Rajasthan Budget: हर प्रदेश में कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं, जो इस बजट (Budget) का सांसें थामकर इंतज़ार कर रहे हैं। राजस्थान (Rajasthan) में बजट का इंतजार करने में वे युवा बड़ी तादाद में हैं, जिनका घर बस चुका है और नौकरी में स्थायी होने की प्रतीक्षा में हैं। इन्हें अनुबंध वाली कपंनियां बमुश्किल 12 हजार से 17 हज़ार रुपए देती हैं। कुछ को तो पांच-सात हज़ार ही मिलते हैँ। कंपनियां सरकार से मोटा पैसा लेती हैं और बड़ा कमिशन काटकर युवाओं का शोषण करती हैं। लेकिन इस सिस्टम को अभी तक बदला नहीं गया है, जबकि पिछली सरकार ने एलान किया था। वे युवा जो भर्तियों का इंतज़ार कर रहे हैं और जिन्हें उम्मीद है कि इस सरकार में वे अपने बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। कितने ही रिक्त पद पड़े हैं। नए कैडर के गठन की मांग है। ग्रेड पे का सवाल है। पैक्स कार्मिकों के सवाल हैं। इस बार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा (Bhajanlal Sharma) और उप मुख्यमंत्री दीयाकुमारी (Diya Kumari) से इन युवाओं को बहुत उम्मीदें हैं। ये युवक स्थायी लोगों से अधिक काम करते हैं और इनकी ऐप्रोच भी बहुत मॉड्रेट है।
दीयाकुमारी अपनी प्रतिभाशाली बजट टीम के साथ जयपुर के साथ शानदार अतीत के सपनों को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में बुन रही हैं, जिसमें इन्नोवेशन और रेज़िलिएंस की उम्मीद है। यह बहुत अच्छी बात है कि उन्होंने वित्त विभाग में उन्हीं अफ़सरों को रखा है, जो पिछली गहलोत सरकार में इस विभाग को देख रहे थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू जब आजादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने ब्रिटिश सरकार में काम करने वाले अफ़सरों गिरिजाशंकर वाजपेयी, एन गोपालस्वामी आयंगर जैसे ब्यूरोक्रैट्स को यथावत रखा था। लोगों आलोचना की तो उन्होंने तर्क दिया कि इससे शासन व्यवस्था को निरंतर बनाए रखने और ग़लतियां कम होने की संभावना है। पिछली सरकार ने बेलमाग खर्च किए थे और उससे प्रदेश की वित्तीय व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव रहे थे। उन्हें एक नई टीम के बजाय पुरानी टीम अधिक बेहतर तरीके से कर सकती है। भजनलाल सरकार ने अभी पिछली सरकार के डीजीपी एमएल लाठर को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया है। इससे पहले की सरकारों में ब्यूरोक्रेट्स को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जाता था। इसके कारण कुछ भी हों, लेकिन ब्यूरोक्रेसी को ब्यूरोक्रेसी की तरह लिया जाए तो शायद राज्य अच्छा ही काम करेगा। इस बार बजट टीम में एसीएस अखिल अरोड़ा और केके पाठक जैसे ब्यूरोक्रैट्स हैं। अखिल अरोड़ा इस विभाग में एक जनवरी, 2023 से और पाठक 31 जुलाई, 2022 से ही हैं। इन ल्यूमिनैरीज में एक इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन का विशेषज्ञ है तो दूसरे के पास फ़िलॉसोफ़िकल विज़डम है। डायवर्स पर्सपेक्टिव्ज़ वाली इस टैपेस्ट्री को एक्सीलेंस की सिंफनी में देवाशीष पृष्ठी बदलते हैं, जो पर्यावरणीय क्षेत्र के अच्छे अध्येता हैं। पाठक के कार्यालय में जाएं तो वहाँ पहली ही निगाह में वित्त और धन को लेकर प्राचीन भारतीय अवधारणाएं संस्कृत और अवधी की उक्तियों के रूप में मिलेंगी।
पुराने ऋषियों की ही नहीं, कौटिल्य की भी सोच थी कि शासकों को जनता से कर उसी तरह और उसी मात्रा में वसूलना चाहिए, जैसे मधुमक्खी रस चूसकर शहद का निर्माण करती है। लेकिन आज़ादी के बाद से ही हम देखते हैं कि हक़ीक़त बदल चुकी है। अब शासक जोंक की तरह रस सूचते और सांप की तरह फुफकारते हैं। भारतीय संस्कृति का प्राचीन दृष्टिकोण इस तरह की शासन संस्कृति को बदलने की मांग करता है। आधुनिक लोकतांत्रिक मर्यादाएं भी इसके लिए ज़ोर डालती हैं। ख़ैर, इस बजट टीम मेरे अपने शहर के नरेश ठकराल हैं, जो मूलत: एक ब्रिलिएंट स्कूली छात्र से एमटेक् करने के बाद इंजीनियर बने और आईएएस में पदोन्नत हुए। उनके पिता हेल्थ विभाग में थे और इससे स्वास्थ्य के प्रति सरोकारों को समझा जा सकता है। उम्मीद की जा सकती है कि आज राजस्थान का आने वाला बजट राजस्थान के आम नागरिक को केंद्र में रखकर युवाओं, बुजुर्गों और बच्चों को फोकस में रखकर आधी आबादी के लिए कुछ नया और अच्छा करेगा। राजस्थान का युवा लंबे समय ये आंदोलित है और उम्मीद है कि इस बजट में उन्हें काफी कुछ मिलेगा। सभी वर्गों की उम्मीदों को ब्लेंड करके देख्रने और महसूस करने वाली टीम ही राजस्थान को एक नए विज़न के साथ अपार संभावनाओं वाला बजट दे सकती है। इसी से प्रदेश को नया चेहरा मिलेगा।
-त्रिभुवन (‘एक्स’ से साभार)