Happy Diwali : किसी जमाने में भले ही दीपावली (Diwali) शुद्ध रूप से धार्मिक उत्सव होता रहा होगा, लेकिन जब से अपन समझदार हुए हैं, आज तक अपनी समझ में तो यह बिल्कुल नहीं आया कि दीपावली (Diwali) व्यापार का त्यौहार है या त्यौहार का व्यापार (Business)। बाजारों में जिस तरह से लोग उमड़ पड़ रहे हैं, बाजार सज रहे हैं और धंधों की धमक बढ़ती जा रही है, उसे देखकर तो कतई नहीं लगता कि यह हमारी धार्मिक आस्था से जुड़ा पर्व है।
कहीं भी जाइए, दीपावली (Diwali) पर केवल व्यापार की बातें ही सुनने को मिलती हैं। जबकि बचपन में सुनते रहे थे कि दीपावली (Diwali) भगवान राम (Ram) के घर आगमन का उत्सव है और भगवान महावीर (Mahaveer) के निर्वाण का महापर्व है। उसी दौर में बाजारों में जिस तरह का माहौल देखने को मिलता था, हम देखते थे कि दीपावली (Diwali) हर तरफ रोशनी का त्यौहार है। जबकि आज तो साफ तौर पर लगता है कि यह तो शुद्ध रूप से धंधे की धमक, चेहरों की चमक और व्यापार (Business) की दमक का पर्व है। क्योंकि सुन रहे हैं कि 2023 की इस दीपावली पर देश के सारे बाजारों में लगभग साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये का व्यापार (Business) होने की संभावना है।
दीपावली के सांस्कृतिक महत्व और जीवन में घुस गए धंधे के बीचत सबसे बड़ा सवाल केवल यही है कि दीपावली (Diwali) का जो वास्तविक संदेश है कि मन के अंधेरे को समाप्त करके जीवन को चमकाना है, तो क्या हम कभी अपने अंधेरों से मुक्त हो पायेंगे और क्या कभी दूसरों के तो छोड़िये, खुद के जीवन में भी उजाले को स्थापित कर सकेंगे?
दीपावली दरअसल हमारी संस्कृति व सभ्यता का उत्सव रहा है, लेकिन आज की दीपावली (Diwali) में न तो कहीं संस्कृति दिखती है न ही सभ्यता का दर्शन होता है। हम मानते तो हैं कि भारत में दीपावली (Diwali) को सबसे बड़े त्यौहार के रूप में देखा जाता है और दीपावली (Diwali) एवं उससे जुड़े साथ के अन्य त्यौहारों की लंबी श्रृंखला को ज़ोर-शोर से मनाने के लिए लोग बेहद उत्साहित भी रहते हैं। मगर, हम अगर अपने चारों तरफ देखें तो लगता है कि हम से तो कई गुना अधिक हमारे आस पास के व्यापारी दीपावली (Diwali) को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित नजर आते हैं। क्योंकि हर व्यक्ति दीपावली के मौके को अपने धंधे (Business) की धमक बढ़ाने और जेब भरने की जुगत में जुटा रहता है।
बाजारों में देखा जा सकता है कि व्यापारियों ने बड़े पैमाने पर ग्राहकों की मांग एवं पसंद को पूरा करने के लिए दीपावली (Diwali) के मौके पर व्यापक तैयारियां कर रखी है। ऐसा लगता है जैसे दीपावली केवल धंधे (Business) को चमकाने का पर्व है। जबकि वास्तव में तो दीपावली (Diwali) हमारे जीवन में उजाला करने का पर्व है, रिश्तों को सहेजने और संबंधों में सुधार का पर्व है।
Happy Diwali : भगवान महावीर के निर्वाण के महापर्व दीपावली
ये जो हम भगवान महावीर (Mahaveer) के निर्वाण के महापर्व दीपावली (Diwali) को भूलकर और भगवान राम (Ram) के लंका में रावण को मारकर वापस अपने घर लौटने की खुशी को एक तरफ रखकर सिर्फ खरीदने और बेचने (Business) को ही केवल दीपावली (Diwali) मान बैठे हैं न, वही हमारी सबसे बड़ी भूल है। दरअसल, अपने समय को हम कैसे समझते हैं, कैसे सहते और कैसे उस बदलते वक्त के गुलाम बन जाते हैं, दीपावली (Diwali) का यह बदलता स्वरूप या हमारे जीवन व्यवहार में परिवर्तित होता दीपावली का महत्व उसी का प्रखर पहलू हैं। सही मायने में देखें, तो हम पथभ्रष्ट होते जा रहे हैं।
हमने जाना था कि भगवान महावीर (Mahaveer) कार्तिक महीने की अमावस्या को निर्वाण को प्राप्त हुए थे, तथा उनके निर्वाण प्राप्ति पर घर घर दीये जलाकर रोशनी करके लोगों ने उत्सव मनाया था। भगवान राम (Ram) इसी दिन लंका विजय करके अयोध्या लौटे, तो लोगों ने घी के दीये जलाकर पूरी अयोध्या नगरी को उजाले से भर दिया था। तो इस तरह से हमारी सभ्यता पर हमारे इतिहास के अनुसरण के तहत हम दीपावली (Diwali) मनाते रहे हैं। मगर, बीते कुछ दशकों में हम लगातार अपनी परंपरा से विमुख होकर अपने समय को हमारी पुरातन परंपरा से निरंतर या अलग देख रहे हैं।
माना कि जीवन पर अर्थ का दबाव होता है, और हम लोग अनेक क़िस्म के आर्थिक दबावों में जीने से निजात पाने की कोशिश में अधिक से अधिक धन कमाना (Business) चाहते हैं। इसीलिए हम सबके मन में उत्सव के आदर्श समय की अवधारणा अनिवार्यतः होने के बावजूद हम उसमें भी कमाई के अवसर (Business) तलाशने लग जाते हैं। मगर, जीवन की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश में हमने दीपावली (Diwali) के पवित्र उजाले को भी धंधा (Business) बना दिया, यह ठीक तो नहीं है। फिर भी अगर आपको उचित लगता है, तो वक्त मिले, तो जरा इस पर भी जरूर सोचना।
-निरंजन परिहार