Hathras stampede: भारत ने 2 जुलाई को एक और भयावह त्रासदी देखी, जब उत्तर प्रदेश के हाथरस (Hathras) में सैकड़ों लोगों ने आपस में ही एक दूसरे को कुचलकर मार दिया। आयोजन धार्मिक था और हाथरस जिले के रतिभानपुर गांव में स्वयंभू बाबा भोले बाबा (Bhole Baba) के सत्संग में भगदड़ (Stampede) मची थी, जहां महिलाओं और बच्चों समेत 121 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इस भगदड़ ने जोधपुर (Jodhpur) हादसे की याद दिला दी। राजस्थान में भी सन 2008 में जोधपुर के मेहरानगढ़ किले (Mehrangarh Fort) में नवरात्रि के पहले दिन चांमुडा माता के दर्शन के लिए भारी भीड़ जुटी थी, इसी दौरान वहां भी भगदड़ मची और उस भगदड़ में 216 बेकसूर लोग बेमौत मारे गए थे। पूरे 16 साल बीत गए, लेकिन अब तक इस हादसे की जांच रिपोर्ट पेश नहीं हुई है। पश्चिम के देशों में इस तरह की दुर्घटनाएं आमतौर पर संगीत समारोहों और नाइट क्लबों में होती हैं, जबकि भारत जैसे विकासशील देशों में अधिकतर दुर्घटनाएं धार्मिक समारोहों में होती हैं। भारत एक धर्मभीरू देश के रूप में जाना जाता है। जोधपुर को तो लोग भूल रहे हैं, लेकिन आखिर हाथरस हादसे की परवाह किसी को है कि नहीं? आगे ऐसे हादसे नहीं होंगे, सरकारों के पास इसका कोई प्लान है?

हाथरस से पहले भी हुए हैं कई गंभीर हादसे
हाथरस के सत्संग में भगदड़ से महिलाओं और बच्चों समेत 121 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। आयोजकों ने करीब 80,000 लोगों के लिए अनुमति मांगी थी, लेकिन धार्मिक समागम में 2.5 लाख लोग शामिल हुए। पिछले एक दशक में भारत में भगदड़ की कई घटनाएं हुईं, जिनमें राजस्थान में 2008 में जोधपुर के मेहरानगढ़ किले का हादसा, मुंबई में 2017 का एल्फिंस्टन रोड़ हादसा, आंध्र प्रदेश का 2015 का गोदावरी पुष्करालु हादसा, मध्य प्रदेश में 2013 का रतमगढ़ मंदिर हादसा, झारखंड में 2019 का देवघर मंदिर हादसा, केरल में 2011 का शबरीमला के हादसे जैसी कई दुर्घटनाओं में हर बार सैकड़ों लोगों की जान गई, लेकिन सरकारों को कोई खास परवाह नहीं दिखी कि बाद में ऐसा हादसा नहीं हो। पागलों की तरह भीड़, अत्यधिक घनत्व, फिसलन भरी ज़मीन, उपदेशक का आशीर्वाद पाने की बेचैनी, भ्रम, चीख-पुकार और डर। 2 जून को सिकंदराराऊ तहसील के फुलराई गांव में स्वयंभू भगवान ‘भोले बाबा’ को सुनने के लिए लाखों भक्त एकत्र हुए थे। सत्संग के अंत में जब भक्त जाने लगे तो भगदड़ मच गई। यह देश में भीड़ द्वारा कुचले जाने की सबसे बुरी घटनाओं में से एक है, हादसे में कुल करीब 121 के आसपास लोग काल के गाल में समा गए।

भारत में ज्यादातर हादसे धार्मिक आयोजनों का
पिछले कुछ सालों में भारत में मंदिरों या धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की कई घटनाएं हुई हैं। लेकिन, ऐसी भगदड़ें क्यों होती हैं? इसके पीछे क्या विज्ञान है? ऐसी परिस्थितियों में कैसे सुरक्षित रहें? आइए समझते हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (आईजेडीआरआर) में 2013 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में होने वाली भगदड़ में 79 प्रतिशत हिस्सा धार्मिक आयोजनों और तीर्थयात्राओं का होता है। हालांकि भीड़भाड़ एक स्पष्ट कारण है, लेकिन बड़े पैमाने पर घबराहट, तंग जगह और अनुचित प्रबंधन अन्य कारण हैं जो भगदड़ का कारण बनते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि भगदड़ की घटनाएं घबराहट के कारण होती हैं। इसे चिंता और भय से निर्धारित मन की स्थिति माना जाता है, जो एड्रेनालाईन के बढ़े हुए स्तर के साथ आती है। परिणामस्वरूप, भागने और लड़ने की प्रवृत्ति सक्रिय हो सकती है। इससे लोग लगातार घबराहट में भागने लगते हैं, शायद अपने रास्ते में आने वाले दूसरे लोगों को भी रौंद देते हैं। भारत में, सुरक्षा, लाइसेंसिंग और पंजीकरण प्रणाली की कमी है। भीड़ जब एक महत्वपूर्ण घनत्व तक पहुंच जाती है, तो वह ख़तरनाक हो जाती है।
-राकेश दुबे / आकांक्षा कुमारी