Maharashtra Election: विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाड़ी के गठबंधन में प्रादेशिक साथियों के कांग्रेस के साथ सार्वजनिक व्यवहार के लेकर एक नया चिंतन है। कांग्रेस की चिंता यह है कि महाराष्ट्र में उसके साथी दलों खास, तौर से उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस का वैसा अपनापन नहीं दिख रहा, जैसा कि सार्वजनिक तौर पर राजनीति में दिखना चाहिए। महाविकास आघाड़ी में साथी दलों के दिग्गज नेताओं द्वारा घोषणा पत्र जारी करने जैसे खास मौके पर भी कांग्रेस के बड़े नेताओं से दूरी रखने के मायने तलाशे जा रहे हैं। कांग्रेस के साथ महाविकास आघाड़ी के साथी दलों के उपेक्षित व्यवहार का एक संदेश यह भी माना जा रहा है कि या तो साथी दल साथ में रहकर भी कांग्रेस से दूरी दिखाना चाहते हैं या फिर वे मान कर चल रहे हैं कि प्रदेश में तो वे ही कांग्रेस पर भारी हैं।
कांग्रेसी दिग्गजों के साथ साथी दलों के छोटे नेता
गठबंधन के घोषणा पत्र ‘महाराष्ट्रनामा’ जारी करने मौके पर रविवार (10 नवंबर) को कांग्रेस के कई दिग्गज राष्ट्रीय नेता खास तौर से नई दिल्ली से मुंबई पहुंचे थे। लेकिन घोषणा पत्र जारी करने के आयोजन में होटल ट्राइडेंट में गठबंधन के साथी दलों के केवल दूसरे दर्जे के नेताओं की मंच पर उपस्थिति से कांग्रेस के बड़े नेताओं में निराशा का भाव साफ दिखा। नई दिल्ली से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खड़गे, वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, महासचिव एवं यूपी प्रभारी अविनाश पांडे, महाराष्ट्र प्रभारी रमेश चेन्नीतला, महिला कांग्रेस अध्यक्ष अलका लांबा, राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, पवन खेड़ा, कांग्रेस मुख्यालय प्रभारी गुरदीप सप्पल, सचिव प्रणव झा जैसे कई राष्ट्रीय चेहरे गठबंधन का घोषणा पत्र जारी करने के लिए विशेष रूप से मुंबई में थे। लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना के संजय राऊत और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस से सुप्रिया सुले ही सबसे बड़े नेता के तौर पर में उपस्थित रहे। कांग्रेस इसी वजह से अपने प्रति पवार और उद्धव की दूरी दिखाने के संदेश को लेकर चिंतन में है।
बड़े वादों में बड़े नेताओं की उपस्थिति जरूरी
सियासत में माना जाता है कि राजनेता अपने मन की दूरियों को आम तौर पर अपनी उपस्थिति और व्यवहार से ही प्रकट करते हैं। इसीलिए, कांग्रेस की चिंता को वाजिब बताते हुए राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि महाराष्ट्र में ठाकरे और पवार निश्चित तौर पर बड़े हैं, लेकिन उनको घोषणा पत्र जारी करने के विशिष्ट मौके पर उपस्थित रहकर एकजुटता का संदेश देना चाहिए था। परिहार कहते हैं कि राजनेताओं के सार्वजनिक व्यवहार के संकेतों में कई संदेश छिपे होते हैं। पता नहीं पवार और उद्धव के मन में वास्तव में क्या है, कौन जाने। महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार संदीप सोनवलकर का मानना है कि जिस प्रदेश के बारे में विकास की कोई बात कही जा रही हो, तो उस प्रदेश के बड़े नेताओं की उपस्थिति से ही उन वादों की ताकत बढ़ती है। चुनाव घोषणा पत्र जारी करने जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण आयोजन में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना के सबसे बड़े नेताओं की दूरी के कुछ खास माय़ने हो सकते हैं। लेकिन फिर भी ऐसे, अवसरों पर दूरी दिखाने के नुकसान तो होते हैं। सोनवलकर कहते हैं कि राहुल गांधी नहीं थे, तो चलता है, क्योंकि वे महाराष्ट्र के नहीं हैं। लेकिन ठाकरे और पवार का होना ऐसे मौकों पर जरूरी होता है।
उद्धव और पवार की गंभीरता पर सवाल
कांग्रेस के बुद्धिजीवी वर्ग में इस बात को लेकर चिंता है कि आगे होने वाले आयोजनों में राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना का सार्वजनिक तौर पर यही व्यवहार रहा तो साफ तौर पर एकजुटता ना दिखने के इस रवैये से गठबंधन को बड़ा नुकसान भी संभव है। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि आने वाले दिनों में तस्वीर बदलेगी और इन सारे हालातों के बावजूद प्रदेश में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के गठबंधन की ही सरकार बनेगी, यह तय माना जा रहा है। राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि गठबंधन के घोषणा पत्र को जारी करने के इस अहम आयोजन में मल्लिकार्जुन खरगे, गहलोत, वेणुगोपाल आदि जैसे वरिष्ठ नेताओं के साथ शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी हाजिर रहते, तो उन घोषणा पत्र में किए गए वादों का वजन ज्यादा माना जाता। खास तौर से चुनाव जब महाराष्ट्र का है, तो पवार और ठाकरे जैसे दिल्ली के नेताओं के बजाय महाराष्ट्र के बड़े नेताओं की महाराष्ट्र के लिए कही बातों का महत्व बढ़ जाता है। राजनीतिक रूप से बेहद गंभीर अवसर पर भी उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस का कांग्रेस के बड़े नेताओं को महाराष्ट्र में उनकी जगह दिखाना माना जा रहा है।
-राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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