Narendra Modi: नंबर दो कोई नहीं। मोदी ही सर्वोपरि, मोदी ही अंतिम। जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) का इस्तीफ़ा सिर्फ़ विदाई नहीं, एक स्पष्ट संदेश है। उप राष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफ़ा, भले ही स्वास्थ्य कारणों के हवाले से आया हो, पर महज़ एक संवैधानिक घटना नहीं है यह भारतीय राजनीति के सत्ता संतुलन में आया एक झटका है। जब आप इस घटना को गहराई से समझते हैं, तो दिखता है कि यह सिर्फ़ एक पद का खाली होना नहीं, बल्कि संस्थाओं की एक व्यक्ति के अधीनता का प्रतीक है और वह व्यक्ति हैं नरेंद्र मोदी। यह कोई सामान्य राजनीतिक फेरबदल नहीं है। यह उस व्यक्ति द्वारा सत्ता का अंतिम केंद्रीकरण है जो अब पार्टी, सरकार और विचारधारा के मूल स्रोत आरएसएस, तीनों पर नियंत्रण रखता है।

जनता दल से भाजपा तक धनखड़ की यात्रा
धनखड़ कभी मोदी के अपने नहीं थे जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफ़र हमेशा विविधताओं से भरा रहा। उन्होंने जनता दल से राजनीति में प्रवेश किया, फिर कांग्रेस से जुड़े, और अंततः मोदी-शाह युग में भाजपा का हिस्सा बने। उप राष्ट्रपति पद पर उनकी नियुक्ति 2022 में एक रणनीतिक समझौता मानी गई, जिसे अमित शाह ने प्रस्तावित किया और मोदी ने एक तात्कालिक उपयोगिता के रूप में स्वीकृति दी। उनकी ओबीसी पहचान, बंगाल के राज्यपाल के रूप में ममता बनर्जी विरोधी छवि, और आक्रामक क़ानूनी शैली उन्हें उस समय के लिए उपयोगी बनाती थी। लेकिन वे मोदी मॉडल के जैविक हिस्से कभी नहीं रहे न तो निष्ठा की परिभाषा में, न ही उस मौन अनुशासन में, जो आज की भाजपा की रीढ़ है। शाह के उम्मीदवार, मोदी की अस्वीकृति धनखड़ का इस्तीफ़ा एक पैटर्न की पुष्टि करता है। दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा, जिन्हें शाह का पसंदीदा माना जाता था, उनको भी चुपचाप एक्सटेंशन देने से मना किया गया। पार्टी के भीतर से संकेत मिल रहे हैं जनका शीर्ष स्तर से यह संदेश स्पष्ट है कि सुझाव दिए जा सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय सिर्फ़ मोदी का है। यह समय बहुत महत्वपूर्ण है, जब अमित शाह अगला भाजपा अध्यक्ष चुनवाने के लिए प्रयासरत थे, तो मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि उत्तराधिकारी, पदोन्नति या विदाई सभी का नियंत्रण एक ही हाथ में है।
2024 के जनादेश का झटका जोरदार
सिंहासन डगमगाया 2024 के लोकसभा चुनाव में। भाजपा की सीटें 240 पर सिमटना और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी की जीत का अंतर महज़ डेढ़ लाख वोट होना, सत्ता के आंतरिक व्याकरण को हिला चुका है। उत्तर प्रदेश में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कथित रूप से अमित शाह के उम्मीदवार चयन में हस्तक्षेप पर आपत्ति जताई और पार्टी की गिरती स्थिति का दोष दिल्ली केंद्रित नियंत्रण को दिया। वहीं संघ के भीतर भी असंतोष की आवाज़ें तेज़ हुईं। मोहन भागवत स्वयं सरकार की दिशा पर सार्वजनिक चिंता जताने लगे। पहली बार ऐसा दिखा कि योगी और संघ एक ही लाइन पर आ खड़े हुए और शाह का मॉडल अचूक नहीं है। पार्टी को पुनः संतुलन की ज़रूरत है।

मोदी मॉडल में भूमिका की अहमियत
न उत्तराधिकारी, न विकल्प, फिर भी धनखड़ की विदाई एक गहरी वैचारिक बात भी कहती है। क्या भाजपा अब उत्तराधिकारी तैयार करने में विश्वास रखती है, या उत्तराधिकार की संपूर्ण कल्पना को ही ख़त्म करना चाहती है? मोदी मॉडल में नंबर दो का कोई स्थान नहीं है। यहां सिर्फ़ कार्य-विशेष के लिए चुने गए चेहरे होते हैं , जो निर्देश के अनुसार चलते हैं और बिना शोर के विदा हो जाते हैं। मोदी व्यक्ति को नहीं, भूमिका को ऊंचा करते हैं, फिर उस भूमिका को मौन में विसर्जित कर देते हैं। भाजपा अध्यक्ष, उप राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री — सभी एक मशीन के पुर्जे हैं, जिसकी गति सिर्फ़ एक व्यक्ति की ताल से तय होती है।
सक्रिय हस्तक्षेप के बजाय संघ भी चुप
मार्गदर्शन से सहमति तक मोदी के शासनकाल में संघ की भूमिका मार्गदर्शक से अधिक सांकेतिक होती जा रही है। 2024 के चुनाव परिणामों के बाद और कई विधायी निर्णयों पर संघ ने असहजता ज़ाहिर की। लेकिन सक्रिय हस्तक्षेप के बजाय उसने चुप्पी को चुना। इससे यह स्पष्ट हुआ कि संघ अब भाजपा का मार्गदर्शन नहीं करता, केवल सांस्कृतिक वैधता प्रदान करता है। धनखड़ का जाना एक शैली की विदाई है। जगदीप धनखड़ महज़ संवैधानिक पदाधिकारी नहीं थे। वे एक विशेष शैली के प्रतिनिधि थे। तेज़, वाद-विवादप्रिय, संस्थागत, और क़ानूनी परंपराओं से गढ़े गए। उनके जाने से यह स्पष्ट है कि यह शैली आज की भाजपा में अप्रासंगिक है। आज की भाजपा में अनुशासन, मौन, और निष्ठा को प्राथमिकता दी जाती है, न कि वकालत और विरासत को। अंततः, धनखड़ का इस्तीफ़ा महज़ एक चैप्टर का बंद होना नहीं, यह घोषणा है कि आज की भाजपा में कोई नंबर दो नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ही पहला, अंतिम, और अकेला गुरुत्वाकर्षण केंद्र हैं।
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(सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर राजस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय 'X' हैंडल @8PMnoCM से साभार)