निरंजन परिहार
श्रीदेवी चली गई। जिंदगी के 54 साल में से पूरे 50 साल तक फिल्मों में काम किया। और चली गईं। गई तो वे दुबई थीं। लेकिन किसको पता था कि दुबई से ही सदा सदा के लिए वहां चली जाएंगी, जहां से कोई वापस नहीं लौटता। परियों सी थी, परियों के देस चली गईं। लेकिन श्रीदेवी को इस तरह से नहीं जाना चाहिए था। बहुत जल्दी चली गए। चौवन साल भी भला कोई ऊम्र होती है दुनिया से चले जाने की। वह भी अचानक। ना कोई बीमारी, ना ही कोई एक्सीडेंट। कोई नहीं जाता इस तरह। खासकर वो तो कभी नहीं जाता, जिसको दुनिया ने इतना अथाह प्यार दिया हो। पर, फिर भी श्रीदेवी चली गईं। दक्षिण भारत के शिवाकाशी में 13 अगस्त 1963 को वे इस दुनिया में आई तो थीं लेकिन 24 फरवरी 2018 की रात दुबई में हम सबसे विदा ले ली। सिर्फ चार साल की ऊम्र में पहली फिल्म करनेवाली श्रीदेवी पूरे पचास साल तक फिल्मों में काम करती रहीं।
हमारे सिनेमा में अभिनय के मामले में न तो श्रीदेवी के जैसी और ना ही उनसे पहले कोई अभिनेत्री ऐसी हुई, जिसने बहुत कम सालों में बहुत ज्यादा सालों तक सिनेमा के संसार में काम किया हो। और यह भी कि हमारे सिनेमा में कदम रखते ही वे देश के घर – घर में बहुत बड़ी हीरोइन के रूप में पहचान बना गईं। वास्तविक जीवन में बेहद शर्मीली और करीब करीब अंतर्मुखी स्वभाव की श्रीदेवी कैमरे के सामने आते ही जैसे जीवंत हो उठती थीं। अपनी गजब की खूबसूरती, मादक अदाओं और कसावट भरे अभिनय से दर्शकों के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़नेवाली श्रीदेवी ने हिंदी फिल्मों में तो खैर बाद में काम किया, लेकिन तमिल, मलयालम, तेलुगू, कन्नड़ में तो पहले से ही वे बहुत बड़ी अभिनेत्री थीं। करीब 50 साल के अपने फिल्मी करियर में श्रीदेवी ने लगभग 200 फिल्मों में काम किया। लेकिन हिंदी की कुल 63 फिल्में खीं। अपने हिंदी सिनेमा का सफर शुरू करनेवाली श्रीदेवी की ‘हिम्मतवाला’, ‘सदमा’, ‘जाग उठा इंसान’, ‘तोहफा’, ‘आखिरी रास्ता’, ‘नगीना’, ‘कर्मा’, ‘सुहागन’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘चांदनी’, ‘लम्हे’, ‘खुदा गवाह’, ‘रूप की रानी चोरों का राजा’, ‘जुदाई’, जैसी फिल्में आनेवाले कई सालों तक मील का पत्थर बनी रहेंगी।
आपको, हमको और सबको लगता है कि चाहे कुछ भी हो जाता, श्रीदेवी को हमारे बीच से इस तरह से अचानक तो बिल्कुल नहीं जाना चाहिए था। कल तक वे हम सबके दिलों में बसी थीं। लेकिन प्रकृति का मजाक देखिये कि एक झटके में वे दिल से निकलकर यादों में समा गईं। सच्ची कहें, तो यह सही वक्त नहीं था, कि वे हमें छोड़कर चली जाएं और फिर हमको याद आएं। क्योंकि असल में उनका अपना वक्त अब उनके हाथ आया था। यही वह ऊम्र थी, जब वे अपना कुछ ज्यादा करके दिखाने को तैयार थीं। लेकिन, उनकी फिल्म मिस्टर इंडिय़ा के गीत में कहें, तो – ‘जिंदगी की यही रीत है…।’ कहते हैं कि विधि जब हमारी जिंदगी की किताब लिख रही ती है, तो मौत का आखरी पन्ना सबसे पहले लिख डालती है। ताकि सब कुछ वक्त के हिसाब से बराबर चलता रहे। श्रीदेवी की जिंदगी की किताब विधि ने कम पन्नों की लिखी थी। लेकिन अब श्रीदेवी ने शायद इस सच्चाई को बहुत गहरे से जान लिया था। इसीलिए उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपनी जिंदगी के पन्नों की साइज आपसे, हमसे और दुनिया के कई करोड़ लोगों की जिंदगी के पन्नों से बहुत ज्यादा बड़ी कर ली थी। उनको जो कुछ जीना था, वह फटाफट जी गईं।
दरअसल, श्रीदेवी हमारे सिनेमा की वह अभिनेत्री थीं, जिनके लिए किरदार गढ़े जाते थे, रोल लिखे जाते थे, दृश्य तराशे जाते थे। भरोसा ना हो तो ‘चांदनी’ का उनका वह सिर्फ एक नृत्य देख लीजिए, जिसमें वे बहुत आक्रामक मुद्रा में अकेली तांडव नृत्य कर रही हैं। हम सबने उनकी फिल्मों में देखा कि वे हर दृश्य में जान डाल देती थीं। हर ताल पर उनकी अद्भुत नृत्यकला, भावप्रणव भंगिमांएं, लचकता लहराता बदन और आंखों में आक्रोश की अदाएं अवाक होने को मजबूर कर देती थीं। अपनी अनेक फिल्मों में अप्सरा के अंदाज में झक्क धवल वस्त्रों में नज़र आईं श्रीदेवी के लचकते, बलखाते अदभुत अंदाज वाले नृत्यों ने भी दुनिया को उनका दीवाना बना दिया था। ज्यादा साफ साफ कहें, तो भारतीय सिनेमा में अपने जमाने में माधुरी दीक्षित के बाद वे अकेली अभिनेत्री रहीं, जो सिनेमा के परदे से आंखों के जरिए सीधे दर्शक के दिल में उतर जाने का दम रखती थीं। ‘चांदनी’ का ‘तेरे मेरे होठों पे मीठे मीठे गीत मितवा’ या ‘लम्हे’ का उनका कोई भी गीत नृत्य देख लीजिए, वे सीधे दिल में ना उतरे तो कहना।
पूरे पांच दशक तक अपनी दिलकश अदाओं, दमदार अभिनय, सवाल पूछती सी आंखों, शरारती मुस्कान और लोकलुभावन अदाओं से करोड़ों दिलों पर राज करने वाली श्रीदेवी हमारे सिनेमा की दिग्गज अभिनेत्री थीं। जब वे सिनेमा में बहुत सक्रिय थीं, तो उनका सिर्फ नाम ही उस फिल्म की सफलता की गारंटी होता था। नब्बे के दशक में जब बहुत सारी फिल्में एक करोड़ रुपये में बन जाया करती थीं, उन दिनों भी श्रीदेवी एक फिल्म में काम करने की फीस के तौर पर एक करोड़ रुपए लेती थीं। श्रीदेवी जब परदे पर दिखती थीं, तो किरदार भले ही कोई भी हो, उनमें जिंदगी का जज्बा दिखता था। वह जज्बा, जो जिंदगी से भरपूर प्यार कर रहा होता था। यह जज्बा प्यार की परवानगी सिखाता था। और पूरे परवान पर चढ़ी जिंदगी की वो जंग भी उनके अभिनय में हुआ करती थी, जिसको जीत कर जिंदगी और बड़ी हो जाया करती है। श्रीदेवी तो सिर्फ 54 की ऊम्र में जिंदगी को जीतकर चली गईं। अब वे सिर्फ उनकी ‘लम्हे’ के गीत ‘ये लम्हे ये पल हम बरसों याद करेंगे’ की तर्ज पर हमारी यादों में बरसों तक रहेंगी, क्योंकि जिंदगी की यही रीत है।