Eknath Shinde अब मजबूत और उद्धव कमजोर होंगे
एक तरफ एकनाथ शिंदे अब शिवसेना तोड़कर सुरक्षित हो गये है और अगले कुछ महीनों तक खुलकर खेल सकते हैं तो दूसरी तरफ उदधव ठाकरे गुट को कानूनी लड़ाई से आगे, लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और लोगों की सद्भावना प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी क्योंकि अब अगला कोई भी बदलाव चुनाव के बाद ही होगा। लेकिन इन सबके बीच एक तीसरा खेमा भी है, बीजेपी का जिसे अब चुनाव तक तो शिंदे की लीडरशिप में ही काम करना होगा। बीजेपी का चेहरा भी अब महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ही होंगे और देवेंद्र फणणवीस को फिलहाल साइड सीट से ही काम चलाना होगा। वो इस बार तो ये किसी भी हालत में नहीं कह पायेंगे कि मैं फिर आउंगा। इतना ही एकनाथ शिंदे की बारगेनिंग पावर भी इसके साथ ही बढ़ गयी है। वो भी अब लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उतनी सीट तो मांग ही सकते हैं जितने पर उनके विधायक और सांसद जीते यानि विधानसभा की 43 और लोकसभा की 13 सीटें . इससे बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना में भी संघर्ष बढ़ेगा।
अजित पवार को भी संजीवनी की आस
एकनाथ शिंदे और उनकी शिवसेना को संवैधानिक संरक्षण मिल जाने के बाद, अजित पवार भी बम बम है। उनका आश्वस्त भाव भी बढ़ गया है। निश्चित तौर पर महाराष्ट्र की राजनीति में इस खींचतान और परस्पर संघर्ष का एक फायदा अजीत पवार को भी होगा, जो खुद भी अपने चाचा की पार्टी तोड़कर असली एनसीपी होने का दावा कर रहे हैं। स्पीकर को उनके दावे पर भी फैसला देना है। चुनाव आयोग भी सुनवाई पूरी कर चुका है। अब अजीत पवार मान सकते हैं कि उनको भी असली एनसीपी के तौर पर चुनाव चिन्ह मिल जायेगा और उनके भी विधायक अयोग्य नहीं होंगे। इससे अजीत पवार की भी बारगेनिंग पावर बढ़ सकती है और अपना फैसला आने के बाद वो भी जीती हुयी सीटों के लिए दवाब बनायेंगे।
लोकसभा – विधानसभा चुनाव साथ संभव
महाराष्ट्र में बदले हुए राजनीतिक हालात के बीच एक बात पर चर्चा शुरु हो गयी है कि अब बीजेपी चाहती है कि लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी हो जायें। क्योकि विधानसभा में ये साबित हो गया है कि जो हुआ वो सही हुआ,इसलिए बीजेपी मान रही है कि इससे उद्धव ठाकरे गुट के प्रति बन रही सिम्पथी में कमी आयेगी। जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है। इसी हफ्ते में बीजेपी ने दो अहम बैठकें पुणे और नाशिक में कोर ग्रुप की बैठक के तौर पर की जिसमें इस बात पर चर्चा की गयी कि चुनाव की तैयारी क्या हो। यानि भाजपा अंदरखाने से दोनों चुनाव के लिए तैयार हो रही है। उसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता में बनी ‘एक देश, एक चुनाव’ की हाईलेवल कमेंटी में सुझाव देने की अंतिम तारीख इसी महीने है और उसके बाद फरवरी तक रिपोर्ट आ गयी तो बजट सेशन में इसे मंजूर करने के लिए संसद में रख दिया जा सकता है। तब बीजेपी चाहेगी कि कम से कम दस से ज्यादा राज्यों के चुनाव एक साथ तो हो जायें, जिनमें महाराष्ट्र के साथ साथ झारखंड भी शामिल हो जायेगा।
कांग्रेस में भी टूट की संभावना
महाराष्ट्र में विधायकों के निलंबन पर इस ताज़ा घटनाक्रम ने कांग्रेस की चिंतायें भी बढ़ा दी है। कांग्रेस को अब इस बात का डर लगने लगा है कि उसके कम से कम 12 विधायक टूट सकते है और मार्च में होने वाले राज्यसभा चुनाव में खेल हो सकता है। तब विधानसभा स्पीकर से उनको भी राहत मिल सकती है। अगर कांग्रेस के बड़े नेता टूटे तो इससे इंडिया गठबंधन के मनोबल पर असर होगा। दिल्ली में हुयी बैठक में भी इस बात पर चिंता जतायी गयी कि तीनों दलों के पास धनबल और बाहुबल की कमी है। साथ ही सरकारी एजेंसियों के डर से कोई मदद भी नहीं कर रहा, तो चुनाव कैसे लड़ा जाये। कहा जा रहा है कि मराठवाड़ा के एक बड़े कांग्रेसी नेता अशोक चव्हाण अगर टूट गये तो कांग्रेस का मनोबल एकदम कम हो जायेगा।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र की राजनीति का पहिया अगले कुछ महीने एकनाथ शिंदे के आसपास ही घूमना तय है। एक तरफ उन पर बीजेपी सहित गठबंधन को 48 में से 45 लोकसभा जीतने का भार होगा वहीं दूसरी तरफ अगर विधानसभा चुनाव हो गया, तो उनकी पार्टी को कम से कम 50 सीटें लानी ही होगी ताकि अगली सरकार में भी उनकी सुनी जाके, वरना बीजेपी तो शत प्रतिशत अपनी जीत पर ही काम कर रही है।