Devendra Fadnavis: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र ने सत्ता सम्हाल ली हैं और इसी के साथ फडणवीस महाराष्ट्र में बीजेपी के पहले और तीसरी बार बने मुख्यमंत्री के रूप में दिग्गज नेता भी माने जाने लगे हैं। अब वे तीन बार मुख्यमंत्री पद सम्हालने वाले शरद पवार की बराबरी में भी आ गए हैं। फडणवीस के मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश की राजनीति को कई सारे सवालों के जवाब भी मिल गए हैं और यह राज भी सामने आ गया है कि मुख्यमंत्री का नाम तय करने में बीजेपी को आखिर इतने दिन क्यों लगे। जैसा कि पता चला है, मुख्यमंत्री का नाम तो केवल प्रतीक था, असल में तो यह सारी कवायद महाराष्ट्र के समूचे सियासी बीज गणित को ही बदलने की कवायद थी, जिसमें जाति, समाज, वर्ग, क्षेत्र और भौगौलिक परिस्थितियों के अध्ययन के साथ नई राजनीति की स्थापना की जाएगी। निश्चित रूप से यह भी किस चेहरे के जरिए महाराष्ट्र की राजनीति को जड़ से ही बदलने की इस योजना को सफल किया जाए।
महाराष्ट्र में नई किस्म की राजनीति स्थापित करने की कोशिश
बीजेपी आलाकमान के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे निर्णयात्मक नेताओं के बावजूद बीजेपी को इतना समय केवल इसीलिए लगा क्योंकि असल में बीजेपी अब महाराष्ट्र का समूचा सियासी चेहरा ही बदलने को बेताब है। बीजेपी की अंदरूनी राजनीति की समझ रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि आजादी के बाद से महाराष्ट्र में अब तक लगातार मजबूत होती जा रही पारिवारिक राजनीति को पूरी तरह से ठिकाने लगाने की शुरूआत अब होगी। परिहार कहते हैं कि इसी के साथ जातिगत वोटिंग पैटर्न की जकड़न को तोड़ने, ओबीसी को नए सिरे से आपस में जोड़ने, दलित धारा को नया मुकाम देने और मराठा राजनीति के सम्मानजनक समायोजन की रणनीति को कार्यरूप देने की प्लानिंग भी लागू होगी। इसके साथ ही महाराष्ट्र में अब पूरी तरह से राजनीति का गुजरात मॉडल लागू हो सकता हैं, जहां किसी भी नेता की व्यक्तिगत तौर पर पार्टी से कोई बड़ी हैसियत नहीं होगी। महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार संदीप सोनवलकर कहते हैं कि बीजेपी आलाकमान यह तो स्वीकार करता रहा कि विधानसभा चुनाव में देवेंद्र फडणवीस सबसे मुखर रहे और बीजेपी को 132 सीटें जिताने में उनकी जबरदस्त प्लानिंग भी काम आई। लेकिन पेंच भी उन्हीं के नाम पर फंसाए रखा था। सोनवलकर कहते हैं कि एकनाथ शिंदे से साफ तौर पर कहलवाया गया कि उन्हें किसी पद की लालसा नहीं हैं और अजीत पवार को पहले से ही साथ दिखाया गया, ताकि एकजुटता का अहसास हो सके।
कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे ज्यादा कमजोर होंगी
बीजेपी की राजनीति की गहन जानकारी रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार का बताते हैं कि बीजेपी नेतृत्व इस मुगालते में कतई नहीं है कि महाराष्ट्र में उसे भारी बहुमत मिल गया है, तो अब कोई दिक्कत नहीं है। बल्कि सहयोगियों को भी मजबूती से साथ बने रहने पर ही ऊपरवालों का पूरा साथ मिलते रहने का संदेश दे दिया गया है। परिहार कहते हैं कि तस्वीर साफ है कि आने वाले दिनों में आने वाले कुछ दिनों में कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना वर्तमान से भी ज्यादा कमजोर होंगी और महाराष्ट्र में सियासत के समीकरणों का बिल्कुल नया चेहरा सामने आएगा। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार की बात से सहमति जताते हुए वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर कहते हैं कि बीजेपी इस कोशिश में है कि परिवारों की पनपती राजनीति का अंत हो और आम आदमी में से नेतृत्व का विकास हो। बीजेपी आलाकमान की राजनीति पर निगाह रखने वाले परिहार बताते हैं कि आने वाले कुछ सालों में कई कई दशकों तक लगातार कुछ लोगों के ही सियासत का सबसे बड़ा चेहरा बने रहने की सियासत का भी समापन होगा।
सहयोगी दलों को भी मजबूत करने की कोशिश में बीजेपी
अब महाराष्ट्र की राजनीति अपने पुराने तौर तरीकों से पूरी तरह से आजाद होकर राजनीति की नई राह पकड़ेगी। नवभारत टाइम्स के राजनीतिक संपादक अभिमन्यु शितोले कहते हैं कि कहते हैं कि इतने दिनों की लंबी कवायद का सार यही रहा कि बीजेपी आलाकमान प्रदेश में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और एनसीपी अजीत पवार को पहले से ज्यादा मजबूत करते हुए महाराष्ट्र की राजनीति को कैसे मजबूत किया जाए। शितोले की राय में बीजेपी आलाकमान की कोशिश होगी कि तीनों दलों को भारी बहुमत मिला है, तो ये मजबूती और मजबूत बने, ताकि एक मजबूत सरकार का संदेश रहे। वैसे भी शिंदे और अजीत पवार बीजेपी के सामने कभी आंख दिखाने वाले साबित नहीं हो सकते। इनको सत्ता का साथ सुहाता है और बीजेपी से इनकी राजनीतिक धारा लगभग सेट हो गई है।
पहले भी कई बार देरी होती रही है सरकार बनाने में
महाराष्ट्र में सरकार बनाने में देरी के मामले पर बीजेपी प्रवक्ता संदीप शुक्ला कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सरकार बनाने में देरी कोई पहली बार हुई है। इससे पहले भी चुनाव के नतीजे आने के बाद सन 2004 में 15 दिन, 2009 में 14 दिन और 2014 में 11 दिन बाद सरकार बनी। शुक्ला कहते हैं कि हर बार के अपने अलग कारण थे, तो इस बार भी कुछ खास कारण। वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह का कहना है कि बीजेपी की ओर से साथी दलों को सबसे पहले तो साथ जोड़े रखने और उनकी पार्टी के विकास में बीजेपी बाधक नहीं बनेगी, यह विश्वास दिया गया है। इस विश्वास के बाद ही शिंदे और अजीत पवार से साफ तौर पर कहलवाया गया कि महाराष्ट्र में सरकार गठन के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो भी कहेंगे, वह उन्हें मंजूर होगा। राजकुमार सिंह कहते हैं कि यह पूरी कवायद एकजुटता दिखाने की रही है।
विदर्भ को अलग प्रदेश बना दे तो कोई नई बात नहीं
बीजेपी की राजनीति को जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार हरि सिंह कहते हैं कि कोई जरूरी नहीं कि आने वाले कुछ महीनों में महाराष्ट्र के बहुत बड़ा प्रदेश होने के कारण विदर्भ प्रदेश की मांग फिर से शुरू हो जाए। क्योंकि विदर्भ के राजनीतिक हालात कुछ ऐसे हैं कि आने वाले कई सालों तक बीजेपी वहां लगातार राज करती रह सकती है। विदर्भ इस चुनाव से पहले तक कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। इस बार वहां कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है, तो अब विदर्भ अगर अलग प्रदेश बन भी जाता है, तो बीजेपी के खाते में एक और मजबूत प्रदेश रहेगा। हरि सिंह कहते हैं कि विदर्भ अगर अलग प्रदेश बनता है तो, संघ परिवार का मुख्यालय होने के कारण भी वहां बीजेपी को आने वाले कई सालों तक कोई ज्यादा दिक्कतें नहीं आनी है।
बहुमत मजबूत मिला है, तो सरकार भी मजबूत दिखेगी
अब महाराष्ट्र में सत्ता में बने रहने के बारे में बीजेपी आलाकमान की दूरगामी राजनीति रहेगी। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि पार्टी इस कोशिश में रहेगी कि महाराष्ट्र अब जिस नए मोड़ पर है, उसी मोड़ से उसे नई राह पर लाया जाए। आलाकमान चाहता भी है कि एकनाथ शिंदे और अजीत पवार, इन दोनों के साथ से ही महाराष्ट्र की राजनीति अब तक जिस परंपरागत ढर्रे पर चलती रही है, उसे नए मोड़ देने की कोशिश में है, तथा उसी इरादे से उनको सरकार भी सौंपी गई है। परिहार कहते हैं कि आलाकमान की कोशिश है कि बीजेपी को बहुमत अगर मजबूत मिला है, तो उसकी सरकार भी मजबूत दिखे। राजनीतिक विश्लेषक सोनवलकर बताते हैं कि बीजेपी की नजरें 2029 के लोकसभा चुनाव पर भी हैं, जिसमें महाराष्ट्र की ताकत से केंद्र में लगातार चौथी बार बीजेपी को सत्ता में आने का सपना भी एक कारण है। इसीलिए लंबे मंथन के बाद फडणवीस को तीसरी बार कमान सौंपी गई है ताकि बीजेपी अपने नजरिये से महाराष्ट्र में नई राजनीति का निर्माण कर सके।