Rajasthan BJP: किरण माहेश्वरी… बिजली सी फुर्तीली और वक्त के साथ तालमेल बिठाकर आगे बढ़ने वाला व्यक्तित्व… किसी भी काम को अंजाम देने में त्वरित तात्कालिकता तो आस, कि ऐसी कि लोग दंग रह जाते। समय कभी नहीं गंवाया। बीजेपी में नरेंद्र मोदी जैसे बहुत सारे लोग अपने निजी कर्मफल के बूते पर शिखर का सपना साकार करने पहुंचे, उनमें किरण माहेश्वरी को भी गिना जा सकता है। वे इस इस पुण्य कामना की कृतज्ञ कभी नहीं रहीं की जनता के वोटों से जीत कर स्वयं को जनता की ही भाग्य विधाता माने। पहली बार सांसद बनते ही वे वर्तमान में रहने और वर्तमान को जीने की राजनैतिक ललित कला सीख गई थीं, इसीलिए वे अपने होने की इस महिमा को अच्छी तरह समझ गई थीं और इसलिए वे हर वक्त हर जिम्मेदारी के लिए सज्ज तो रहती ही थीं, चुनाव अभियान की मुद्रा में भी सदा दिखती रहीं। किरण ने स्वयं को सेवक माना, और नारी होने के अपने सम्मान को भी सदा सामने रखकर आगे बढ़ती रहीं।
चमक बिखेरना किसी भी किरण के सहज स्वभाव का हिस्सा होता है, लेकिन राजनीति में किरणों के बिखरने और निखरने के आयाम कुछ अलग ही हुआ करते हैं। इसी वजह से किरण जानती थी कि जितनी उनकी चमक बिखरेगी, उतना ही लोग चमकेंगे नहीं बल्कि चौंकेंगे। सो, लज्जा के आंचल को नारी सम्मान के प्रतीक के रूप में वह स्वयं का उजाला निखारती रहीं और हर काम में सावधान तो ऐसी रहीं कि न तो राजनीति को उन्होंने कभी लज्जित होने दिया और न ही कोई उनको राजनीति में कभी लज्जित कर सका। किरण बेहद संवेदनशील थीं, लेकिन कोरोनाकाल में मरती मानवीयता और सिमटती संवेदनाओं का एक दौर ऐसा भी आया, जो उनको ही लीलकर ले गया। यह वो दौर था, जब हमारे अपनों के शव ही अछूत गठरियां थे। अत्यंत आत्मीय की अकाल मृत्यु पर भी बेजान पुतला बने रहना हमारी नियती बन गया था। मृत आत्माएं किसी अपने का ही कंधा तक न मिलने को अभिशप्त थी, और अंतिम संस्कार के हमारे जीवन संस्कार भी स्वाहा हो रहे थे, उसी दौर में 30 नवंबर 2020 को गुरुग्राम के मेदांता हॉस्पिटल में किरण जैसी तेजस्वी महिला को भी कोरोना तेज हीन करते हुए काल के गाल में अकाल समा ले गया।
वह महज 20 की उम्र में ब्याही, उससे पहले मुंबई में रहीं, वहीं पर पढ़ीं, और 24 की उम्र में जब विश्व हिंदू परिषद की गंगाजल यात्रा में शामिल हुईं, तो उनकी सक्रियता सभी को चकित करनेवाली रही। संगठन में उनकी सक्रिय सहभागिता और सायास समर्पण ने बीजेपी में उनके कद को आला किस्म की उंचाई बख्शी। अयोध्या में सन 1992 में कार सेवा में शामिल हुईं, तो उसी साल राजस्थान बाल कल्याण बोर्ड की सदस्य के बाद 1994 में पहले पार्षद और फिर 33 की उम्र में उदयपुर की मेयर भी। किरण सन 2000 में राजस्थान में बीजेपी महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष के रूप में चमक बिखेरने लगी। कांग्रेस की दिग्गज नेता गिरिजा व्यास को 2004 में मात देकर सीधे लोकसभा में और बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव बनने के बाद 2006 में महिला मोर्चे की राष्ट्रीय अध्यक्ष। सांसद पद से इस्तीफा दिया 2008 में राजसमंद से विधायक और फिर वसुंधरा राजे की सरकार में मंत्री भी। 50 की होते होते 2011 में पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव और 2013 में फिर से विधायक और सीधे शिक्षा मंत्री। जिस प्रदेश का बेटियों के जन्म को ही अभिशाप मानने का इतिहास रहा हो, उस राजस्थान में कोई बेटी शिक्षा मंत्री बने, तो बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ का नारा बेमानी कैसे रह सकता है। इसीलिए, राजस्थान को सिर्फ फाइलों में बेटियों का साक्षर होते देखना उनका स्वभाव नहीं था, सो छात्राओं की शिक्षा, शैक्षणिक सुरक्षा व सामाजिक संरक्षा के पुख्ता प्रंबध भी किरण का सपना रहा।
सन 1961 में मध्य प्रदेश के रतलाम में 29 सितंबर को किरण जन्मीं तो एक सामान्य से व्यवसायी परिवार में थीं, लेकिन राजनीति की बारीकियां कहां, कैसे, किससे और कब सीखीं, यह अभी भी रहस्य है। वैसे, रहस्य तो यह भी है कि राजनीति में कब, किसको, कैसे साधना और अपने प्रतिद्वदी को उसी के दायरे में बांधना भी उन्होंने किससे सीखा। पर, यह कोई रहस्य नहीं है कि महिलाओं के सशक्तिकरण और उत्थान के लिए उन्होंने कैसे प्रदेश के पहले महिला सहकारी बैंक की स्थापना की और कैसे उसे महिला मुक्ति का अग्रणी संगठन बनाने के साथ राजनीतिक युक्ति का मार्ग भी बनाया।
अब जब किरण माहेश्वरी इस लोक में ही नहीं है, तो भले ही बहुत सारी बातें ही बिल्कुल ही बेमानी सी है और हालांकि बात पुरानी भी हो गई है, फिर भी राजनीति में अपार शक्ति अर्जित करने के बाद कैसे कोई अपने शक्तिदाता से ही भिड़ जाता है, इसके किस्से और उन किस्सों के हिस्सों में किरण की कथाएं सुनाने वाले भी मेवाड़ में कम नहीं हैं। हालांकि संवैधानिक तौर पर महामहिम तो गुलाबचंद कटारिया अब बने हैं, परंतु मनुष्य होने के तौर पर महानता के विराट व्यक्तित्व से तो कटारियआ सदा से ही सजे संवरे रहे, इसी कारण उन्होंने छोटी बहन बताकर किरण को क्षमादान तभी दे दिया था, जब वे सियासत के संसार में अपनी चमक बिखेर रही थीं। हालांकि, राजनीति में कटारिया और किरण की भिडंत कोई दोनों के बीच निजी नहीं थी। वह तो कटारिया असल में वसुंधरा राजे के निशाने पर हमेशा से रहे और उस निशाने को साधने में राजे ने किरण को ताकत भी बख्शी, पदों पर भी पहुंचाया और हथियार भी बनाया, जैसा कि राजनीति में आम तौर पर हर कोई करता ही है।
बाद में तो खैर, किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ति माहेश्वरी भी कटारिया के साथ विधानसभा में रहीं और अब वह लगातार दूसरी बार अपनी माता से विरासत में मिली विधानसभा सीट राजसमंद से ही विधायक भी हैं और इस समय दीप्ति बिल्कुल अपनी पूज्य माता की शैली में ही वस्त्र विन्यास से सज कर दुनिया को जानने समझने का अभ्यास कर रही हैं। हमारे मित्र और राजसमंद में बीजेपी के प्रभारी वीरेंद्र सिंह चौहान बताते हैं कि दीप्ति अपनी माता की तर्ज पर ही सेवा व सक्रियता के साथ जनहित की राजनीतिक विरासत को भी विस्तार दे रही हैं। कहा जा सकता है कि किरण की आभा दीप्त हो रही है। मगर, आज भले ही बीजेपी संसार की सबसे बड़ी पार्टी है और देश में उसके 10 करोड़ सदस्य हैं, मगर किरण माहेश्वरी इस लोक में नहीं हैं, किरण का उजाला झम्म से बिखरने और तेजी से निखरने की कहानी अधूरी ही रह गई, या शायद इतने में ही पूरी हो गई। आज किरण अगर, इस संसार में आज होतीं, राजनीति में जहां भी होती, तय है कि पहले से आला किस्म के ऊंचे पद पर आसीन होती। मगर वर्तमान में, राजस्थान की राजनीति में क्या बीजेपी, क्या कांग्रेस, और क्या ही कोई और पार्टी, दूसरी किरण माहेश्वरी दूर दूर तक फिलहाल तो अपनी चमक बिखेरती कहीं नहीं दिखती। और आगे कोई और किरण जन्म ले ले, यह भी पक्का तो नहीं कहा जा सकता!