Narendra Modi: लोकतंत्र की समस्त राजनैतिक ताकत जनता में निहित है, वह जनता ही अपनी सरकार चुनती है और सरकार उनकी समान सुरक्षा और फायदे के लिए कार्य करती है। फिर लोकतंत्र की खास बात यह भी है कि जनता को ही सरकार में बैठे लोगों को बदलने का अधिकार है। इसी लिए संसार के किसी भी लोकतंत्र में लोगों की संप्रभुता के इस कालातीत आख्यान को कम करके नहीं आंका जा सकता। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसी साल की गर्मियों में अप्रैल से मई महीनों के बीच में भारत में एक बार फिर लोकतंत्र का महापराव कहा जाने वाला चटुनाव आयोजित हुआ। जिसमें दुनिया के सबसे ताकतवर राजनेताओं में गिने जाने वाले भारत के प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत की जनता ने उम्मीद के विपरीत नतीजे दिए और उनकी बार्टी बीजेपी का अबती बार 400 पार का नारा फेल कर दिया। जबकि भारत की बहुसंख्यक जनता अब भी नरेंद्र मोदी में विश्वास करती है और मानती है कि राहुल गांधी उनके मुकाबले राजनीतिक रूप से कुछ भी नहीं है।

जीत के बावजूद मोदी पस्त, तो राहुल हार में भी मस्त
इधर, हार ही में महाराष्ट्र और उससे पहले हरियाणा में बीजेपी की भारी जीत ने कांग्रेस और कांग्रेसियों को बेहद निराश किया है, लेकिन राहुल गांधी के चेहरे पर शिकन तक नहीं है। उनकी इस बेफिक्री ने यह भी साबित कर दिया है कि कांग्रेस की हार हो या जीत, उनको कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने का माद्दा बहुत ज्यादा है। यहां तक कि टकराव के कुछ आसार के बावजूद वे अपनी पार्टी के संरक्षक संगठन आरएसएस की भी इस समझ से आगे बढ़ जाते है कि भगवा खेमे में उनका कोई सानी नहीं है। भारत में मोदी युग दुनिया के किसी भी भू-राजनैतिक असर से बेअसर देखा जा है, जिसका हालिया सबूत ब्रिक्स है। विदेश नीति में मोदी की व्यावहारिक लेकिन नरम मुखर स्वतंत्रता ने उनका अद्वितीय स्थान बनाया है। मोदी वैश्विक स्तर पर अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंधों को गहरा करते हुए उन चंद नेताओं में एक साबित हुए हैं जो व्लादिमीर पुतिन के साथ-साथ वोलोदिमीर जेलेंस्की या बेंजामिन नेतन्याहू और खाड़ी के नेताओं के साथ बातचीत करते हैं। कभी ताकतवर देश ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के साथ सुपर दिखते हैं। लेकिन राहुल गांधी हमारे देश में भी उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं के साथ भी बैठकर किसी भी संकट के विषय पर भी वार्ता करते नहीं दिखते। जबकि हर हार के बाद या हर जीत में भी देश प्रधानमंत्री मोदी को उनकी पार्टी के ज्यादातर नेताओं के साथ घंटों बैठकर हार-जीत की समीक्षा करते देखने का आदी बन चुका है।
मोदी राज में मनमोहन से आगे अर्थव्यवस्था की ताकत
अर्थव्यवस्था के मामले में वैश्विक स्तर पर भारत को देखें, तो भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन अर्थात 40 खरब डॉलर के करीब पहुंची तो उसमें मोदी ही विकास के ऐसे मॉडर्नाइजर हैं, जिन्होंने सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में देश को आगे बढ़ाया है। जबकि आर्थिक मामलों में राहुल गांधी कितने जानकार हैं, यह देश अभी जानता नहीं है। वैसे, मनमोहन सिंह महान अर्थशास्त्री हैं, इससे किसको ऐतराज हो सकता है। लेकिन देश और खास तौर पर कांग्रेस को चाहिए कि 11 साल बीत जाने के बावजूद मनमोहन सिंह द्वारा लाई गई आर्थिक उदारवाद का डंका पीटना बंद कर देना चाहिए। क्योंकि असलियत यही है कि भारत भले ही बिखरी हुई, लेकिन अपने आप में इतनी बडी आर्थिक महाशक्ति है कि हमें दुनिया के बाजार में सिर्फ उतरने भर की देरी थी। मनमोहन सिंह ने पूरी जिंदगी अमेरिका में विश्व बैंक से लेकर अंर्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष में नौकरियां कीं, मगर उन्हें पंचायती अर्थव्यवस्था का विकास नहीं, बल्कि कॉरपोरेट अर्थव्यवस्था ही समझ में आई। इसीलिए अपने देश में ऐसा हो रहा है कि सामान्य व्यापारी बरबादी की कगार पर है, मगर अंबानी और अडाणी दुनिया के सबसे बडे रईयों में शामिल हो गए और खुद मनमोहन सिंह जिस गांव के रहने वाले है उस गांव की ग्राम पंचायत के पास अपना भवन बनाने तक का पैसा नरेंद्र मोदी के राज में ‘पंचायत से पार्लियामेंट’ नारे के दौर में पहुंचा है। पता नहीं यह कांग्रेस की कैसी अर्षव्यवस्था रही होगी, कल्पना की जा सकती है।

मोदी तीसरी बार पीएम, तो राहुल अभी भी सीख रहे हैं
नरेंद्र मोदी भारत के तीसरी बार प्रधानमंत्री हैं लेकिन उनका यह लगातार तीसरा कार्यकाल चुनावी जीत के लिहाज से जनादेश कम होने के साथ आया है। इस बार के चुनावी नतीजों ने हमारे राजनैतिक परिदृश्य को काफी बदल दिया। भले ही भगवा मंडली अब भी मजबूत है, और सत्ता के संसाधनों से उसका जुड़ाव भी पहले से ज्यादा ताकतवर साबित हो रहा है, लेकिन अब पार्टी के अंदर तो नहीं, लेकिन बाहर जरूर पीएम मोदी को तीखी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वैसे, आशातीत सफलता से परे रहने के बावजूद इतिहास में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद प्रधानमंत्री मोदी के लगातार तीसरी बार जीतने वाले पहले प्रधानमंत्री के रूप में दर्ज हो गए हैं। मोदी इस बार के लोकसभा चुनाव में घटे हुए बहुमत के बावजूद राहुल गांधी के मुकाबले कहीं ज्यादा ऊंचे मुकाम पर मौजूद हैं। क्योंकि, संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद में विपक्ष का नेता बन जाने के बावजूद राहुल गांधी इस समय अपने पूज्य पिता राजीव गांधी की शैली में दुनिया को जानने और समझने का पूरा अभ्यास कर रहे हैं। वे गरीबों की झोपडी में सोते हैं, बूट पॉलिश करते हैं, कुलियों के साथ बात करते हैं, सुथारी से लेकर कुम्हार के साथ काम करते दिखते हैं, और ट्रक ड्रायवर के साथ सफर करने से लेकर खेत में धन बोने तक के काम करते हैं। फिर उन्हीं के साथ खाना खाते हैं। कभी वे संसद में बेवजह ही पीएम मोदी के गले लगकर अपने साथियों को आंख मारते दिखते हैं। अब, राहुल गांधी पर इस तरह की यह कहानियां तो आती जाती रहेगीं, लेकिन असली सवाल राहुल गांधी की राजनैतिक पात्रता को ले कर किया जा रहा है, जिसकी अभी भी उनमें उम्मीद की जा रही है।
-निरंजन परिहार (राजनीतिक विश्लेषक)
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