Loksabha Election: बीजेपी ने राजस्थान (Rajasthan) से उम्मीदवारों की अपनी नई सूची से प्रदेश को चौंका दिया हैं। राजपाल सिंह, राजेंद्र राठौड़ और डॉ सतीश पूनिया (Dr Satish Poonia) जैसे बहुप्रतिक्षित नामों को लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी से दरकिनार रखा गया है। बीजेपी (BJP) ने इनमें से किसी को भी लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) में उम्मीदवार नहीं बनाया है, मगर कांग्रेस (Congress) ने अपने विधानसभा चुनाव में हारे हुए तेजतर्रार नेता प्रतापसिंह खाचरियावास (Pratap Singh Khachariawas) को जयपुर से लोकसभा के लिए उम्मीदवार बना दिया है। खाचरियावास का नाम तो दूर दूर तक कांग्रेस में था भी नहीं। माना जा रहा था कि राजेंद्र राठोड़ (Rajendra Rathore) को चूरू, डॉ. पूनिया को अजमेर और राजपाल सिंह शेखावत (Rajpal Singh Shekhawat) को जयपुर से उम्मीदवारी मिल सकती है, मगर रेतीले राजस्थान की रपटीली राजनीतिक राहों के इन तीनों राही की उम्मीदों पर पानी फिर गया। वैसे राजपाल और राठोड़ के मुकाबले डॉ पूनिया में किस्मत वाले रहे, जिनको इसी सप्ताह हरियाणा का चुनाव प्रभारी बनाया कर उनका राजनीतिक कद बढ़ा दिया गया है। मगर राजपाल सिंह खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं, क्योंकि विधानसभा चुनाव में उनका टिकट काटकर जब राज्यवर्धन सिंह को उम्मीदवार बनाया गया, तो माना जा रहा था कि उनको लोकसभा चुनाव लड़वाया जा सकता है। राजेंद्र राठोड़ की राजनीति का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, कोई नहीं जानता। मगर, माना जा रहा है कि राजस्थान की राजनीति (Rajasthan Politics) में अब उनको कुछ वक्त तक समर्पित भाव से पार्टी का काम करना होगा। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार की राय में लगातार कमजोर होती कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में खाचरियावास ताकतवर नेता हैं, जिनको जयपुर (Jaipur) से फिर हारने की संभावना के बीच जीत के जज्बे का साथ चुनाव मैदान में उतरना होगा।

डॉ सतीश पूनिया अब राष्ट्रीय राजनीति में
राजस्थान में बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में बेहद सफल रहे डॉ सतीश पूनिया की राजनीतिक सूझबूझ, व्यापक विनम्रता और संगठन के प्रति समर्पण का प्रदेश में कोई सानी नहीं है। सन 2018 में पहली बार विधायक बनने के बावजूद राजस्थान की राजनीति में पिछली बार उन्होंने अपनी जो बहुत बड़ी जगह बनाई उससे कई लोग चकित रह गए थे। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वे बेहद सक्रिय रहे और विधायक के रूप में भी उनकी छवि सबसे अग्रणी तौर पर देखी जाती रही। 2023 का विधानसभा चुनाव में वे आमेर से हार गए थे। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार मानते हैं कि डॉ पूनिया की यह हार हर किसी के लिए बेहद चौंकानेवाली रही। फिर भी वे लगातार सक्रिय रहे और पिछले तीन महीने में उन्होंने प्रदेश भर में अपनी सक्रियता का जबरदस्त प्रदर्शन किया। माना जा रहा था कि उनको अजमेर से लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है, लेकिन बीजेपी की पांचवी सूची जारी होने से पहले ही हरियाणा का प्रभारी बनाकर उनका ओहदा बढ़ा दिया गया, तभी से लग रहा था कि अब उनको लोकसभा में उम्मीदवारी शायद ही मिले।
राजेंद्र राठोड़ रहे खाली हाथ, आगे क्या होगा
दिग्गज राजपूत नेता राजेंद्र राठौड़ का नाम लोकसभा उम्मीदवारी में ना आना भी आश्चर्य का विषय माना जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन की राय में, राठौड़ राजस्थान की राजनीति के शानदार कारीगर कहे जाते हैं। वे लंबे समय से राजस्थान में ताकतवर नेता रहे हैं। हालांकि पिछला विधानसभा चुनाव वे अप्रत्याशित रूप से हार गए थे और विधानसभा में हार के बाद उनकी दावेदारी लोकसभा में मानी जा रही थी। वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन कहते हैं कि राठौड़ के बारे में माना जा रहा था कि वे कोशिश कर रहे थे कि चूरू के विधायक हरलाल सिंह सहारण को चूरू से लोकसभा का टिकट मिल जाए। ताकि वे चूरू से चुनाव लड़कर संसद में पहुंच जाएं। सहारण को साथ लेकर दिल्ली में राजेंद्र राठोड़ के अपनी पार्टी के आला नेताओं से मिलने की भी ख़बरें आई थीं और माना जा रहा था कि सहारण चूरू से सांसद बन जाएंगे, तो खाली सीट पर उपचुनाव जीतकर राठौड़ राज्य सरकार का हिस्से हो जाएंगे। लोकसभा चुनाव की उम्मीदवारी में राठौड़ का नाम अग्रणी रहा। इसी तरह विधानसभा चुनाव से पहले भी मुख्यमंत्री पद के सबल दावेदारों में उनका था, मगर संभवत: यही उनकी हार का सबसे बड़ा आंतरिक कारण बना था। वैसे, वसुंधरा राजे उनको कम पसंद करती है और माना जा रहा है कि वे उन्हीं के कोपभाजन बने।
राजपाल सिंह को अभी और समर्पण दिखाना होगा
राजपूत होने के बावजूद राजस्थान की राजनीति में राजपूत नेता के रूप में तो नहीं, बल्कि समृद्ध नेता के तौर पर पहचाने जाने वाले राजपाल सिंह शेखावत को उम्मीद थी कि उनको टिकट मिलेगा। विधानसभा चुनाव में उनका टिकट काटकर राज्यवर्धन सिंह को दे दिया गया था।, तो वे कुछ दिन के लिए बागी हो गए थे, लेकिन बाद में मान गए और विद्रोही के रूप में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन अब उम्मीद के बावजूद राजपालसिंह को भी कहीं से टिकट नहीं दिया गया। राजस्थान की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन कहते हैं कि पिछली कई सरकारों में मंत्री रहे राजपाल सिंह शेखावत की आर्थिक मामलों पर जैसी पकड़ है, उसका सानी राजस्थान बीजेपी में और कोई नहीं हैं। माना जा रहा था कि उनको जयपुर शहर से उम्मीदवारी मिल सकती है। लेकिन मामला कहां अटक गया, कोई नहीं जानता। अब राजपाल सिंह शोखावत को पार्टी के प्रति समर्पण दिखाना होगा, क्योंकि उनको जो भी नुकसान हुआ है, लगता है कि वे बीजेपी की अंदरूनी खेमेबाजी के शिकार हो गए हैं।

खाचरियावास का मुकाबला दिग्गज नेता की बेटी से
जयपुर शहर लोकसभा सीट से बीजेपी ने महिला मोर्चा की पहले प्रदेश महामंत्री रहीं मंजू शर्मा को उम्मीदवार बनाया है, कांग्रेस में उनका मुकाबला छात्र नेता रहे प्रतापसिंह खाचरियावास से होना है। मगर, राजस्थान की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार अरविंद चोटिया कहते हैं कि कांग्रेस में जयपुर का टिकट प्रताप सिंह खाचरियावास के गले पड़ा है। राजनीतिक संभावनाएं कह रही है कि खाचरियावास के लिये यह चुनाव जीतना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। मंजू शर्मा जयपुर से 6 बार विधायक रहे बीजेपी के दिग्गज नेता भंवरलाल शर्मा की बेटी हैं। उनके पता प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष होने के अलावा बीजेपी की सरकारों में मंत्री भी रहे। वरिष्ठ पत्रकार अवधेश पारीक कहते हैं कि बीजेपी ने जयपुर की बेटी थीम को भुनाते हुए उनके उम्मीदवार बनाया है। मंजू शर्मा वर्तमान में राजस्थान महिला प्रवासी अभियान की प्रभारी हैं और जयपुर शहर की निवासी होने के चलते उन्हें अन्य महिलाओं के नाम से तरजीह मिली साथ ही कुछ दिग्गज चेहरों ने भी उनकी मजबूती से पैरवी की। मंजू संगठन की पुरानी सिपाही हैं और जयपुर के जाने माने कनोडिया महिला कॉलेज से ही पढ़ी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बीजेपी ने जयपुर शहर लोकसभा से वर्तमान सांसद रामचरण बोहरा का टिकट काटकर मंजू शर्मा को उम्मीदवार घोषित किया है। बीजेपी अपने ऐसे ही फैसलों से अक्सर चौंकाती रही है, मगर कांग्रेस ने भी खाचरियावास को जयपुर शहर से उम्मीदवारी देकर चौंकाया है। वैसे भी, राजनीति चौंकानेवाले खेल के अलावा और है ही क्या।
-हरि सिंह