Rajasthan: राजनीति में जब विरोधी विचारधाराओं के दो दिग्गज नेता अकेले में मिलते हैं, तो हलचल होना स्वाभाविक है। परंतु कुछ मुलाकातें ऐसी होती हैं, जो राजनीति के दायरे से ऊपर उठकर मानवीय मजबूतियों और रिश्तों की सच्चाई को बयान करती हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सिक्किम के राज्यपाल ओम प्रकाश माथुर (Om Prakash Mathur) की जयपुर में हुई भेंट भी कुछ वैसी ही रही। यह मुलाकात न किसी राजनीतिक सौदेबाजी का संकेत थी, न कोई भावी रणनीति का हिस्सा और न ही सियासत की सांसों के सच को संवारने की कोशिश। बल्कि यह वह पल था, जब जीवन की आत्मीयता, पुरानी यादों के साये और आपसी सम्मान की भावना ने कांग्रेस (Congress) और बीजेपी (BJP) की सियासत की सीमाओं को और विस्तार दे दिया। इस मुलाकात ने यह याद दिला दिया कि राजनीति के मैदान में भले ही विचारधाराएं टकराती हों, लेकिन रिश्तों का संसार सदा संवेदनाओं से सहेजा रहता है।

गहलोत माथुर के नितांत निजी रिश्ते
राजस्थान के दिग्गज बीजेपी नेता रहे और अब सिक्किम के राज्यपाल ओमप्रकाश माथुर 1 नवंबर 2025 को सुबह जयपुर में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सिविल लाइंस स्थित निवास पर अपने परिवार में होने वाले विवाह समारोह का निमंत्रण देने पहुंचे। यह दृश्य राजस्थान की राजनीति में एक सुकून भरा अपवाद था। गहलोत ने उनका आत्मीयता से स्वागत किया, और दोनों के बीच पारिवारिक स्तर की बातचीत हुई। कोई राजनीतिक विमर्श नहीं, कोई रणनीति नहीं — बस सिर्फ संबंधों की गर्माहट। आजकल की राजनीति के कठोर और प्रायः आरोप – प्रत्यारोप भरे माहौल में, यह मुलाकात जीवन के मानवीय पक्ष को सहेजने का अवसर बन गई। गहलोत से इस मुलाकात को राज्यपाल माथुर ने स्वयं भी रील के जरिए सोशल मीडिया पर प्रेषित करके संबंधों के सच को संवारा है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी सहयोगी रहे राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि सियासत का यही वह मानवीय पहलू है जो बताता है कि राजनेताओं के बीच मतभेद तो हो सकते हैं, लेकिन रिश्तों की डोर अगर सच्चाई और सद्भाव से बुनी हुई हो, तो वह कभी कमजोर नहीं पड़ती। परिहार कहते हैं कि वैसे भी राजस्थान की राजनीति में ओमप्रकाश माथुर और अशोक गहलोत केवल बीजेपी या कांग्रेस के नेता नहीं, बल्कि जन नेता माने जाते हैं और उससे भी आगे, दोनों नेता राजनीति की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, जिन्होंने सियासत को सेवा और संवाद का माध्यम माना है।
विपरीत विचारधारा के बीच रिश्तों की मिसाल
अशोक गहलोत आज के दौर में, कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेताओं में गिने जाते हैं, जबकि राज्यपाल बनने से पहले ओमप्रकाश माथुर भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार रहे हैं। गहलोत और माथुर दोनों की छवि अपने अपने स्तर पर वैचारिक रूप से बेहद दृढ़ नेता की रही हैं। एक जन्म से संघ परिवार का स्वयंसेवक, तो दूसरा सदा से गांधीवादी। सामान्यतः राजनीति में ऐसे नेताओं के बीच संबंध औपचारिक या स्पष्ट दूरी भरे होते हैं। परंतु गहलोत और माथुर दोनों की की विशेषता यही रही है कि वे विचारधारा से परे जाकर इंसानियत और आत्मीयता को प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि वे विरोधी दल के नेताओं से भी सद्भाव बनाए रखते हैं। उनके भीतर एक ‘राजनीतिक सज्जनता’ की वह परंपरा जीवित है, जो अब धीरे-धीरे राजनीति से गायब होती जा रही है। राजस्थान की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार हरिसिंह राजपुरोहित का मानना है कि अशोक गहलोत की यही सहजता उन्हें न केवल अपनी पार्टी में, बल्कि विपक्ष के नेताओं के बीच भी सम्मान दिलाती है। राजपुरोहित कहते हैं कि माथुर और गहलोत की यह मुलाकात भले ही विवाह के आमंत्रण के लिए थी, लेकिन असल में, यह दोनों के एक दूसरे के प्रति सहज, सरल और सुदृढ़ मानवीय दृष्टिकोण का विस्तार है।

आत्मीयता से ही सबसे गहलोत से सहज संबंध
राजस्थान की राजनीति में यह कोई रहस्य नहीं कि गहलोत के लगभग सभी दलों के नेताओं से आत्मीय संबंध रहे हैं। माथुर की गहलोत से मुलाकात के बहाने बीजेपी के बड़े नेताओं की बात करें, तो भैरोंसिंह शेखावत से उनके स्नेहपूर्ण संबंध रहे। वसुंधरा राजे के साथ भी गहलोत का संवाद सदा सौहार्दपूर्ण रहा है। गुलाबचंद कटारिया की फकीरी के गहलोत भी कायल हैं, तो डॉ सतीश पूनिया से भी उनका अपनापन रहा है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से भी उनके रिश्ते सहज देखे जाते हैं। इसी तरह से शेखावत, राजे, कटारिया, पूनिया और माथुर के मन में भी गहलोत के प्रति कभी कटुता नहीं रही। ओमप्रकाश माथुर, जो भले ही वर्तमान में राज्यपाल हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के संगठनात्मक स्तंभ रहे हैं, उनका केंद्र भी सदा राजस्थान ही रहा है। यही साझा भूमि गहलोत और माथुर को जोड़ती रही है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं और उनकी राजनीति की गहराई को जानते भी हैं। परिहार बताते हैं कि गहलोत की यह सदा से मान्यता रही है कि राजनीतिक विचारधाराएं भले अलग हों, मगर आपसी सम्मान में कभी कमी नहीं आई आनी चाहिए। वे बताते हैं कि राजनीति में विचारधारा के चलते राजनीतिक आलोचना भले ही करे, लेकिन गहलोत किसी के भी प्रति राजनीतिक तौर पर व्यक्तिगत कटुता कभी नहीं रखते।

विकास की राजनीति और रिश्तों की संवेदना
सियासत में संबंध सौदेबाजी से नहीं, बल्कि सदाशयता से बनते हैं। अशोक गहलोत इस कला में निपुण हैं। गहलोत के तीन बार के मुख्यमंत्रित्व काल के 15 वर्षों के दौरान अनेक अवसर आए, जब उन्होंने विरोधी दलों के नेताओं के सुझावों को भी दिल खोल कर अपनाया। वरिष्ठ पत्रकार हरिसिंह राजपुरोहित कहते हैं कि उदयपुर में झीलों के जल संकट को सुलझाने के लिए मुख्यमंत्री गहलोत ने अपने धुर विरोधी, भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया के आग्रह पर देवास द्वितीय प्रोजेक्ट के लिए 50 करोड़ रुपए एक पल में ही मंजूर कर दिए। यह निर्णय किसी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं था, बल्कि जनता के हित और रिश्तों के सम्मान का प्रतीक था। राजपुरोहित कहते हैं कि गहलोत की यही कार्य शैली बताती है कि राजनीति यदि मानवीय दृष्टिकोण से की जाए, तो विरोध भी सहयोग में बदल सकता है। यही संवेदनशीलता उन्हें आज भी राजस्थान की राजनीति में एक अलग पहचान देती है। वैसे भी, राजनीति की भाषा चाहे बदल जाए, लेकिन ऐसी आत्मीय मुलाकातें हमें याद दिलाती हैं कि विचारधारा अलग हो सकती है, मगर विचारशीलता और विनम्रता ही राजनीति की असली पहचान है।

संवाद और सद्भाव ही राजनीति की असली आत्मा
दरिया दिल कहे जाने वाले दो दिग्गज नेताओं, अशोक गहलोत और ओमप्रकाश माथुर की मुलाकात ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि राजनीति सिर्फ सत्ता की जंग नहीं, बल्कि उसके साये में रिश्तों और संवेदनाओं का भी संसार सदा विकसित होता रहता है। राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर कहते हैं कि गहलोत और माथुर की इस मुलाकात ने, न केवल सियासत को एक नई सोच दी, बल्कि लगातार टुच्चेपन और ओछेपन से सराबोर होती सियासत के किरदारों यह भी याद दिलाया है कि संवाद और सद्भाव ही राजनीति की असली आत्मा हैं। साथ ही दोनों नेताओं की यह की मुलाकात उस परंपरा का भी प्रतीक है, जहां सियासी सीमाएं इंसानी रिश्तों के आगे सीमित पड़ जाती हैं। सच्चे नेता वही हैं जो सत्ता से परे इंसानियत के रिश्तों को निभाते रहें।
-भरत कुमार सोलंकी
(लेखक राजस्थान की समझ रखनेवाले, और पेशे से निवेश सलाहकार हैं)
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