Ram Mandir: देश में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से जुड़े नेताओं का राम मंदिर (Ram Mandir) विरोध जारी है। कोई मंदिर पर बयानबाजी कर रहा है, तो कोई राम (Ram) पर अनर्गल प्रलाप कर रहा है। कोई हिंदुत्व (Hindu) पर प्रहार कर रहा है, तो किसी को राम मंदिर मुद्दे पर बीजेपी (BJP) की ताकत नहीं सुहा रही। हर कोई कुछ न कुछ बोले जा रहा है। हालांकि राजनीति (Politics) से जुड़े लोग अपने हर बोलने के फायदे नुकसान सोच समझ कर ही बोलते हैं, लेकिन फिर भी ज्यादातर नेताओं के अयोध्या (Ayodhya) में बन रहे राम मंदिर से संबद्ध बयानों का सीधा लाभ बीजेपी को हो रहा है, यह समझ में भी आ रहा है। इसके बावजूद हाल ही में महाराष्ट्र (Maharashtra) के नेता और एनसीपी (NCP) में कई बार विवादों में रह चुके जितेंद्र आव्हाड (Jitendra Awhad) ने भगवान राम को मांसाहारी बताकर शरद पवार (Sharad Pawar) की पार्टी एनसीपी (NCP) को भी विवाद में घसीटे जाने का बीजेपी को एक नया मौका दे दिया है। आह्वाड ने बयान दिया था कि राम तो वनवासी भी रहे हैं और सबके है साथ ही राम हम सब की तरह ही मासांहारी भी थे। कोई इतने दिन जंगल में बिना वनवास नहीं रह सकता। बाद में विवाद बढा तो माफी मांग ली। लेकिन राजनीति अब थमने का नाम नहीं ले रही है। आव्हाड़ के इस बयान पर पुल्स में रिपोर्ट भी दर्ज हुई है। उनकी पार्टी एनसीपी ने इस बयान से कोई सहमति भी नहीं जताई और खुद को किनारे कर लिया।
Ram Mandir विरोधी बयान से विपक्ष को खासा नुकसान
असल में हो ये रहा है कि इन दिनों सारे खबरिया चैनल दिन रात राम और राममंदिर की कहानी और उससे जुड़े निर्माण कार्य की बातें कर रहे हैं। जाहिर है बीजेपी के लिए तो ये बेहतर है क्योंकि उनका एजेंडा ही यहीं है और वो इसे छुपा भी नहीं रहे। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तरप्रदेश के योगी राममंदिर से जुड़े हर कार्यक्रम में जा रहे हैं। ऐसे में विपक्ष के कई नेता जो चाहते है कि मीडिया उनकी भी बात सुने इस खेल में फंस रहे है और वो बीजेपी से लड़ने के बजाय प्रभु श्री राम और राममंदिर के निर्माण पर तरह तरह की ऊटपटांग टिप्पणी कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश में सपा का साथ दे रहे स्वामी प्रसाद मौर्य लगातार कई तरह के बयान दे चुके हैं तो दूसरी तरफ डीएमके और स्टालिन भी सनातन जैसी बातों पर अटैक कर रहे हैं। स्टालिन को तो खैर दक्षिण में इसका फायदा मिल भी सकता है क्योंकि राजनीति तो पेरियार की है लेकिन उत्तर भारत के नेताओं के बयान खासा नुकसान कर रहे हैं।
विपक्ष का हिंदू विरोध बीजेपी के लिए फायदेमंद
बीजेपी की राजनीति भी यही है कि वो साबित कर सके कि उसके अलावा वो सारी पार्टियां जो बुलावे पर नहीं आ रही है या बयान दे रही वो सब राम और राममंदिर विरोधी है। ये हिंदुत्व और हिंदुत्व विरोधी विपक्ष का नरेटिव बीजेपी के लिए खासा फायदेमंद है। जाहिर है वो तो लगातार चाहते है कि कोई न कोई विरोध में बोलता रहे ताकि उस पर डिबेट हो सके। पहले मीडिया का काम अकेले असददुदीन ओवैसी से चल जाता था, लेकिन ओवेसी की आवाज हाल के चुनाव में उतनी काम नहीं आ रही है इसलिए नये नायक ही नहीं नये खलनायक की भी मीडिया को उतनी ही तलाश है। भारत की राजनीति में प्रयोग करने वाले चाहे महात्मा गांधी हो या समाजवादी विचारधारा के लोग उन्होने कभी भी राम और राममंदिर का विरोध नही किया। लेफ्ट प्रणित नेताओं ने जरुर धर्म की राजनीति का विरोध किया तो वो सिमट गया। कांग्रेस में भी कुछ नेता जो लेफ्ट की तर्ज पर बयान देते है वो केवल बयानवीर है उनकी राजनीति नहीं चली। जबकि कांग्रेस में तो नरसिंहराव से लेकर अर्जुनसिंह तक सब ‘राम काजु कीजे बिना’ की बात करते रहे और सेक्युलर भी बने रहे।
भारत में धर्म जीवन का एक अभिन्न अंग
उत्तर की राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओ को समझ ही लेना चाहिये कि भारत में धर्म जीवन का एक अभिन्न अंग है इसलिए चाहे राजनीति हो और कुछ कुछ इसे अलग करके नहीं देख सकते है। फिर प्रभु राम को रामचरित मानस ने घर घर पहुंचा ही दिया है। महात्मा गांधी भी तमाम सेक्युलर होने के बाद भी राम और वैष्णव की बात करना नहीं भूले। लेकिन उनको मानने वाले कई लोग भूलने लगे हैं। असल में विपक्ष को बीजेपी से लड़ना है राम या राम मंदिर से नहीं जितना जल्दी ये बात विपक्ष मान लेगा उतना ही फायदा होगा। क्योंकि बीजेपी तो साफ कर ही चुकी है कि लोकसभा चुनाव तक उसका इस पर कैंपेन चलता रहेगा, विपक्ष को बेहतर इस पर बोलने से बचना चाहिये। हां, अगर राम और राममंदिर के नाम पर हो रही राजनीति और बंटवारे की बात करे तो उसका फायदा होगा। लेकिन प्रभु राम के बारे में जाने या अनजाने भी ऐसी कोई बात नहीं कही जाये जिससे लोक आस्था को चोट पहुंचे। भगवान राम को बारे में लोगों में विश्वास अटल है और उनके मंदिर का निर्माण जम आंदोलन के तहत हो रहा है, यह भी विपक्ष को समझना होगा।
होई है वही जो राम रचि राखा
वाल्मिकी रामायण में कई ऐसे प्रसंग है जो आज के दौर के लिए गलत लग सकते हैं क्योंकि उसमें भगवान राम को एक सामान्य व्यक्ति की तरह दिखाया गया है। लेकिन रामचरित मानस जो अवधी में होने के कारण घर घर पहुंची उसमें प्रभु राम की भक्ति है और उसी रुप में भारत के लोग राम को अवतारी पुरुष मानते हैं। इससे कोई खिलवाड़ नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि विपक्ष या फेसबुकिया या वाट्सपिया ज्ञानी लोग प्रभु श्रीराम के बारे में बेवजह कुतर्क कभी ना करें, और कम से कम अभी तो बिल्कुल ही ना करें। अगर उनको बीजेपी से लड़ना है तो बाकी के राजनीतिक सवाल पर तलाशें। वैसे भी अब राममंदिर बन रहा है तो उस पर राजनीति ठीक नहीं।
बाकी कहते है कि – होई है वही जो राम रचि राखा।