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Home»देश-प्रदेश»Bhairon Singh Shekhawat: क्या सिर्फ एक सड़क जितना ही योगदान था महान नेता शेखावत का?
देश-प्रदेश 6 Mins Read

Bhairon Singh Shekhawat: क्या सिर्फ एक सड़क जितना ही योगदान था महान नेता शेखावत का?

Prime Time BharatBy Prime Time BharatNovember 16, 2025No Comments
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Bhairon Singh Shekhawat: देश के उपराष्ट्रपति और तीन बार मुख्यमंत्री रहे दिगिगज नेता भैरोंसिंह शेखावत (Bhairon Singh Shekhawat) राजस्थान के अब तक के सारे नेताओं में सबसे सम्मानित माने जाते हैं। यह सम्मान उनको उनके सांसारिक व्यवहार, राजनीतिक आचरण और सभी से संबंधों को सहेजने की सदाशयता के कारण मिलता रहा है। आज जब, आम तौर पर राजनेताओं को सम्मानित नजरों से देखना कम हो गया है, ऐसे संकटकाल में भी भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान (Rajasthan) से सर्वाधिक वंदनीय नेताओं में गिने जाते हैं, और वह भी तब, जब उनको इस संसार से विदा हुए 15 साल पूरे हो चुके हैं। प्रदेश में बीजेपी (BJP) की सरकार है और राजस्थान की राजधानी जयपुर (Jaipur) की एक सड़क को भैरोंसिंह शेखावत का नाम दिया गया है। इसी पर राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार, बुद्धिजीवी और चिंतक त्रिभुवन की विशेष टिप्पणी – 

Table of Contents

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  • घटिया सड़क को शेखावत से चिपकाने का आग्रह
  • जननेता का योगदान सड़क-पट्ट तक सिमित क्यों
  • हरिदेव जोशी के नाम विश्वविद्यालय, शेखावत पर क्या
  • शेखावत के नाम पर कोई अंतरराष्ट्रीय संस्थान क्यों नहीं
  • शेखावत के योगदान को भाजपा ने नहीं समझा
  • बहुत ही निर्भीक व साहसिक नेता थे भैरोंसिंह शेखावत
  • शेखावत का हिंदुत्व भी समरसता का हिंदुत्व था
          • -त्रिभुवन

घटिया सड़क को शेखावत से चिपकाने का आग्रह

मुख्यमंत्री, उपराष्ट्रपति और आधुनिकतावादी सोच के सुयोग्य प्रतिनिधि रहे भैरोसिंह शेखावत के नाम के साथ जयपुर की एक घटिया सड़क को चिपकाने का आग्रह क्या वाक़ई सही है? क्या यह बहुत हल्की टोपोनिमी नहीं है? ख़ासकर इसलिए कि शेखावत की छवि नभस्पर्शी थी, इसलिए। और इसलिए भी कि उनके समकक्ष तीन नेताओं के नाम से राजस्थान में बड़े विश्वविद्यालय हैं, जबकि शेखावत बेशक़ रूप से उनमें से दो मुख्यमंत्रियों से कहीं अधिक बड़े थे। व्यास के मुक़ाबले राजस्थान में कोई नेता नहीं ही हुआ; लेकिन सुखाड़िया और जोशी ऐसे दल के मुख्यमंत्री रहे, जो गांधी-नेहरू और व्यास जैसे लोगों की विरासत से चल रहा था। और उस समय इंदिरा गांधी का ताप और प्रताप भी कम न था। लेकिन शेखावत ने तो अपने खून-पसीने और राजनीतिक सूझबूझ से न केवल भारतीय जनता पार्टी का शिल्प तैयार किया, सुयोग्य नेताओं से मुक़ाबला करके अपने आपको भी प्रतिस्थापित किया था।

Bhairon Singh Shekhawat
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जननेता का योगदान सड़क-पट्ट तक सिमित क्यों

सड़कों और चौकों के नामकरण आदि स्मृति-राजनीति का सबसे सरल, किंतु सबसे अल्पजीवी औज़ार है। किसी महत्त्वपूर्ण जननेता का योगदान यदि केवल एक सड़क-पट्ट पर सिमट जाए तो वह स्मृति नहीं, औपचारिकता बन जाती है। भैरोंसिंह शेखावत जैसे असाधारण नेता के लिए, जिनकी सार्वजनिक भूमिका राजस्थान की सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण की दीर्घकथा से गुँथी है, “टोंक रोड” का नाम बदलना प्रतीक अवश्य होगा, पर अर्थपूर्ण नहीं। क्या यह सार्वजनिक तथ्य नहीं है कि पट्टिकाएँ सूरज में फीकी पड़ जाती हैं और संस्थान पीढ़ियाँ गढ़ते हैं। सड़कों पर आए दिन दुर्घटनाएं घटित होती हैं। कब्ज़े होते हैं। और भी जाने क्या क्या होता है।

हरिदेव जोशी के नाम विश्वविद्यालय, शेखावत पर क्या

इतिहास हमें बताता है कि टिकाऊ स्मारक ईंट-पत्थर नहीं, संस्थाएँ होती हैं। विश्वविद्यालय, अभिलेखागार, शोधपीठ और प्रशिक्षण केंद्र; जहाँ एक नाम विचार में बदलता है, विचार पद्धति में और पद्धति जनहित में। हरिदेव जोशी के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापित करने की परंपरा हो या जयनारायण व्यास और मोहनलाल सुखाड़िया के उदाहरण यह संकेत देते हैं कि राजस्थान ने स्मृति को शिक्षा में रूपांतरित करने का विवेक दिखाया है; शेखावत के लिए भी वही कसौटी न्यायोचित है। जो बात अशोक गहलोत जैसे नेता के दिमाग़ में आ जाती है, वह अगर भाजपा के नेताओं के दिमाग़ में नहीं आ रही तो अफ़सोसनाक़ बात है। गहलोत ने जोशी के नाम से तो दो विश्वविद्यालय स्थापित कर दिए थे। यह साहसिक बात थी। एक सकारात्मक ज़िद थी। लेकिन यह अलग बात है कि बाद में हमारे राजनेता ऐसे शिक्षा केंद्रों की कदापि परवाह नहीं करते कि वहाँ बेहतर हालात कैसे बने रहों।

Bhairon Singh Shekhawat BW
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शेखावत के नाम पर कोई अंतरराष्ट्रीय संस्थान क्यों नहीं

यथार्थवादी और सम्मानजनक प्रस्ताव यही है कि शेखावत अध्ययन और समाजोद्धार केंद्र जैसा कुछ किया जाए। एक ऐसा समेकित अंतरराष्ट्रीय संस्थान, जहाँ सुशासन, ग्रामीण आजीविका, रेगिस्तानी पारिस्थितिकीय, स्थानीय प्रशासन और अंत्योदय-उन्मुख लोककल्याण, राजस्थानी संस्कृति, साहित्य, कलाओं आदि पर शोध-प्रशिक्षण एक साथ चलें और जो किसी विश्वविद्यालय से भी बड़े महत्त्व का विश्वस्तरीय संस्थान हो। साथ ही छात्रवृत्तियाँ, हर विश्वविद्यालय में एक-एक “शेखावत चेयर” और सार्वजनिक नीति के लिए फील्ड-लैब्स की व्यवस्थाएँ हों। यह स्मरण को कर्म से जोड़ देगा। नाम को दैनंदिन उपयोगिता देगा।

शेखावत के योगदान को भाजपा ने नहीं समझा

एक सड़क का नाम किसी अल्पविराम की तरह है। क्षणिक ठहराव, शीघ्र भुला दिया जाने वाला विराम-चिह्न; पर एक विश्वविद्यालय दीर्घ वाक्य है, जहाँ अर्थ बार-बार जन्म लेता है। तराशा जाता है और अंततः समाज के पाठ में दर्ज़ होता जाता है। शेखावत की विरासत को सड़क की धूल नहीं, विद्यार्थियों की आँखों की चमक चाहिए। वहीं से इतिहास अपनी सबसे विश्वसनीय वाणी पाता है। शेखावत का जो अवदान था, उसे न तो भाजपा ने समझा और न ही अन्य लोगों ने। भाजपा जैसी पार्टी में रहकर वे प्रगतिशील मूल्यों के वाहक बने रहे और समय से आगे की पुकार करते रहे। एक वही नेता था, जो उस समय कह रहा था कि सारे चुनाव एक साथ होने चाहिए। बार-बार चुनाव से बहुत बाधा होती है।

Niranjan Parihar With Bhairon Singh Shekhawat
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बहुत ही निर्भीक व साहसिक नेता थे भैरोंसिंह शेखावत

मेरे मन में उनके प्रति उस समय और सम्मान बढ़ गया था, जब उन्होंने कहा कि मैं पहली बार मुख्यमंत्री बना तो मुझे विकास के लिए सर्वोदय जैसी नीति पर काम करना था; क्योंकि मैं गांधीजी से भी प्रभावित रहा था और इसीलिए हमने जागीरदारी उन्मूलन का भी विरोध किया था। लेकिन हमारे यहाँ बहुत बड़चनें थीं तो मैं सर्वोदय की जगह एक नया शब्द अंत्योदय लेकर आया। जिस समय राजस्थान का लगभग पूरा राजपूत समाज और आज के समय बूढ़े हो चुके उस समय के कई बड़े तीसमारखां नौजवान सती के समर्थन में तलवारें लहराते हुए जयपुर की सड़कों पर आग उगल रहे थे, शेखावत जैसा साहसिक नेता ही कह सकता था कि सती प्रथा घृणित है। स्त्री विरोधी है। अमान्य है। मैं इसका विरोध करता हूँ। और ऐसा करके भी वे चुनाव जीते, हारे नहीं। यह उन निर्बुद्धि राजनीतिक दलों के लिए बड़ी प्रेरक नज़ीर है, जो लोग जातिवादियों या धर्मांधतावादी कट्टर लोगों के आगे सरेंडर हो जाते हैं।

शेखावत का हिंदुत्व भी समरसता का हिंदुत्व था

और वह भी अकेले शेखावत ही थे भारतीय जनसंघ में, जिन्होंने जागीरदारी प्रथा के उन्मूलन का पुरज़ोर शब्दों में समर्थन किया और वह भी शेखावत ही इकलौते नेता थे, जिन्होंने राजस्थान की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए जब कांग्रेस विरोधी सरकारें बनाने का मौक़ा आया तो जयपुर के सिटीपैलेस में गायत्रीदेवी से मिलने नहीं गए, जबकि कई समाजवादी लोग राजतंत्र को नमन करते हुए अपने समाजवादी मूल्यों की टोपी उतारकर न केवल वहाँ चले गए थे, उस “राजमाता” के पैसे से दिल्ली तक गतिविधियाँ भी कीं और आकर उन्हें बचा हुआ पैसा लौटाया भी। उस अकेले भैरोसिंह शेखावत ने छत्तीस दलों को आत्मसात करके भारतीय जनता पार्टी को आज की हालत में खड़ा किया था। वह हिन्दू मुसलमान सपने में भी नहीं करते थे। उनका हिंदुत्व भी समरसता का हिंदुत्व था। तो एक ऐसे नेता को क्या आप टोंक रोड पर ख़त्म कर देना चाहते हैं? या यह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कांग्रेस का शासन आए तो वे शेखावत साहब के नाम से ऐसा केंद्र स्थापित करें‌?

-त्रिभुवन

(वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक चिंतक त्रिभुवन जी की एक्स वॉल से साभार)

 

इसे भी पढ़ेंः Rajasthan: माथुर और गहलोत, दो नेता, दोनों ही बड़े दिल वाले

ये भी पढ़ लीजिएः Rajasthan CM: भारी पड़ते भजनलाल और रफ्तार पकड़ता राजस्थान

 

 

Bhairon Singh Shekhawat BJP Jaipur Rajasthan
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