Rahul Gandhi: लोकसभा में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) प्रतिपक्ष के नेता होंगे। आखिर 11 दिन बाद इस प्रस्ताव पर राहुल मान गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjuna Kharge) के घर 25 जून को हुई इंडिया ब्लॉक की मीटिंग में राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) बनाने पर फैसले पर मुहर लगी और इस मामले में प्रोटेम स्पीकर को पत्र भी लिख दिया गया है। खास बात यह है कि लोकसभा (Lok Sabha) को 10 साल बाद विपक्ष का नेता मिलेगा। पिछले एक दशक से कांग्रेस (Congress) अपना विपक्ष का नेता बनाने लायक सीटें जीत ही नहीं सकी थी। इस बार कांग्रेस 99 सीटें जीतकर विपक्ष का नेता पद मिलने लायक नहीं है। हालांकि 14 जून को जब राहुल के बारे में विपक्ष का नेता बनने के प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी और फैसला लिया गया था, तो राहुल ने विचार करके जवाब देने को कहा था। माना जा रहा था कि राहुल की नेता विपक्ष बनने के बजाय कांग्रेस संगठन में रहकर पार्टी को मजबूत करना उनकी प्राथमिकता रही। लेकिन आज 25 जनवरी की रात को घोषित कर दिया गया है कि राहुल ही विपक्ष के नेता होंगे। हालांकि, विपक्ष के नेता पद को लेकर राहुल गांधी कितने सफल होंगे, राजनीतिक हलकों में इस पर कई लोगों के अलग अलग विचार हैं।
इंडिया अलायंस के नेताओं का सामूहिक फैसला
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के सरकारी निवास पर इंडिया अलायंस की बैठक हुई, जिसमें लगभग सभी पार्टी के नेता मौजूद थे। इस बैठक में जो फैसला हुआ उसकी जानकारी देते हुए कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बताया कि कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने लोकसभा के ‘प्रोटेम स्पीकर’ भर्तृहरि महताब को राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष नियुक्त करने के कांग्रेस व इंडिया गठबंधन के फैसले के बारे में सूचित करते हुए पत्र भेजा है। राहुल गांधी इस बार दो संसदीय क्षेत्रों, केरल के वायनाड और यूपी के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए थे, लेकिन 15 जून को लोकसभा सदस्यता की शपथ लेने से पहले उन्होंने वायवनाड़ से इस्तीफा दे दिया था और संसद में रायबरेली का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया।
एक दशक तक खाली रहा नेता प्रतिपक्ष का पद
खास बात यह है कि कांग्रेस को दस साल बाद सदन में विपक्ष का नेता पद मिलने जा रहा है। पूरे एक दशक तक यह पद खाली ही रहा, क्योंकि 2014 और 2019 में लगातार दो चुनावों में सदन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस विपक्ष का नेता बनने लायक सीटें ही जीत नहीं पाई थी। इस बार कांग्रेस को 99 सीटें मिली हैं, हालांकि राहुल गांधी के दो सीटों से जीतने के कारण फिलहाल उसके 98 सींसद ही हैं। एक दशक के बाद लोकसभा में विपक्ष के पास अपना भी कोई नेता होगा। नरेंद्र मोदी के पहले प्रधानमंत्री काल से ही यानी सन 2014 से लोसकभा में विपक्ष का नेता नहीं था। आखिरी बार सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रही थीं। लेकिन सन 2014 और सन 2019 के लोकसबा चुनावों में कांग्रेस अपने 54 सांसद भी नहीं जिता पपाई थी, और संसदीय नियमों के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए किसी भी दल को लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 10 फीसदी यानी 54 सांसद जिताकर सदन में लाना होता है, जो बीते दो चुनावों से कांग्रेस कर नहीं सकी थी। लेकिन इस बार देखें, तो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और विपक्षी दलों के गठबंधन ने पिछले दो चुनाव के मुकाबले शानदार प्रदर्शन किया है।
पंद्रह दिन बाद आखिर मान गए राहुल गांधी
लगभग एक पखवाड़े पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाने की मांग उठी थी। समिति के सदस्यों ने प्रस्ताव भी पारित किया था कि राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता नियुक्त किया जाना चाहिए। जिस पर राहुल गांधी ने इस प्रस्ताव को स्वीकारने के बारे में सोचने के लिए कुछ वक्त मांगा था। लेकिन आज 14 दिन बाद उस फैसले पर मुहर लग गई। हालांकि, 14 दिन का समय लेने के पीछे की राजनीति के कारण लताशने वाले कहते हैं कि राहुल गांधी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर कितने सफल होेगे, इस पर अभी कई तरह के सवाल है। खास बात यह है कि राहुल ने इतने दिन सोचने में लगाए, तो फिर तो वे सदन में लिए जानेवाले फैसलों पर भी ज्यादा सोचेंगे, जो कि उचित नहीं होगा।
-साक्षी त्रिपाठी