निरंजन परिहार
सचिन पायलट और उनके समर्थक चाहे कुछ भी कहें लेकिन उनके कहने से यह तथ्य और सत्य नहीं बदल जाता कि राजनीति में कई लोगों के मुकाबले अशोक गहलोत भले आदमी हैं और भलमनसाहत को समझते भी हैं। राजस्थान के इतिहास में इतने कम समय में एक साथ इतनी सारी सरकारी योजनाएं कभी शुरू नहीं हुईं, जितनी गहलोत के कार्यकाल में हुई हैं। हम कह सकते हैं कि गहलोत राजस्थान का भला करने पर उतरे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंदेर मोदी और उनकी बीजेपी भले ही पूरे देश में कहते फिरें कि गहलोत ने राजस्थान को बरबाद कर दिया है। लेकिन उनकी बात कोई नहीं मानेगा। क्योंकि प्रदेश की प्रजा मानती है कि गहलोत भले आदमी हैं, अच्छे आदमी हैं, अच्छा काम कर रहे हैं। हमारी राजनीति में किसी के अच्छा आदमी होने की अब तक जो परिभाषा थी, वह यही थी कि सीधा और सरल आदमी यानी राजनीति में बेवकूफ सा। लेकिन गहलोत ने इस परिभाषा को हू पूरी तरह से उलटकर रख दिया है।
गहलोत की ताजा छवि को देखकर पूरे प्रदेश को लगने लगा है कि वे एक बेहद गूढ़, गंभीर और किसी की समझ में नहीं आने वाले नेता हैं। उनको जानना तो मुस्किल है ही, समझना और भी बहुत मुश्किल है। अपना मानना है कि राजनीति में कोई सीधा सादा नहीं होता। सारे के सारे बहुत तेज तर्रार और चीते की तरह चालाक होते हैं। ऐसे लोगों के बीच अशोक गहलोत अगर बीते 50 साल से राजनीति में कायदे से जिंदा हैं और कईयों की राजनीतिक जिंदगी के निर्माता भी हैं। साथ ही निर्विवाद रूप से राजस्थान में कांग्रेस के सर्वोच्च नेता हैं, तो, निश्चित रूप से वे गजब के राजनेता हैं। गजब नहीं होते तो क्या कोई मुख्यमंत्री दिल्ली में बैठकर यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि मैं तो मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहता हूं, लेकिन ये पद मुझे नहीं छोड़ता और आगे भी नहीं छोड़ेगा। तीसरी बार मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करते करते इन दिनों वे बहुत समझदारी से अपने कदम बढ़ा रहे हैं। लोग तो एक तीर में दो निशाने साधते हैं, पर गहलोत बिना तीर ही कईयों को निशाने पर लिए हुए हैं। राहुल गांधी के बहुत करीबी होने का भरपूर प्रचार करके प्रदेश का सीएम बनने और कांग्रेस में गहलोत पर सवार होने का सपना देखनेवाले सचिन पायलट प्रदेश की राजनीति में पस्त हो गए हैं और बहुत चाहने के बाद भी वे चूं तक नहीं कर पा रहे हैं, उल्टे गहलोत के सुर में सुर मिलाकर फिर से कांग्रेस की सरकार लाने का राग आलाप रहे हैं। यह गहलोत के कद का कमाल है। राजनीति में कोई किसी का करीबी होने से बड़ा नहीं हो जाता। अपन और अपने बहुत सारे दोस्त लोग बहुत सारे बड़े बड़ों के बहुत करीबी रहे हैं और हैं भी। प्रदेशों के सीएम से लेकर देश चलानेवालों के विश्वासपात्र रहे हैं, पर सत्ता में आने और ताकत पाने का राजनीति में सिर्फ किसी का करीबी होना ही पैमाना नहीं होता। गहलोत ने बहुत मेहनत से राजस्थान में कांग्रेस को पनपाया है। कितनी मेहनत कर रहे हैं, हम देख ही रहे हैं।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव को देखते हुए अशोक गहलोत अपनी जन हितकारी योजनाओं के जबरदस्त प्रचार तथा उनके वास्तविक लाभ के जरिए कई निशाने साधने में जुटे हैं, जनता के दिलों में तो वे पहले से ही राज कर रहे हैं। गहलोत इस एक तरफ जहां जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं और अपने द्वारा लागू की गई सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं। उनकी इस राजनीतिक कोशिश में विधानसभा सीटों के गहरे सर्वे भी समर्थन में ही आए हैं। है। कांग्रेस बहुत कुछ अंदरखाने कर रही है, जिसकी किसी को भनक तक नहीं है कि कौन कहां किस काम में किस स्तर पर लगा है । जो लोग गहलोत की इस राजनीतिक यात्रा में लंबे समय से साथ चलते रहे हैं, उनको भी खुद को काम के अलावा दूसरे के काम का कोई पता नहीं। रणनीति बहुत कसी हुई है और रिपोर्ट गोपनीय। सबकी निगाह बाकी सबको छोड़कर उन पर ज्यादा है जो कहने को तो कांग्रेस के नेता है, लेकिन उनके कार्यकर्ता, उनकी ताकत, उनकी कोशिश और मेहनत कांग्रेस की जड़ें खोद रही हैं। हाल ही में काग्रेस ने तीन अलग अलग एजेंसियों से सर्वे करवाए, जिनममें एक ओर जहां पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले नेताओं की हैसियत और औकात दोनौं की जानकारी सामने आहै, वहीं यह भी पता चल गया कि चुनाव में टिकट किसे देना फायदेमंद रहेगा। जातिगत जनाधार भी इस बार ज्यादा मायने रखेगा। ताजा खबर यह है कि कई जगह बड़े बड़े दावेदारों को दरकिनार करके अच्छे लोगों को अच्छी तरह से आगे लाने की योजना पर भी गहलोत काम कर रहे हैं। लेकिन यह योजना कांग्रेसी कल्चर की खींचतान की वजह से कितनी पार लगेगी, कोई नहीं जानता। लेकिन फिर भी गहलोत चाहते हैं कि कांग्रेस ही सत्ता में बनी रहे, आखिर चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना उनका भले ही हो न हो, मगर उनकी योजनाओं से लाभ पा रही राजस्थान की करोड़ों जनता का सपना जरूर है। लेकिन राजनीति अनंत संभावनाओं का संसार है, जहां कब किसकी आशाओं पर कैसे कितना पानी फिर जाए, कोई नहीं जानता। यही वजह है कि भले ही अशोक गहलेत ने कह दिया हो कि मुख्यमंत्री पद उन्हें नहीं छोड़ना चाहता, लेकिन कौन जाने कल क्या हो।