Priyanka Gandhi: कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी इन दिनों कुछ ज्यादा ही शांत – शांत सी हैं। संसद में वे गजब सक्रिय दिखी हैं, लेकिन खबरों में अब कम ही दिख रही हैं। कांग्रेस (Congress) में उनकी मौजूदा राजनीतिक निष्क्रियता ने नई अटकलों को जन्म दिया है। सवाल स्वाभाविक है कि क्या प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की यह चुप्पी किसी रणनीति का हिस्सा है, या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को देश में कांग्रेस का एकमात्र शक्ति संपन्न नेता स्थापित करने की कोशिश? कांग्रेस में कुछ लोग इसे पार्टी पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल की साजिश भी मान रहे हैं। कारण जो भी हों, लेकिन ‘दीदी’ इन दिनों अपनी ही पार्टी में दरकिनार सी दिख रही हैं। प्रियंका कांग्रेस के आलाकमान कहे जाने वाले गांधी परिवार की ताकतवर सदस्य और पार्टी की प्रमुख हस्तियों में से एक हैं। मगर, अप्रैल 2025 में कांग्रेस पार्टी के अहमदाबाद अधिवेशन जैसे सबसे महत्वपूर्ण सांगठनिक अवसर पर भी वे नहीं दिखीं। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी वे नहीं थीं। वायनाड से सांसद चुने जाने के बाद प्रियंका के बारे में यह कहा जा रहा था कि लोकसभा में राहुल गांधी अब अकेले नहीं पड़ेंगे, लेकिन वक्फ बिल पर वोटिंग के लिए कांग्रेस की व्हिप के बावजूद प्रियंका संसद नहीं पहुंची। जबकि राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों वोटिंग के दौरान मौजूद रहे। संसद में अपने बैग, उस पर लिखावट और उसके रंग तक से प्रियंका मीडिया में छाई रही थी। फिर भी प्रियंका का अचानक इस तरह से कम सक्रिय रहना और सांगठनिक मामलों में कमजोर दिखना, कांग्रेस में उनके एक बहुत बड़े समर्थक वर्ग और देश भर में उनके चाहने वालों को बहुत परेशान कर रहा है।

प्रियंका से राहुल की सफलता में असुरक्षा का भाव
वैसे, प्रियंका गांधी की पब्लिक अपील ज्यादा होने के कारण राहुल गांधी के सलाहकारों में अपने नेता के प्रति असुरक्षा का भाव है, यह एक संवेदनशील सवाल है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि निश्चित तौर पर प्रियंका गांधी की पब्लिक अपील है और उनके करिश्माई व्यक्तित्व का प्रभाव भी लोगों में साफ दिखता हैं। इसी कारण राहुल गांधी के निजी रणनीतिकारों को पार्टी में प्रियंका गांधी को मुख्यधारा से थोड़ा सा परे रखना जरूरी लग रहा है। वे कहते हैं कि इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि राहुल गांधी के रणनीतिकारों को अक्सर प्रियंका की तुलना में राहुल की कम लोकप्रियता का एहसास होता हो। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक परिहार यह भी जोड़ते हैं कि हालांकि राहुल और प्रियंका रिश्ते में भाई – बहन होने से दोनों के रिश्ते में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से ज्यादा एक-दूसरे के प्रति समर्थन की भावना भी प्रदर्शित होती रही है। फिर भी, राजनीति की दुनिया में असुरक्षा और प्रतिस्पर्धा सामान्य मानवीय भावनाएं हैं। वैसे, वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी के करीबी नेता केवल राहुल को ही कांग्रेस के राजनीतिक केंद्र में रखना चाहते हैं। और यह बात सच है, क्योंकि राजनीतिक तर्क साफ है कि प्रियंका की अधिक सक्रियता से राहुल की ताकत कम हो सकती है, या उनके राजनीतिक ग्राफ पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। राजकुमार सिंह कहते हैं कि राहुल को कांग्रेस में निर्विवाद नेता के रूप में यदि स्थापित करना है, तो प्रियंका की सक्रियता को सीमित करने की जरूरत वाजिब है। कांग्रेस की राजनीति को गहराई से, जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर कहते हैं कि, राजनीतिक दलों में यह एक आम रणनीति होती है, जहां एक नेता को मजबूत करने के लिए दूसरे मजबूत नेता को थोड़ा पीछे रखा जाता है। कांग्रेस में हमेशा से ही गांधी परिवार का वर्चस्व रहा है, और राहुल गांधी को ही पार्टी के स्वाभाविक नेता के रूप में देखा जाता है। सोनवलकर के मुताबिक राहुल के इर्द-गिर्द उनके निजी वफादारों का एक ताकवर समूह है जो राहुल की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए प्रयासरत रहता है।
प्रियंका गांधी का राजनीतिक प्रभाव और सफलता
प्रियंका गांधी सांसद तो खैर वायनाड़ से नवंबर 2024 में बनी हैं, लेकिन औपचारिक रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने राजनीति में तब प्रवेश किया, जब उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव नियुक्त किया गया था। उनकी एंट्री को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भारी उत्साह देखा गया था। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार मानते हैं कि प्रियंका की भाषण शैली, करिश्माई व्यक्तित्व और उनकी दादी इंदिरा गांधी से समानताएं अक्सर चर्चा का विषय रही हैं। परिहार कहते हैं कि प्रियंका में भीड़ को आकर्षित करने और लोगों से भावनात्मक जुड़ाव बनाने की अद्भुत क्षमता है, जो उन्हें राहुल गांधी से कुछ मायनों में ज्यादा बड़ा नेता बनाती है। राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर भी मानते है कि उत्तर प्रदेश में, प्रियंका ने कई मुद्दों पर सक्रियता दिखाई, खासकर हाथरस गैंगरेप मामले और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शनों के दौरान तथा अपनी यात्राओं में भी लोगों को लुभाने में सफल रहीं। प्रियंका ने योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ मुखरता से आवाज उठाई और पीड़ितों के परिवारों से मुलाकातें की, जिससे उनकी छवि एक जुझारू नेता के रूप में उभरी। हालांकि, सोनवलकर यह भी कहते हैं कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जिसने उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल भी उठाए।

महासचिव है, मगर जिम्मेदारी नहीं प्रियंका के पास
पिछले कुछ समय से प्रियंका गांधी की राजनीतिक गतिविधियों में स्पष्ट कमी आई है। वह सार्वजनिक मंचों पर कम दिखाई देती हैं और पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णयों या अभियानों में उनकी भूमिका पहले जैसी मुखर नहीं दिखती। प्रियंका गांधी को अब उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव पद से मुक्त कर दिया गया है। फिलहाल, वे पार्टी की महासचिव तो हैं, लेकिन उनके पास कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं है। जिससे उनकी सार्वजनिक उपस्थिति में कमी आई है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि यह संभव है कि पार्टी अपने लोकप्रिय नेता प्रियंका गांधी को किसी और भूमिका के लिए तैयार कर रही हो, या फिर उन्हें एक रणनीतिक ब्रेक दिया गया हो। परिहार कहते हैं कि गांधी परिवार पर हमेशा से ही सार्वजनिक और राजनीतिक दबाव रहा है। यह भी संभव है कि प्रियंका कुछ समय अपने परिवार को देना चाहती हों, या फिर कुछ व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने अस्थायी रूप से सक्रिय राजनीति से दूरी बनाई हो। यह भी एक संभावना है कि कांग्रेस पार्टी ने एक रणनीति के तहत राहुल गांधी को ही पार्टी का मुख्य चेहरा बनाए रखने का निर्णय लिया हो। परिहार कहते हैं कि यदि ऐसा है, तो कांग्रेस को साफ संदेश देना चाहिए, ताकि प्रियंका की कम सक्रियता के बारे में जनता में कोई भ्रम न हो। हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 के बाद की स्थिति बदली है, राहुल गांधी ने रायबरेली और वायनाड दोनों सीटों पर जीत हासिल की और एक मजबूत विपक्ष के नेता के रूप में उभरे हैं। इस स्थिति में, पार्टी का ध्यान राहुल गांधी की स्थिति को और मजबूत करने पर हो सकता है।
प्रियंका बिन राहुल कैसे और कितने रहेंगे मजबूत
प्रियंका गांधी की मौजूदा राजनीतिक निष्क्रियता कई वजहों का परिणाम हो सकती है, जिनमें व्यक्तिगत कारण, संगठनात्मक बदलाव और पार्टी की आंतरिक रणनीतियां शामिल हैं। यह कहना मुश्किल है कि इसके पीछे राहुल गांधी की असुरक्षा का भाव कितना बड़ा कारण है, लेकिन यह निश्चित है कि कांग्रेस में राहुल गांधी को केंद्र में रखने की एक स्पष्ट रणनीति काम कर रही है। प्रियंका गांधी में एक मजबूत राजनीतिक क्षमता है और उनकी अनुपस्थिति निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए एक खालीपन पैदा करती है, खासकर उन राज्यों में जहां पार्टी संघर्ष कर रही है। भविष्य में उनकी भूमिका क्या होगी, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या वह किसी नई और बड़ी जिम्मेदारी के साथ वापसी करेंगी, या फिर उनकी भूमिका पर्दे के पीछे से रणनीतिकार की रहेगी? समय ही बताएगा, लेकिन यह तय है कि प्रियंका गांधी जैसी शख्सियत को लंबे समय तक राजनीति से दूर रख पाना शायद ही संभव हो। क्योंकि प्रियंका का कांग्रेस की मुख्यधारा में रहना कार्यकर्ताओं को एक नई ऊर्जा देता है, खासकर ऐसे समय में जब पार्टी को एक नई ताकत की जरूरत है और एक मजबूत और गतिशील नेतृत्व की भी। माना कि राहुल गांधी संवेदनशील हैं और उनमें बहुत मानवीय गुण हैं। मगर यहां मुकाबला चुनावी जीत का है, मजबूत नेतृत्व दिखाने का, बिखरती कांग्रेस को सहेजने का है। इसीलिए, सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी यह सब ठीक से कर पा रहे हैं?
-राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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