Rajasthan: विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद कांग्रेस (Congress) नेता प्रमोद भाया जैन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मिल लिए हैं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) और राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से भी मिल लिए हैं। इसके साथ ही अपने नेता अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) से भी मिल कर उन्होंने आशीर्वाद ले लिया है। प्रमोद जैन भाया (Pramod Jain Bhaya) की अपने नेताओं से इन मुलाकातों के निहितार्थ जिन लोगों को समझ में आ रहे हैं, वे जानते हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की इस जीत का असर आगामी राजनीति पर स्पष्ट रूप से दिखेगा। अंता में कांग्रेस का जीतना आसान नहीं था। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (Bhajanlal Sharma) के नेतृत्व में बीजेपी (BJP) की सरकार पूरी ताकत से भाया के सामने खड़ी थी। चुनाव क्षेत्र बीजेपी की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का इलाका हैं, उनके बेटे दुष्यंत सिंह 5 बार से सांसद हैं। इस उपचुनाव में कांग्रेस के बागी उम्मीदवार नरेश मीणा निर्दलीय थे। इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत के नजदीकी प्रमोद जैन भाया की इस जीत ने प्रदेश की राजनीति को कई स्तरों पर प्रभावित किया है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि अंता में भाया की इस जीत ने जहां कांग्रेस में नया आत्मविश्वास भरा है, वहीं गहलोत की संगठनात्मक पकड़ और नेतृत्व क्षमता को भी सार्वजनिक तौर पर साबित किया है।

गहलोत की रणनीति से कांग्रेस में चुनावी उत्साह
कांग्रेस की इस जीत के संकेत साफ है कि अशोक गहलोत की कांग्रेस के भीतर और बाहर पकड़ बरकरार है, उसी का सबसे बड़ा प्रमाण रूप में प्रमोद जैन भाया की जीत के रूप में सामने आया है। भाया लंबे समय से गहलोत के विश्वस्त माने जाते हैं और उनकी मजबूत पकड़ का फायदा कांग्रेस को अंता जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में भी मिला। गहलोत की राजनीति को गहराई से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार के अनुसार अंता की बेहद मुश्किल राजनीतिक परिस्थितियों में भी कांग्रेस की 15 हजार वोट से हुई भारी जीत का असर राज्य की आगामी राजनीति पर स्पष्ट रूप से दिखेगा। गहलोत की रणनीति और जमीनी संगठन की समझ ने कांग्रेस को फिर से चुनावी उत्साह दिया है। परिहार कहते हैं कि प्रमोद जैन भाया की भूमिका चुनाव अभियान के दौरान एक अनुभवी स्थानीय नेता के रूप में रही, जिससे भाजपा के अपेक्षाकृत नए लेकिन चर्चित उम्मीदवार मोरपाल सुमन पिछड़ गए।
कांग्रेस को भाया की जीत से मिला रणनीतिक लाभ
अंता के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेतृत्व में फिर से ऊर्जा का संचार किया है। हाल के विधानसभा चुनावों की पराजय के बाद मिली यह जीत पार्टी के लिए मनोवैज्ञानिक बढ़त है, जिससे गहलोत खेमा मजबूत होकर उभरा है। राजनीति की जानकार अनीता चौधरी अपने एक लेख में लिखती हैं कि यह परिणाम न सिर्फ गहलोत के लिए प्रतिष्ठा की वापसी है, बल्कि कांग्रेस को राज्य में बिखरी चुनौती के बावजूद समेटने का भरोसा भी मिला है। कांग्रेस ने भाया जैसे अनुभवी व लोकप्रिय नेता को टिकट दिया, यह निर्णय पार्टी रणनीति के लिहाज से सही साबित हुआ। इस उपचुनाव में कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया 69,571 वोट लेकर जितने में सफल रहे, तो बीजेपी के मोरपाल सुमन को 53,959 वोट हासिल हुए। बहुत बड़बोले और विवादास्पद पूर्व कांग्रेसी निर्दलीय नरेश मीणा को केवल 53,800 वोट ही मिले। हालांकि, इस चुनाव में गहलोत ने प्रचार के दौरान नरेश मीणा की बहुत बचते हुए रणनीतिक तारीफ की, लेकिन उन्हें उत्साही और भटका हुआ नौजवान भी बताया।

गहलोत गुट को नई दिशा और आत्मविश्वास
राजस्थान की राजनीति के जानकारों की राय में कांग्रेस के प्रमोद भाया की उपचुनाव में जीत आगामी चुनावों में कांग्रेस और खासकर गहलोत गुट को नई दिशा और आत्मविश्वास दे सकती है, जबकि भाजपा को आत्ममंथन के लिए मजबूर करती है। राजनीतिक विश्लेक निरंजन परिहार कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत का सांगठनिक नियंत्रण और जमीनी पकड़ कांग्रेस को फिर से सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। राजनीतिक पत्रकार अनीता चौधरी कहती है कि इस जीत ने कांग्रेस में आत्मविश्वास और गहलोत खेमे को मजबूत किया है। राजकुमार सिंह का मानना है कि गहलोत की सक्रियता पार्टी के भविष्य और उसकी भूमिका को लेकर स्पष्ट संदेश देती है। राजस्थान की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हरिसिंह राजपुरोहित कहते हैं कि अंता उपचुनाव में कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया की जीत ने राजस्थान की राजनीति को न केवल नया मोड़ दिया है, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मजबूती और नेतृत्व क्षमता का भी सार्वजनिक प्रदर्शन किया है।
प्रदेश की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा
यह उपचुनाव बीजेपी के लिए एक मजबूत सीट गंवाने जैसा रहा। इसका संदेश है कि भाजपा को अब अपनी आंतरिक रणनीति और संगठनात्मक कमजोरी पर गंभीरता से काम करना होगा। निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा के प्रभाव को बीजेपी ने कमतर आंका, जिससे उसके परंपरागत जातिगत वोटों में भी सेंध लगी। उधर, यह अशोक गहलोत का ही ये प्रभाव था कि बीजेपी उम्मीदवाल मोरपाल सुमन की जाति के ज्यादातर माली वोट भी कांग्रेस के प्रमोद भाया को मिले। इस जीत के बाद से प्रदेश में आगले विधानसभा चुनाव में गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की मजबूत वापसी के मजबूत संकेत का नरेटिव सेट हो रहा है। यही नरेटिलव अगले कुछ वर्षों की राजनीति पर असर डाल सकता है। वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार राजकुमार सिंह का मानना है कि गहलोत न केवल प्रदेश राजनीति में, बल्कि केंद्रीय स्तर पर भी अपनी अब तक की भूमिका की वजह से मज़बूत नेता माने जाते हैं, क्योंकि लगातार विपरीत हालात में भी वे पार्टी के भीतर ठोस आधार बना रहे हैं।
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राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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