Rahul Gandhi: कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की राजनीतिक प्रतिभा को परखने का वास्तविक वक्त अब आ रहा है। कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) ने अपने पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता (Leader of Opposition) बनाए जाने को लेकर एकमत से प्रस्ताव पास कर दिया है। लेकिन राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के इस फैसले को स्वीकारने के लिए समय मांगा है। वे सोचेंगे, अपने सलाहकारों से चर्चा करेंगे और फिर पार्टी के इस फैसले पर अपना निर्णय देंगे। इस आम चुनाव में देखें, तो कांग्रेस (Congress) के नेतृत्व वाला इंडिया अलाइंस भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने में सफल नहीं रहा, लेकिन इस लोकसभा चुनाव (Parliament Election) के नतीजे नेहरू-गांधी परिवार के वंशज राहुल गांधी के लिए विशेष रूप से संतुष्टि देनेवाले रहे हैं, क्योंकि वे 50 से सीधे 99 सीटों पर पहुंचे हैं। वैसे, यह चुनाव कांग्रेस के इतिहास की अब तक की तीसरी सबसे कमजोर परफॉर्मेस वाला रहा है। फिर भी राहुल गांधी अगर लोकसभा (Lok Sabha) में विपक्ष के नेता बनते हैं, तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या वे नेता प्रतिपक्ष के तौर पर एक सफल नेता साबित होंगे? और सवाल यह भी है कि क्या वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक कद के सामने बौने नहीं लगेंगे?
कांग्रेस के कई नेता चाहते हैं कि राहुल नेता प्रतिपक्ष बनें
लोकसभा चुनाव में बीते 10 साल में अब तक के सबसे ज्यादा सांसद जीतने से कांग्रेस को भले ही फिर से नई ताकत मिल गई हो और इन चुनावों में कांग्रेस की सीटें बीते चुनाव से लगभग दोगुनी हो गई है, फिर इससे राहुल गांधी को अपनी राजनीतिक साख स्थापित करने में भी बड़ी मदद मिली है। भले ही इस जीत में राहुल का कितना योगदान है, यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन राहुल के लिए यह एक राहत की बात है, क्योंकि बीजेपी द्वारा उनको लगातार पप्पू और एक अराजनीतिक व्यवहार करनेवाले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जिसमें देश का नेतृत्व करने की क्षमता वाले आवश्यक गुण नहीं हैं। यह बात न केवल बीजेपी के नेता कहते रहे हैं, बल्कि उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं का एक बड़ा वर्ग भी उनकी राजनीतिक क्षमता पर संदेह व्यक्त करता रहा है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार मानते हैं कि कांग्रेस के ज्यादातर लोग चाहते हैं कि राहुल गांधी ही विपक्ष के नेता बनें। कांग्रेस कार्यसमिति ने इस बारे में फैसला भी कर लिया है। परिहार कहते हैं कि और राहुल गांधी अगर इस पद के लिए राजी हो जाएं तो वे विपक्ष के नेता के तौर पर वे सीधे पीएम नरेंद्र मोदी से सवाल कर सकेंगे। साथ ही लोकसभा में विपक्ष के नेता की इस भूमिका के दौरान वे प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष सहित सभी दलों के नेताओं के भी नियमित संपर्क में भी रहेंगे। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि तथा देश – दुनिया से जुड़े भारत के मुद्दों पर राहुल गांधी को हर पल सचेत रहना होगा और आर्थिक रूप से भारत की मजबूती के लिए विकसित सोचवाले विकल्प सरकार के समक्ष रखने होंगे तथा विपक्षी दलों की भी सहमति से आगे बढ़ना होगा।
अनेक जिम्मेदारियों भरा होता है नेता प्रतिपक्ष का पद
लोकसभा में विपक्ष का नेता केवल संसद में विपक्ष का चेहरा नहीं होता, बल्कि देश को चलाने वाली संसद की कई महत्वपूर्ण कमेटियों का सदस्य भी होता है। ये ही कमेटियां सेना, सीबीआई, ईडी, सीवीसी, इन्फॉर्मेशन कमिश्नर, नीति आयोग, वित्त आयोग, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों सहित देश की कई प्रमुख एजेंसियों के प्रमुखों व सदस्यों को चुनने का काम करती है। अनवरत अनजान लोगों से मेल मुलाकातों का सिलसिला चलता रहता है, हर प्रकार की बहस में संयत रहना होता है और तुनक मिजाजी को बदाकर रखना होता है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद कैबिनेट मंत्री पद की बराबरी को होने के साथ साथ सभी लाभों के साथ आता है, लेकिन इसके लिए लगातार मेहनत, सतत चौकन्नेपन और हर पल हर अपडेट के साथ जीने की भी जरूरत होती है। वैसे, अब तक का जैसा राहुल गांधी का राजनीतिक आचरण रहा है, उसके हिसाब से उनकी राजनीतिक परिपक्वता को देखकर एक सवाल सबसे पहले जागता है कि क्या वे विपक्ष के नेता के तौर पर सफल होंगे, क्योंकि यह पद तो अत्यधिक व्यस्तता, विभिन्न प्रकार की व्यापक जिम्मेदारियों से भरा पद है, जिसमें सरकार, विपक्ष, प्रशासन, पार्टी और प्रजा सहित सबके बीच समायोजन करके चलना होता है। राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर मानते हैं कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का यह पद राहुल गांधी को सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा करेगा, और राहुल इस नाते सीधे बीजेपी व सत्तारूढ़ पार्टियों के सदस्यों के निरंतर निशाने पर रहेंगे साथ ही उनके हमलों का सामना भी उनको करना होगा। विपक्ष के नेता को अपनी ओर से सत्ता पक्ष का मुकाबला करने, प्रमुख बहसों में आगे बढ़कर नेतृत्व करने और संसद सत्र के दौरान सदन में समन्वय के लिए अन्य विपक्षी नेताओं के साथ अच्छे कामकाजी संबंध स्थापित करने के लिए लगातार तैयार रहना पड़ता है।
पीएम मोदी से सीधे टकराव में कहां ठहरेंगे राहुल
राहुल गांधी कई अवसरों पर अपनी राजनीतिक कमजोरियों का अहसास कराते रहे हैं, लेकिन नेता प्रतिपक्ष का पद तो मुख्य रूप से रचनात्मक असहमति जताने का, और सत्ताधारी पार्टी को नियंत्रित करने का है। वरिष्ठ पत्रकार अभिमन्यु शितोले कहते हैं कि इंडिया गठबंधन में ही अधिकांश विपक्षी नेता राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करने में अनिच्छुक रहे हैं। लेकिन कांग्रेस ने अपने सदन के नेता के तौर पर उनका चुनाव कर लिया है और लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी दल होने के नाते कांग्रेस का ही नेता प्रतिपक्ष पर दावा भी बनता है। अब समय आ गया है कि राहुल गांधी को मजबूत कदम उठाना होगा कि उन्होंने एक गंभीर राजनेता होने का रास्ता अख्तियार कर लिया है। लेकिन, देश ने अब तक जिस राहुल गांधी को देखा है, जिस राहुल गांधी को जाना है, क्या वह राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर इतनी सारी जिम्मेदारियां पूरी गंभीरता से सम्हाल सकेंगे? राहुल गांधी के सामने भी यही सबसे बड़ा सवाल है। कोई कह सकता है कि जिम्मेदारी मिलेगी, तो सम्हाल भी लेंगे, लेकिन राजनीति के कुछ जानकार कुछ लोग यह भी मानते हैं कि लोकसभा में नरेंद्र मोदी जैसे धुरंधर नेता से से सीधे टकराव का रास्ता चुनने से राहुल गांधी के बढ़ते राजनीतिक पद पर ब्रेक भी लग सकता है। राहुल गांधी के अब तक के राजनीतिक आचरण के इतिहास को देखकर आपको क्या लगता है कि वे एक सफल नेता प्रतिपक्ष के रूप में स्वयं को साबित कर सकेंगे?
-राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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