Arundhati Roy: अरुंधति रॉय को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते। जो जानते हैं, वे उनकी लेखनी की असलियत को जानने के दावे तो करते हैं, लेकिन उतना नहीं जानते, जितना उन्हें जान लेना चाहिए। और जो नहीं जानते, वे जान सकते हैं अरुंधति रॉय (Arundhati Roy) को, उनके लेखन की वास्तविकता से, लेखन में दर्ज पात्रों की एक दूजे में समाहित हो जाने की विवेचना के विस्तारित वर्णन से, कामदृश्यों को साकार करती शब्द संयोजन में छिपी लोकलुभावन मानसिकता से और लेखन के धंधे की धमक से पैदा होनेवाले पैसे की सच्चाई से। दरअसल, अरुंधति के बारे में बहुत सारे किस्से कहे जाते हैं, ज्यादातर सच्चे, कुछ कल्पित और कुछ कल्पनाओं के पार भी। वैसे कल्पनालोक और कल्पनाओं का सजीव चित्रण शब्दों में निरुपित करना उनका भी प्रिय विषय है। ऐसे ही कल्पनालोक की यात्रा का एक किस्सा उनके उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ (The God of small things) में भी है, जिसको अश्लील कहा गया था, अश्लील था भी साहित्य की दृष्टि से अश्लीलता की सीमाओं के पार भी। अब तो खैर अरुंधति कुछ साल पहले कश्मीर पर दिए अपने बयान को लेकर केस में उलझने की वजह से खबरों में है, लेकिन बात 1996 के आखरी दिनों है, जब अरुंधति रॉय की पुस्तक ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ ने उनके गृह राज्य केरल में ही उनकी लिखी अश्लीलता पर तीखी बहस छेड़ दी थी, देश भर में बवाल मचा और दुनिया भर में चर्चा। जिसका श्रेय उस उपन्यास की सीरियाई ईसाई नायिका अम्मू और एक हिंदू अछूत पुरुष वेलुथा के बीच यौन संबंध के व्यापक और विस्तारित विवेचनापूर्ण वर्णन को जाता है। ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के अपने लेखन में अरुंधती ने एक उच्च कुलीन स्त्री अम्मू और अछूत पुरुष वोलाथु की शारिरिक रूप से एकाकार होने की स्थिति को शाश्वत स्वरूप में शब्दों से संवारा है, दोनों के संपूर्ण संसर्ग को जस का तस, बिना किसी हिचक के, बिना किसी लुकाछिपी के प्रस्तुत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कामतुष्टि के इस अंतरंग दृश्य के लेखन में अरुंधति ने स्पष्ट शब्दावली का प्रयोग किया है, वैसा ही जैसा देखने में होता है, काम क्रीड़ा करने में होता है, और उसके अनुभवों के अहसास में होता।
काम क्रीड़ा के विवेचनात्मक वर्णन का अंश… अरुंधति की कलम से
जैसे…
वेलाथु के मन में पैदा हुई अम्मू के भीतर उतरने की लालसा ने उसके शरीर में सिरहन पैदा कर दी, उसे कांपने पर मजबूर कर दिया। अम्मू को वेलाथु के दिल में हथौड़ों की चोट जैसी आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी। उसने वेलाथु को बाहों से पकड़ लिया। उसने सोचा, अभी भी वेलाथु रंग में नहीं आ रहा था। सोच रहा था कि ‘क्या होगा अगर लोगों को पता चल गया तो मैं सब कुछ खो दूंगा… नौकरी परिवार, आजीविका, आय… सब कुछ । लेकिन वह यह सब खोकर भी अम्मू को पाना चाहता था। अम्मू ने उसे सीधे अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसका संदेह दूर हो गया। अम्मू ने भाई की पहनी हुई अपनी शर्ट के बटन खोल दिये, वेलाथु को तो कुछ भी खोलना नहीं पड़ा। वह खुला पैदा हुआ और खुला ही बड़ा हुआ था। दोनों की त्वचा से त्वचा मिली हुई थीं। अम्मू वेलाथु उसके चारों ओर ऐसे लिपटी हुई थी जैसे एक पेड़ के चारों ओर बेल। एक सुंदर और चिकना शरीर, दूसरा कठोर मूर्ति-जैसा शरीर, दोनों चिपके हुए। एक मजबूत सीना अम्मू के स्तनों से चिपक गया था। उसके हरिजन शरीर की एक प्रकार की गंध, जिसका आनंद अम्मू भी अपने शरीर की नदी के पानी की गंध से मिला रही थी। अम्मू ने अपना सिर नीचे किया और उसके होठों पर एक चुम्बन ले लिया। एक गहरा चुंबन, एक ऐसा चुंबन जो सामने से और अधिक गहरे चुंबन की मांग करता है। आख़िरकार वेलाथु ने भी उसे चूम लिया, पहले झिझकते हुए और फिर तेजी से भींच लिया। शर्म छूट गयी। संयम का नियम भी टूट गया और उसने उसे अपनी विशाल भुजाओं से अम्मू को पकड़ लिया। एक मेहनतकश आदमी के कठोर हाथों की कठोरता ने एक कोमल महिला के नर्म मांस के गोलों को छू लिया। अम्मू को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके शरीर की गर्मी से पिघल रही थी और वैसी ही गर्मी वेलाथु के शरीर में बह रही थी। तभी शरीर विज्ञान ने अपना काम करना शुरू किया। पीछे नदी अपने अंधेरे के साथ अनवरत बह रही थी। उसमें बड़ी रेशमी लहरें हिलोरें लेती हुई प्रतीत हो रही थीं। वैसी ही हिलोरें दोनों के भीतर उठ रही थीं, अम्मू ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और वेलुथा उस पर गिर पड़ा। दोनों के होंठ एक दूसरे से चिपक गये, अम्मू ने अपने लम्बे लम्बे बालों को उठाया और दोनों के चेहरों पर पर्दे की तरह गिरा दिया। अम्मू अपने शरीर के साथ हिल रही थी और अपने पूरे शरीर का वेलाथु के शरीर से परिचय करा रही थी। वेलाथु की मजबूत गर्दन, वेलाथु के कंधे, उसकी मजबूत छाती, और उससे सटा चॉकलेटी रंग का पेट और कमर… सब कुछ अम्मू ने चाट लिया। तो बदले में, बरसों से किसी प्यासे की तरह वोलाथु भी अपने शरीर से चिपकी हुई पूरी नदी को चाट-चाटकर पी गया। उच्च जाति की अम्मू के मिलन का डर अछूत वेलाथू के दिल में अभी भी गहरा रहा था, लेकिन जैसे ही आंसुओं से गीली आंख जैसे अंग के माध्यम से वेलाथु ने अम्मू के शरीर में प्रवेश किया, तो डर पर शरीर विज्ञान का साम्राज्य स्थापित हो गया। भय की उत्तेजना जीवन के रसशास्त्र, कामशास्त्र और संसर्ग के आनंद की मधुर स्वर लहरियों के लय में शांत हो गई। वेलाथु, जो जैसे एक नदी में तैर रहा था, अब अम्मू के शरीर की धारा में प्रवाहित होने लगा। अम्मू अनुभव कर रही थी कि वेलाथु रह रह कर उसके शरीर में और गहराई तक उतर रहा था, और वह आखिरकार तब रुका, जब शारीरिक संरचना के प्रवाह ने वेलाथु को शिथिल कर दिया। इस बीच अम्मू उपद्रव करती रही, सिसकारियां भरती रहीं, साथ देती रही और वही सब करती रही, जो वेलाथु से भी होता जा रहा था। दोनों के शरीर पसीने से तर बतर हो गये थे। फिर वेलाथु पलटा और अम्मू को चूमने लगा। आंखों, स्तनों और पेट को चूमते हुए वह नीचे आया और नाभि को चूम रहा था, तो अम्मू ने एक पल में उसे संकेत दिया कि वेलाथु को अब क्या करना है और अगले ही पल उसके दोनों कानों के पास से उसके मुंह को पकड़ कर झटके के साथ नीचे कर दिया। वेलाथु ने अम्मू के दोनों नितंबों को ऊपर उठाया और बस… एक अछूत हरिजन की जीभ अम्मू के अंतरतम भाग में प्रवेश कर गई, फिर बाहर अंदर आती जाती रही, और अम्मू के जीवन रस से भरे प्याले से उसने कई कई गहरे घूँट भर लिये…..
अरुधंति ने इस दृश्य से बताया कि उच्च या दलित, सबमें ‘काम’ समान
विवेचना सचमुच लुभावनी है… कामुकता के कल्पनालोक में ले जाती है। अपनी पहली ही किताब ‘गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ से अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत में नाम दर्ज करवाने वाली अरुंधति रॉय 1997 में बुकर पुरस्कार जीतने के बाद लगातार समसामयिक मुद्दों पर लिखती रही हैं। मगर, अपने पहले ही उपन्यास से वैश्विक लेखकीय संसार में विख्यात बुकर पुरस्कार सहज में ही जीत लेनेवाली अरुंधति ने अपने इस पुरस्कार विजेता उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ में दो पात्रों के जातिगत भेद के सच से साबित करने की कोशिश में विभिन्न प्रयासों से यह साबित किया है कि जाति चाहे कोई भी हो, वर्ण चाहे कोई भी हो, और वर्ग भी कुछ भी हो, मगर दो शरीरों का उदात्त आकर्षण एक सा होता है, काम की ज्वाला सब में समान धधकती है, और उसे शांत करने के तरीके भी सबके समान ही होते हैं। मगर हां, एक हरिजन की जीभ का एक उच्च वर्गीय महिला के अंतरंग अंग में प्रवेश करने का यह विवेचनात्मक विस्तारित वर्णन ही अरुंधति रॉय के खिलाफ एक आपदा बन गया, और उनकी पुस्तक को केरल में प्रतिबंध झेलना पड़ा। अरुंधति ने ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ में उसके दो विजातीय पात्रों, उच्च वर्ग की अम्मू और अछूत कहे जाने वाले समाज के वेलुथा के शारीरिक आकर्षण की, दोनों में धधकती कामाग्नि की और उसके शमन के शारीरिक तरीकों की जो सजीव व्याख्या की है, वह बुकर पुरस्कार के ज्ञात इतिहास में उनसे पहले संभवतया किसी पुरस्कार विजेता लेखक ने नहीं की होगी। दो शरीरों के एक एक अंग की परस्पर अठखेलियों और उससे उपजने वाली आहों से भरी सिसकारियों के दृश्य को जिस तरह से लेखन में उतारा है, उसे शत प्रतिशत पॉर्न की श्रेणी में रखा जा सकता है।
शरीरों की आग की शांति के लिए बिना किसी आमंत्रण के पहुंच
‘गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ में जैसे, अम्मू और वेलुथा बिना किसी निर्धारण के, बिना एक शब्द बोले या बिना किसी संकेत के, रात के घने अंधेरे में, दोनों उस जगह पहुंच जाते हैं जहां उन्हें अंतरंग होना है, एकाकार होना है, दोनों के शरीरों को मिलना है, गहनता से एक दूजे के शरीर की उर्जा को एक दूजे में प्रवाहित करना है, दोनों के अंगों के आकार, प्रकार, लंबाई और गहराई को मन से, हाथ से, पांव से, उंगलियों से और जिव्हा से भी आंकना है और वह भी रात-रात भर। दोनों अपने अपने शरीरों की शांति के लिए बिना किसी आमंत्रण के ही एक ही जगह पर पहुंचते हैं, और एक के बाद एक ऐसे ही कई कई मिलन के लिए, लगातार, धुंआधार और अनवरत। अछूत जाति का वेलुथा कई तरह से अति स्नेही हैं, विनोदी, बुद्धिमान भी और रचनात्मक क्षेत्र में जांबाज भी, जो एक अटूट यौन आकर्षणधारी उच्च जाति की सीरियाई ईसाई अम्मू के बीच के सारे सामाजिक, जातिगत और वर्ग के अवरोधों को एक रहस्यमयी तरीके से साध लेता है। अरुंधति ने अम्मू और वेलाथु, दोनों के शरीरों के अंग – प्रत्यंगों के एकाकार होने की गजब व्याख्या की है, जिसे पढ़ते पढ़ते कोई भी एक ऐसे कल्पनालोक में खो सकता है, जो उसके लिए किसी कामलोक की कामुक साधना से कम नहीं।
अवसरों को जी लेने की कामना के अवसर का लाभ ले लेने का चित्रण
केरल में सीरियाई ईसाई समुदाय के आलोचकों को अरुंधति का ये दलित अछूत जाति के युवक से उनके अपने समाज की अम्मू का वासना शांति कराने का व्यापक विस्तारित विवरण लगभग घृणित, और उनकी सार्वजनिक शालीनता की भावना के लिए अपमानजनक लगा। मामला न्यायालय में गया, तो न्यायाधीश का मानना था कि कथानक सचमुच केरल के सीरियाई ईसाई समुदाय को आहत करनेवाला है और पुस्तक में वर्णित यौन कृत्य का लगभग सजीव चित्रण पाठकों के दिमाग को भ्रष्ट कर देगा। कोर्ट में आरोप लगानेवालों का कहना था कि अरुंधति के इस उपन्यास में उन्होंने लेखकीय स्वतंत्रता लेकर इसे व्यावसायिक रूप से सफल बनाने के लिए कामुकता की भावना को प्रवाहित करने का सहारा लिया है। कोर्ट में कहा गया कि इस उपन्यास में दो पात्रों अछूत वेलुथा और उच्च कुलीन अम्मू के बीच यौन मिलन की प्रक्रिया व दोनों के अंग – प्रत्यंगों के संसर्ग की गहन और स्पष्ट विवेचना का विस्तारित विवरण पढ़कर कोई भी कल्पनालोक में खो सकता है, जो मानसिक रूप से लोगों पर अलग असर करेगा। लेकिन कोट्टायम की प्रसिद्ध शिक्षाविद् रॉय की मां, मैरी रॉय का कहना था कि उपन्यास के अंश पाठकों के दिमाग को भ्रष्ट नहीं करेंगे। बाद में दुनिया ने देखा कि अरुंधति का यह पहला अश्लीलता से ओतप्रोत कहे गए दृश्यवाला उपन्यास ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ अपने उसी लोकलुभावन कामदृश्य के विवेचना के छोटे हिस्से के कारण नहीं बल्कि जीवन के अवसरों को जी लेने की दमित कामना के प्रकट अवसर का लाभ ले लेने के बेहतरीन चित्रण के कारण बेस्टसैलर बन गया। और उसके बाद अरुंधति लगातार खबरों में रही, चर्चित रही और विवादों में भी रही। कभी अपने किसी नए उपन्यास से, कभी नक्सलियों से जंगलों में मुलाकातें करना, जेएनयू में सत्ता के विरोध का साथ देने से, तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध से। लेकिन कश्मीर को भारत का हिस्सा न होने की बात कहकर राष्ट्र की एकता और अखंडता के ख़िलाफ़ टिप्पणी करने के आरोप में अब अरुंधति पर यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाए जाने की अनुमति मिल गई है, सो वह फिर से खबरों में है। वैसे भी विवादों से उनका नाता पुराना है और उनके 27 साल पुराने उपन्यास में मन के कामोद्दिपन को जगाने के दृश्यों को तो आपने पढ़ ही लिया है।
-निरंजन परिहार
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)