LokSabha Election 2024: रायबरेली से गांधी परिवार से रिश्ते का सस्पेंस खत्म हो गया है। कांग्रेस (Congress) के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अब गांधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली (Raibareli) से लड़ेंगे, और इसी के साथ लोग आश्चर्यचकित हैं, क्योंकि प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi) अब लोकसभा चुनाव (LokSabha Election) नहीं लड़ेंगी। इससे पहले, सभी को लग रहा था कि राहुल जब दूसरी बार फिर वायनाड़ चुनाव लड़ने चले गए, तो रायबरेली से प्रियंका को ही उम्मीदवार माना जा रहा था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अमेठी (Amethi) की तरह रायबरेली से भी राहुल गांधी चुनाव हार गए, तो उनकी राजनीति का क्या होगा? रायबरेली से सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) सन 2004 से सांसद हैं, और अब राहुल अपनी मां की सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। अमेठी में, गांधी परिवार के करीबी किशोरीलाल शर्मा को स्मृति ईरानी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए चुना गया है। दिलचस्प बात यह है कि 25 साल बाद यह पहली बार होगा जब अमेठी से कोई गांधी चुनाव मैदान में नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के एक साल बाद 1999 में सोनिया ने यहीं से चुनावी शुरुआत की थी। उत्तर प्रदेश की इन दोनों महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है, और कांग्रेस की अंतिम समय की घोषणा ने एक बड़ा मोड़ ला दिया है। राहुल को रायबरेली से चुनाव लड़वाने और प्रियंका गांधी को दूर रखने के इस कदम के पीछे कांग्रेस की रणनीति के पीछे की राजनीति क्या है, यह ज्यादातर लोगों की समझ से परे हैं। लेकिन राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राजनीति में हर काम बहुत सोच समझकर ही होता है, राहुल गांधी को रायबरेली से लड़ाने का फैसला भी सोच समझकर लिया गया निर्णय है।
आखिर राहुल गांधी ही रायबरेली से उम्मीदवार क्यों?
आखिर, किस कारण से कांग्रेस को राहुल गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़वाने का निर्णय लेना पड़ा? इसके जवाब में राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार का कहना है कि इसके पीछे कुछ खास वजहें हैं, जिन्होंने कांग्रेस को इस कदम तक पहुंचाया। सबसे पहला कारण यह कि, 2019 में स्मृति ईरानी से राहुल की हार। परिहार मानते हैं कि अगर राहुल अमेठी से लड़ते तो कांग्रेस ने इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए जो वैचारिक एजेंडा तय किया था, वही पूरी तरह से असफल सकता था। राहुल को रायबरेली से लड़ाने का सबसे अहम कारण बताते हुए परिहार कहते हैं कि उनको अमेठी से दूर भेजकर, स्मृति ईरानी से रोजाना होने वाली उस अनर्गल बहस से ही कांग्रेस ने दूरी बना ली है, जो चुनाव अभियान की कांग्रेस की पूरी योजना को ही पटरी से उतार सकती थी। राजनीतिक विश्लेषक परिहार मानते हैं कि राहुल अमेठी से ही लड़ते, तो चुनाव इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए बीजेपी द्वारा उनके व्यक्तित्व को युद्ध का मैदान बनाया जा सकता था, जबकि चुनाव वास्तव में राजनीति विचारों का युद्ध है। राजनीतिक विश्लेषक परिहार का मानना है कि अमेठी सीट वैसे भी कांग्रेस के लिए अब सुरक्षित नहीं है। उनके मुताबिक इसके अतिरिक्त एक खास बात यह भी है कि यदि राहुल वायनाड और रायबरेली दोनों से जीतते हैं, तो यूपी के साथ अपने परिवार के पुराने संबंधों का हवाला देते हुए, राहुल के लिए वायनाड़ छोड़ना आसान होगा, क्योंकि वैसे भी वे एक बार वहां के सांसद रह लिये हैं।
प्रियंका के लिए फिलहाल चुनावी शुरुआत न होने के संकेत
राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने का मतलब साफ है कि प्रियंका गांधी के लिए चुनावी शुरुआत का कोई रास्ता नहीं खुला है। उल्लेखनीय है कि सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में रायबरेली में चुनाव व संसदीय क्षेत्र को प्रियंका ही सम्हालती रही है। कांग्रेसी राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर मानते हैं कि रायबरेली ही नहीं, देश भर में कई लोगों ने मान लिया था कि प्रियंका ही यहां से 2024 का चुनाव लड़ेंगी। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रियंका से अमेठी या रायबरेली से चुनाव लड़ने का अनुरोध भी किया था, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया। सोनवलकर के मुताबिक प्रियंका को चुनाव लड़ाने से इंकार के पीछे यह कारण भी संभव है कि कांग्रेस के कुछ बड़े नेता मानते हैं कि दोनों भाई बहन के चुनाव जीतने पर संसद में तीन गांधी होंगे, और इससे बीजेपी का उन पर लगाया जाने वाला वंशवाद की राजनीति का आरोप और मजबूत होता। लेकिन सोनवलकर का मानना है कि इससे बीजेपी का यह दावा फिर से मजबूत हो जाएगा कि गांधी परिवार उनसे डरता है। सोनवलकर का मानना है कि अगर वह चुनाव लड़तीं हैं तो कांग्रेस को उनकी स्टार पावर से फायदा हो सकता था। सोनवलकर कहते हैं कि प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ना चाहिए, क्योंकि चुनावी राजनीति में रहने से मतदाताओं के बीच पार्टी का अच्छा संदेश पहुंचेगा।
कांग्रेस को प्रियंका के उम्मीदवार न होने का क्या नुकसान?
प्रियंका गांधी के अमेठी या रायबरेली से चुनाव न लड़ने और राहुल गांधी को दो दो जगहों से चुनाव लड़ाने को जहां कुछ लोग कांग्रेस की एक सोची-समझी योजना मानते हैं, वहीं नवभारत टाइम्स के राजनीतिक संपादक अभिमन्यु शितोले का मानना है कि इससे पार्टी को मौजूदा लोकसभा चुनावों में और यहां तक कि लंबे समय में भी नुकसान ही होगा। राहुल के अमेठी से रायबरेली जाने से भाजपा इसे गांधी परिवार के डर के रूप में भी बेच सकेगी। शितोले बताते हैं कि बीजेपी लोगों के बीच अब यह प्रचारित करेगी कि राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी से हार के डर से अमेठी छोड़ दिया, और इससे अब अमेठी से स्मृति की रिकॉर्ड जीत को भी कोई रोक नहीं सकता। वैसे, वायनाड़ में 26 अप्रेल को मतदान के बाद राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने की घोषणा के पीछे कांग्रेस की रणनीति का खुलासा भी हो गया है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को रायबरेली से लड़ने को सोच समझकर लिया गया निर्णय बताया है। इससे सहमति जताते हुए शितोले कहते हैं कि दूसरी जगह से चुनाव लड़ने का वायनाड़ में नुकसान ना हो जाए, इसीलिए वहां पर 26 अप्रेल को जब मतदान होने के बाद रायबरेली से राहुल की उम्मीदवारी घोषणा हुई। शितोले कहते हैं कि प्रियंका के चुनाव लड़ने से कांग्रेस की ताकत में इजाफा संभव होगा, लेकिन कांग्रेस की रणनीति तय करने वाले वरिष्ठ राजनेताओं के मन में राहुल की राजनीति व प्रियंका के भविष्य को लेकर क्या है, इसे भी समझना होगा।
वायनाड़ में मतदान के बाद रायबरेली के रुख की राजनीति
राहुल गांधी का रायबरेली में मुकाबला यूपी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह से होगा, जिन्होंने पिछली बार, 2019 में भी रायबरेली से चुनाव लड़ा था, मगर वह सोनिया गांधी से हार गए, लेकिन वह 2014 के मुकाबले वे अपनी हार का मार्जिन आधा करने में कामयाब रहे। उधर, 2019 में राहुल अमेठी से स्मृति ईरानी से हार गए थे। गांधी परिवार के वफादार किशोरीलाल शर्मा को अमेठी सीट के लिए चुना गया है और अब उनका मुकाबला भाजपा की स्मृति ईरानी से होगा। राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी से चुनावी शुरुआत की थी। तीन बार अमेठी से सांसद रहने के बाद, चौथी बार 2019 में उन्हें करारा झटका लगा जब भाजपा की स्मृति ईरानी ने उन्हें 55,120 वोटों के अंतर से हरा दिया। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार का कहना हैं कि प्रियंका गांधी को चुनाव न लड़वाने से बीजेपी का यह दावा फिर से मजबूत हो जाएगा कि गांधी परिवार उनसे डरता है।
रायबरेली से गांधी परिवार का नाता बरकरार रहने के वादा
राहुल के रायबरेली में स्थानांतरित होने के साथ, यूपी निर्वाचन क्षेत्र का गांधी परिवार और उसके दोस्तों के साथ वर्षों पुराना संबंध जारी है। राहुल के दादा फिरोज गांधी आज़ादी के बाद पहले दो चुनावों में इस सीट से जीते थे, फिर फिरोज गांधी की की पत्नी इंदिरा गांधी 1967, 1971 और 1980 में रायबरेली से सांसद रहीं। हालांकि, 1980 में, वे तेलंगाना के मेडक से भी जीत गईं, तो रायबरेली के बजाय मेडक सं सांसद बने रहने फैसला किया। एक मात्र बार जब कांग्रेस ने इस सीट का प्रतिनिधित्व नहीं किया, वह 1977 का दौर था, में आपातकाल के बाद हुआ था जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जनता पार्टी के राज नारायण ने हराया था। फिर सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया, तो उन्होंने पड़ोसी सीट अमेठी को चुना, लेकिन फिर 2004 में अपने बेटे राहुल के लिए इसे खाली करके 2004, 2009, 2024 से 2019 के बीच चार बार रायबरेली से इस साल फरवरी में सोनिया ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करते हुए रायबरेली को अपने विदाई संदेश में विश्वास जताया था कि जो सीट हमेशा गांधी परिवार के साथ रही है, भविष्य में भी गांधी परिवार उनका समर्थन जारी रखेगा। उसी वादे के मुताबिक राहुल गांधी अब रायबरेली से उम्मीदवार हैं, नतीजा क्या होता है, देखना दिलचस्प होगा।
-आकांक्षा कुमारी (लेखिका चुनावी रणनीतिक जानकार हैं )