Rajasthan Election: यह समय का फेर है। रामेश्वर दाधीच अशोक गहलोत के हमशक्ल हैं। उन्हीं के जैसे हू-ब-हू दिखते हैं। जीवन भर कांग्रेसी रहे। मगर, जीवन के उतार में बीजेपी का साथ पकड़ लिया। पहले दिग्गज नेता परसराम मदेरणा के सबसे विश्वस्त सहयोगी और फिर उनसे संबंध खराब किए बिना अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के सबसे विश्वस्त सहयोगी रहे। वे अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के तमाम संघर्षों के साथी और साक्षी रहे हैं। जोधपुर के लोग यह पचा नहीं पाएंगे कि रामेश्वर दाधीच कांग्रेस (Congress) गहलोत को छोड़कर बीजेपी (BJP) में चले गए हैं। शक्ल सूरत काफी हद तक मिलने से लोग उन्हें भाई-भाई भी समझते रहे हैं। पिछले 5 साल में कांग्रेस की सरकार और गहलोत के मुख्यमंत्री रहते ज्यादातर सहयोगियों को गहलोत ने कुछ न कुछ पद जरूर दिए। अपने विधानसभा क्षेत्र के विश्वस्त सहयोगी राजेंद्र सोलंकी को भले ही इस बार जोधपुर विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष नहीं बनाया हो, लेकिन पशुधन विकास बोर्ड का अध्यक्ष जरूर बनाया। अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने रामेश्वर दाधीच को इस दौरान कुछ भी नहीं दिया। वे पूरे 5 साल कुछ अच्छा होने की प्रतीक्षा करते रहे इसी दौरान वह हृदय रोग से लड़कर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समर्थन में पदयात्रा लेकर निकल पड़े। 71 वर्ष की उम्र में यह कोई मामूली काम नहीं था। उन्हें सूरसागर से टिकट का पक्का भरोसा दिया गया था, लेकिन जोधपुर के कांग्रेस (Congress) कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बार सूरसागर में टिकट गलत तरीके से दिया गया। लगातार उपेक्षा के चलते दाधीच बागी होकर चुनाव के मैदान में तो आगे लेकिन फिर समझ में आया होगा कि यह कदम फायदे वाला नहीं है। आखिर, हालात ने दाधीच को बीजेपी (BJP) का दामन थामने के लिए मजबूर कर दिया। रामेश्वर दाधीच अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के इंसान हैं और इसीलिए शायद वह कांग्रेस (Congress) छोड़कर बाकी जिंदगी बीजेपी (BJP) में भी आराम से एडजस्ट हो सकेंगे। जोधपुर के महापौर रहते हुए दाधीच ने नांदरी में एक बड़ी गौशाला शुरू की थी जिससे वह अभी भी जुड़े हुए हैं। समय का फेर है।
-अरविंद चोटिया