत तेजी से नेहरू के दफ्तर में अपनी जगह बना ली थी और वो जगह ये थी कि नेहरू जब नाश्ता करते थे, तो नटवर सिंह को साथ बिठाते थे। इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनीं तो कहते हैं कि नटवर सिंह ने ही इंदिरा गांधी के सामने राजनीति में आने की इच्छा जाहिर की थी, जिसे इंदिरा गांधी ने स्वीकार कर लिया। इंदिरा गांधी ने नटवर सिंह को राज्यसभा से लाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन कांग्रेस से जुड़े कुछ लोगों को ये पसंद नहीं आया और उन्होंने नटवर सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात रखी। आखिर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद नटवर सिंह ने भरतपुर से सन 1094 में पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और जबरदस्त जीत हासिल की।
-राकेश दुबे