Rajasthan Election: राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद के खत्म होते ही, सरकार किसकी बनेगी, फिर कांग्रेस (Congress) की या बीजेपी (BJP) की बनेगी, इस पर अटकलों का बाजार गर्म है। फलोदी का सट्टा बाजार कांग्रेस को केवल 65 सीटें दे रहा है और बीजेपी को 125 के आसपास सीटें देकर उसकी सरकार बनवा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव से इस बार ज्यादा वोटिंग हुई है। होने को भले ही ये फर्क सिर्फ एक फीसदी का है, मगर ऐसे में दोनों मुख्य पार्टियों के बीच कम से कम 30 से 40 सीटों का फासला रह सकता है। पिछला चुनाव यानी 2018 का इतिहास देखें, तो ये एक फीसदी वोट ही बीजेपी (BJP) को 163 से 73 और कांग्रेस (Congress) को 21 से 99 तक लाया था। अब इंतजार 3 दिसंबर को मतगणना का है और इंतजार इस बात का भी है कि राजस्थान में राज बदलेगा या हर पांच साल में राज बदलने का रिवाज बदलेगा।
Rajasthan Election फासला 30 से 40 सीटों का रहेगा
फलोदी का सट्टा बाजार भी यही कह रहा है। लोग फलोदी (Phalodi) के सट्टा बाजार पर भरोसा करते हैं। कांग्रेस (Congress) भी उसकी भविष्यवाणी को मानती रही है, मगर इस बार के आकलन पर कांग्रेस को भरोसा नहीं है। हालांकि, राजस्थान में यह आम मान्यता है कि अधिक वोटिंग सत्ता में बैठी सरकार को बदलने के लिए ही होता है। इस बार के चुनाव में भी 74.96 फीसदी तक मतदान हुआ है, जो पिछली बार के मुकाबले लगभग एक फीसदी के आसपास ज्यादा है। राजस्थान की राजनीति के जानकारों तथा मतदान के पैटर्न की गहन जानकारी रखनेवाले विशेषज्ञों की पक्की राय है कि कम वोटिंग होना सत्ताधारी दल के लिए अच्छे संकेत नहीं माना जाते। पिछले विधानसभा चुनाव से 1 फीसदी ज्यादा इस बार वोटिंग हुई है और बीजेपी (BJP) व कांग्रेस (Congress) के बीच फासला कम से कम 30 से 40 सीटों का बन सकता है।
मंत्रियों की सीट पर बंपर मतदान का राज
प्रदेश की पॉलिटिकल परंपरा के प्रतिमान पर परखें, तो साफ लगता है कि राजस्थान में कांग्रेस (Congress) की वर्तमान सरकार के खिलाफ यह मतदान हुआ है। राजस्थान में मतदान के पैटर्न और उसके अंक गणित को गहरे से देखें, तो इतिहास गवाह है कि जब जब ज्य़ादा मतदान हुआ है, तो वह सरकार के खिलाफ ही गया है। कहा जा रहा था कि इस चुनाव में मंत्रियों के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी है और लोग उनको हराने पर तुले हैं, तो फिर प्रदेश की गहलोत सरकार के 7 मंत्रियों की सीटों पर जो बहुत बंपर मतदान हुआ है, उसका क्या मतलब निकाला जाए। यही कि लोग उनको हराने पर उतारू थे, उसी कारण जबरदस्त वोट दिया। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जोधपुर स्थित सरदारपुरा सीट पर अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ है।
गहलोत सहित 18 मंत्रियों को कम मतदान
प्रदेश के मुख्यमंत्री गहलोत सहित 26 मंत्री इस बार चुनाव मैदान में थे। रिकॉर्ड मतदान के बावजूद 18 मंत्रियों के क्षेत्रों में पिछले चुनाव की तुलना में मतदान घटा है। ऐसे में, मंत्रियों के इलाकों में कम मतदान से सीधा सवाल उठ रहा है कि क्या लोगों को कांग्रेस (Congress) की गारंटियों पर भरोसा नहीं रहा या फिर मंत्रियों पर भरोसा नहीं है। या फिर क्या यह माना जाए कि मुख्यमंत्री गहलोत के साथ ही उनकी सरकार के 18 मंत्रियों की सीटों पर भी कम मतदान हुआ है, तो ये सारे ही मंत्री बड़े बहुमत से जीत रहे हैं। मगर, ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि आमतौर पर ये धारणा ये यही रही है कि अधिक मतदान सत्ताधारी दल को नुकसान देता है।
Rajasthan Election : पिछली बार से कम मिला मतदान
प्रदेश में कई विधानसभा क्षेत्रों पर पूरे देश की नजर थी, जिनके वीआईपी सीट कहा जाता है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की परंपरागत सीट सरदारपुरा में पिछले चुनाव यानी 2018 के चुनाव में 67.09 फीसदी वोटिंग हुई थी, जो इस चुनाव में घटकर 64.50 नीचे उतर गई है। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की झालरापाटन सीट पर वोटिंग परसेंटेज गिरा है। झालरापाटन में 2018 के विधानसभा चुनाव में 78.43 फीसदी मतदान हुआ था, मगर इस बार के चुनाव में लगभग पौने 2 फीसदी मतदान गिरकर 76.67 फीसदी मतदान हुआ है। गहलोत सरकार में मंत्री शकुंतला रावत के बानसूर में 4.26 कम मतदान हुआ, तो कामां की विवादास्पद मगर ताकतवर विधायक जाहिदा खान की सीट पर 4 फीसदी और दौसा से मुरारीलाल मीणा की सीट पर 5.98 फीसदी कम वोटिंग हुई है। सिकराय में मंत्री ममता भूपेश की सीट पर 3 फीसदी कम और महेंद्रजीत मालवीया की सीट पर 1.44 फीसदी कम मतदान हुआ है। ये ही नहीं गहलोत सरकार के कई मंत्रियों जैसे सुभाष गर्ग, सुखराम विश्नोई, राजेंद्र यादव, अशोक चांदना, प्रमोद जैन, उदयलाल आंजना, बीडी कल्ला, शांति धारीवाल के इलाकों में पिछली बार के मुकाबले कम वोटिंग हुई है।
ज्यादा मतदान का भी अलग अंकगणित
प्रदेश में बीजेपी (BJP) के दिग्गज और विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ की तारानगर सीट पर 7 फीसदी से भी ज्य़ादा मतदान हुआ है। इसी तरह से पोकरण में सालेह मोहम्मद की को चुनाव में प्रदेश में सबसे सबसे ज्यादा वोटिंग हुई है, जहां उनकी अपनी अल्पसंख्यक समाज के बहुत बड़ी तादाद में वोट हैं, तो हिंदु वोट भी बहुत ज्यादा है। सालेह मोहम्मद से लोग नाराज हैं, मगर वोटों का गणित क्या कहता है, समझना आसान नहीं है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के मुखिया हनुमान बेनीवाल की त्रिकोणीय मुकाबले वाली खींवसर सीट पर पिछली बार के मुकाबले 3 फीसदी वोटिंग कम हुई। ऐसी कई जगहों के मतदान के अपने अलग अलग इशारे हैं।
-राकेश दुबे
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