Haryana: भले ही किसी को भरोसा हो या ना हो, लेकिन ऊपर जो आपने पढ़ा, सच वही है। इसी सच के कारण राजस्थान के डॉ सतीश पूनिया (Dr Satish Poonia) हरियाणा को लेकर एक बार फिर खबरों के केंद्र में हैं। खबरों में, इसलिए क्योंकि हरियाणा में भाजपा भारी साबित हुई और कांग्रेस कमजोर पड़ गई। राजस्थान के दिग्गज नेता और हरियाणा बीजेपी (BJP) के प्रभारी डॉ. पूनिया जानते थे कि कांग्रेस ये मानकर चल रही कि भाजपा को भले ही साथियों की कमी खल रही हो, उसे हल्का मान कर नही चला जा सकता। वे जान रहे थे कि कांग्रेस मेहनत भी कर रही है, लेकिन वे यह भी जान रहे थे कि कांग्रेस को जहां मेहनत करनी है, वहां से बीजेपी को किस तरह से अपने समर्थन में वोट टपकाने हैं। और खास बात यह भी कि पूनिया भांप रहे थे कि कांग्रेस की जीत का जो नरेटिव सर्वव्यापी सेट हो रहा था, उसे कैसे ऊपर ही ऊपर रहने देते हुए निचले स्तर पर कैसी बिसात बिछानी है। इसी वजह से डॉ पूनिया को पहली बार राजस्थान से बाहर किसी प्रदेश में कांग्रेस की हार का ताना-बाना बुनने वाले नेता के तौर पर नई पहचान मिली है। दरअसल, हरियाणा में बीजेपी की बढ़त ने डॉ पूनिया का राजनीतिक कद इसलिए भी और ऊंचा कर दिया है, क्योंकि वे बीमार थे। एपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ, फिर भी आराम करने की चिकित्सकीय सलाह को दरकिनार करके तीसरे दिन ही काम पर लग गए। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपनी 27 वर्तमान सीटों पर जीत दर्ज की, तो 22 नई सीटों पर जीती हैं। खास बात यह है कि डॉ सतीश पूनिया की मेहनत से बीजेपी 9 नौ नई सीटें पर जाटों के गढ़ में जीती हैं।
डॉ पूनिया और नायब सिंह की नायाब जोडी
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में इस बार हरियाणा का चुनाव परिणाम चौंकाने वाला रहा है, क्योंकि लगभग सभी सर्वे एजेंसियों के एक्जिट पोल में हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने का दावा किया जा रहा था। लेकिन हरियाणा में लगातार तीसरी बार बीजेपी की सरकार बन रही है और नतीजों का आंकलन करें, तो कुछ ही महीनों में बीजेपी प्रभारी डॉ सतीश पूनिया का हरियाणा के हर घर तक बीजेपी के प्रचार अभियान को पहुंचाना और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के 57 दिनों के राज में पार्टी का मजबूत होना दोनों मिशन पूरी तरह से सफल रहे और बीजेपी वहीं कांग्रेस को कमजोर करने में सफल रही। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार बताते हैं कि डॉ पूनिया ने मतदान से पहले ही कहा था – ‘बीते कुछ दिनों में मैंने पूरे राज्य की यात्रा की है। मैंने लोगों का जो उत्साह देखा है, उसे देखकर मुझे ये पक्का विश्वास है कि हरियाणा के लोग भाजपा को फिर अपना आशीर्वाद देने वाले हैं। हरियाणा के देशभक्त लोग, कांग्रेस की विभाजनकारी और नकारात्मक राजनीति को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।’ हरियाणा के 57 साल के इतिहास में बीजेपी पहली पार्टी है, जो लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। परिहार कहते हैं कि इस चुनाव में यह भी खास बात रही कि चुनाव से केवल छह महीने पहले मार्च 2024 में नायब सिंह सैनी मुख्यमंत्री बने और तीन महीने पहले डॉ पूनिया प्रदेश प्रभारी के रूप में हरियाणा पहुंचे। मुख्यमंत्री सैनी, तो प्रभारी जाट, दोनों ओबीसी। डॉ पूनिया और नायब सिंह सैनी, दोनों नेता हरियाणा की करीब 44 फीसदी ओबीसी आबादी को अपनी ओर खींचने में सफल रहे।
पूनिया का पराक्रम और धर्मेंद्र प्रधान की धमक
वैसे तो, राजस्थान के कई दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक को रोकने में बड़ी कोशिश की, लेकिन धर्मेद्र प्रधान के नेतृत्व में डॉ पूनिया हरियाणा में सारे जाटों पर भारी पड़े। राजस्थान से हरियाणा जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूत के रूप में डॉ सतीश पूनिया और धर्मेंद्र प्रधान ने वहां जिस कमाल की कसावट के साथ संगठन को सक्रिय किया, उसी का परिणाम है कि हरियाणा में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में सफल साबित रही है। पिछले तीन महीनों में डॉ पूनिया ने पीछे मुडकर नहीं देखा, ना रात देखी ना दिन। वे लगातार कांग्रेस की धार को कमजोर करने, उसके वोट बैंक में सैंध लगाने और उसकी जीत के हर नरेटिव का तोड़ तलाशने में लगे रहे। डॉ पूनिया के लिए सबसे मुश्किल काम था कांग्रेस की जीत के नरेटिव को गलत साबित करना, तो इसके लिए उन्होंने मीडिया, सोशल मीडिया, लेखकों, बुद्धिजीवियों और इन्फ्लुएंसर्स को उनकी अपनी करने दी, और खुद अपने स्तर पर निचले स्तर पर नरेटिव को रोके रखने की जुगत में जुटे रहे। डॉ पूनिया की यही कारीगरी कमाल की रही और निचले स्तर पर मतदाता के मन में कांग्रेस की जीत का नरेटिव न के बराबर ही रहा, आगे बढ़ ही नहीं सका। इसके साथ ही वे दलित मतदाताओं को बीजेपी के साथ जोड़े रखने और जाट वोटों का जुगाड़ करने की जुगत में जुटे रहे। धर्मेंद्र प्रधान की सूझबूझ भरी रणनीति और कोशिशों ने बीजेपी को तो जीत की तरफ आगे बढ़ाया ही, डॉ पूनिया के जाट होने को पतवार बनाकर कांग्रेस के जाट की काट करने में वे पूरी तरह से सफल रहे।
चार दशक का राजनीतिक अनुभव हावी रहा
सही मायने में कहें, तो डॉ पूनिया के चार दशक के राजनीतिक अनुभव ने हरियाणा में बिगड़ी हुई बाजी को सुधारने में जबरदस्त भूमिका निभाई। वे राजस्थान में बीजेपी के युवा मोर्चा के नेता रहे हैं, उससे पहले एबीवीपी में ताकतवर नेता रहे और राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र संगठन में भी अगुआ रहे। अशोक गहलोत के राज में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे सतीश पूनिया ने राजस्थान में कांग्रेस से लगातार लड़ने के अपने अनुभवों को हरियाणा विधानसभा चुनाव में जस का तस लागू किया और पूरी बाजी ही उलट कर रख दी। ठीक वैसे ही, जैसे राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार को पलटकर बीजेपी की सत्ता लाने में वे उस हाल में भी समर्पित भाव से सहायक बने, जबकि चुनाव से कुछ वक्त पहले ही उनसे प्रदेश अध्यक्ष पद ले लिया गया था। सब कुछ आशा के विपरीत था, लेकिन टूटना उन्होंने सीखा ही नहीं। सो, जुड़े रहे और भले ही खुद जयपुर में आमेर से विधानसभा का चुनाव हार गए, मगर पार्टी की जीत का ताना बाना बुनकर कांग्रेस के ताबूत में आखरी कील ठोकने में आगे रहे।
पचास साल में पहली बार लगातार तीसरी जीत
सही मायने में कहा जाए, तो हरियाणा में बीजेपी को न केवल तीसरी बार जीतने में डॉ पूनिया ने सफलता दिलाई है, बल्कि उनके सियासी सामंजस्य साधने के गुण ने बीजेपी की नई रणनीति गढ़कर 2019 के पिछले चुनाव से भी ज्यादा सीटें दिलाने में कामयाब रहे। हरियाणा में बीजेपी ने इस बार 48 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है और कांग्रेस को 37 सीटें हासिल हुई है। हरियाणा बीजेपी के प्रभारी डॉ पूनिया के नेतृत्व बीजेपी वहां इस बार पिछली बार के मुकाबले 8 सीटें ज्यादा जीतने में सफल रही है, जबकि पिछली बार बीजेपी केवल 40 सीटों पर ही जीतकर जुगाड़ की सरकार बनाने के लिए साथी तलाशने को मजबूर थी। इस बार कुल 90 सीटों में से इंडियन नेशनल लोकदल को केवल 2 सीट और शेष 3 सीटों पर निर्दलियों ने जीत दर्ज की है। इस तरह से हरियाणा में बीते 5 दशक में कोई बी पार्टी लगातार तीसरी बार पहली बार सत्ता में आई है।
ऑपरेशन के बावजूद मोर्चे पर डटे रहे पूनिया
लोकसभा चुनाव बाद राजस्थान के बीजेपी के नेता डॉ सतीश पूनिया को हरियाणा में बीजेपी प्रभारी बनाया गया था। जैसा कि डॉ पूनिया के स्वभाव में है, वे जिम्मेदारी मिलते ही तत्काल लगातार सक्रिय हो गए। हर मोर्चे को फतह करने की जुगत में लगे रहे और कांग्रेसी जाट की काट में खुद को रह रह कर जाट भी साबित करते रहे और जोटों के अलावा इसकी किसी को भनक तक नहीं लगने दी। एक और खास बात यह भी रही कि अपने स्वास्थ्य की अनदेखी करते हुए डॉ पूनिया हरियाणा में बीजेपी के चुनाव संयोजन में डटे रहे। मतदान से तीन दिन पहले ही उनका अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था। हालांकि डॉक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी। लेकिन मतदान के दिन हॉस्पिटल से छुट्टी लेकर सीधे प्रदेश बीजेपी के दफ्तर पहुंच गए। डॉ पूनिया ने वहां न केवल चुनाव वॉर रूम को सक्रिय किया, बल्कि प्रदेश में जहां – जहां बीजेपी के वोटर है, वहां मतदान कैसे बढ़ाया जाए इसके लिए नेताओं को, कार्यकर्ताओं को तथा पार्टी के पदाधिकारियों को सीधे खुद फोन करके निर्देश देते रहे। हरियाणा में वैसे तो किसी में भी, किसी की भी सुनने की आदत कम ही है, लेकिन डॉ पूनिया की सभी सुनते रहे, यह उनके मिलनसार व्यक्तित्व का व्यवहार था, तो संगठन को सम्हालने व सहेजने के पुराने अनुभव की ताकत भी थी।
बीजेपी नेतृत्व ने समझा पूनिया की सियासी सक्रियता को
हरियाणा के चुनाव में डॉ सतीश पूनिया की मेहनत, उनके समर्पण और मजबूत कार्यक्षमता ने बीजेपी की राजनीति में उनका कद बढ़ा दिया है। इससे पहले लोकसभा चुनाव में भी डॉ पूनिया को हरियाणा की जिम्मेदारी मिली थी, तो उन्हीं संबंधों को उन्होंने जीत के तेवर तीखे करते हुए नए नए बने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से सामंजस्य बनाकर काम में लग गए और पिछली बार की 40 के मुकाबले 8 सीटें ज्यादा जिताकर बीजेपी की झोली में डाल दी। बीजेपी नेतृत्व निश्चित तौर से डॉ सतीश पूनिया की सियासी सक्रियता का सूझबूझ भरी राजनीति और समर्पित भाव के संगठन की सेवा के स्वभाव की ताकत को जानता रहा था, इसी कारण उनको बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने हरियाणा विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी। वैसे कहते हैं कि बीजेपी के शीर्ष नेता हर किसी नेता को कोई बड़ी जिम्मेदारी देने से पहले उसकी ताकत को तोलने और खुद के होने को साबित करने के लिए परीक्षण के तौर पर मुश्किल मुकाम की राह पर चलाते हैं और फिर उसे पहले से ज्यादा जिम्मेदारी भरा काम सौंपते हैं। हालांकि, राजनीति में हर किसी को कुछ करने के बदले कुछ ना कुछ चाहिए होता है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक परिहार कहते हैं कि डॉ सतीश पूनिया अलग मिट्टी के बने हैं। पद प्राप्ति की लालसा में काम करने वाली पांत की राजनीतिक जमात के व्यक्ति तो पूनिया वैसे भी कभी रहे ही नहीं। क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के उस सूत्र को उन्होंने बहुत पहले ही समझ लिया था किसमें कहा गया है कि ‘कर्तव्य पथ पर जो मिला, ये भी सही, वो भी सही…!’
-हरिसिंह
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