Rajasthan Politice: अशोक गहलोत के अपनों के लिए और खासकर खुद गहलोत के लिए यह अपने आप में गर्व, गौरव और गरिमा का विषय हैं कि वे देश के सबसे बड़े भूभाग वाले प्रदेश के तीसरी बार मुख्यमंत्री तो हैं ही, सबसे लंबे समय तक इस पद पर रहनेवाले प्रदेश में दूसरे राजनेता भी हैं। 15 साल तक मुख्यमंत्री रहनेवाले अशोक गहलोत (AshokGehlot) से पहले मोहनलाल सुखाडिया ही सबसे ज्यादा समय तक 17 साल इस पद पर रहे। विषय वाकई महत्वपूर्ण है और महत्ता इस बात की है कि यह गर्व, गौरव और गरिमा गहलोत के राजनीतिक खाते की पूंजी के रूप में जमा है, तो इसके पीछे निश्चित तौर पर उनके रणनीतिक कौशल, राजनीतिक अनुभव और भविष्य की चुनौतियों से पार पाने की स्वयं में निहित शक्तियों का सही समय पर उपयोग करने की उनकी क्षमता ही सबसे बड़ा कारण है। वरना, उनकी सरकार को गिराने की कोशिशें भी तो कोई कमजोर नहीं थीं। फिर भी वे अपने प्रकट विरोधियों के राजनीतिक षड़यंत्रों को असफल और आस्तीन के सांपों के हर जहर को तिरोहित करते हुए पूरे तेवर के साथ न केवल क्षमतावान बने रहे, बल्कि पहले से भी ज्यादा ताकतवर साबित हुए।
Politice में पचास साल, मगर दामन पाक साफ
मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत (AshokGehlot) अपनी तीसरी पारी पूरी करने जा रहे हैं। पचास साल का सार्वजनिक जीवन है और विचारधारा के बंधन की गांठ इतनी मजबूत कि सादगी, सरलता और सामर्थ्य बिल्कुल गांधी जैसा। ‘अशोक नहीं ये आंघी है, मारवाड़ का गांधी है’ जैसे नारे इसीलिए उनके साथ चलते रहे हैं। तीन बार में 15 साल तक मुख्यमंत्री 3 प्रधानमंत्रियों के साथ 3 बार केंद्र में मंत्री, 5 बार सांसद, 5 बार विधायक और तीन बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और इतनी ही बार कांग्रेस महासचिव के रूप में 50 साल के लंबे राजनीतिक काजल की कोठरी का जीवन जीने के बावजूद गहलोत के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि वे उसकी कालिमा से बचे रहे। पांच दशक के दीर्घ दौर में भी विचार से कोई समझौता नहीं, जीवन पर कोई आरोप नहीं और दामन पर कोई दाग तो दूर दूर तक नहीं। भले ही मुख्यमंत्री के तौर पर उनके तीसरे कार्यकाल में कई सारे मंत्रियों और बहुत सारे विधायकों पर भयंकर भ्रष्टाचार करने की उंगलियां उठी, मगर गहलोत (AshokGehlot) ने अपयश की इस संकरी गली में भी स्वयं को बीच के रास्ते पर बचाए रखा है। यही कारण है कि राजनीति के चतुर समीकरणों के बीच भी उन पर व्यक्तिगत रूप से कभी भी किसी भी किस्म का राजनीतिक लाभ लेने का आरोप तक कोई नहीं लगा सका। न कोई विवाद और न ही किसी तरह का कोई दाग।
चुनाव में रणनीतिक कौशल का नया दांव
अब राजस्थान में नई सरकार के चुनाव में चंद दिन बचे हैं, 25 नवंबर को राजस्थान की जनता अपनी नई सरकार बनाने के लिए विधायकों का चुनाव करेगी और कुछ दिन बाद मुख्यमंत्री भी नया बनेगा। कहने को भले ही विधायकों के जरिए मुख्यमंत्री का चयन होता है लेकिन सभी जानते हैं कि कांग्रेस में तो आलाकमान की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता। हां, आलाकमान के आशीर्वाद के बावजूद मुख्यमंत्री का अपने पद पर बने रहना निश्चित तौर पर उसके राजनीतिक कौशल पर निर्भर करता है। अशोक गहलोत (AshokGehlot) अपने उसी राजनीति कौशल के बूते पर ही तीसरी बार मुख्यमंत्री पद पर पूरे पांच साल तक टिके रहे। अब चौथी बार वे फिर कांग्रेस की सरकार लाने के लिए कमर कस चुके हैं और हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि कैसे भी करके कांग्रेस फिर से सत्ता में आ जाए। इसके लिए वे सचिन पायलट भी फिर से कांग्रेस के पोस्टर बॉय के रूप में छा रहे हैं, जिनको गहलोत ने कभी नाकारा और निकम्मा जैसी उपमाओं से नवाजते हुए बगावत करके सरकार को गिराने वाले व्यक्ति के रूप में स्थापित किया था। इसे गहलोत के सियासी रणनीतिक कौशल के रूप में देखा जा रहा है।
तो क्या सचमुच चौथी बार गहलोत सरकार?
राजस्थान में अब चुनावी समर अपने पूरे उफान पर है, उम्मीदवार मैदान में उतरकर जंग लड़ रहे हैं और गहलोत फिर से सरकार लाने की बिसात सहजता के साथ पहले ही बिछा चुके है। हालांकि चुनावी दौर में कांग्रेस की हवा खराब करने की कोशिश में बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ रही। मगर, राजस्थान की राजनीति में न केवल कांग्रेस बल्कि बीजेपी में भी गहलोत (AshokGehlot) के कद का कोई और राजनेता ढूंढे से भी नहीं मिलता। अभी जब यह अभी तय नहीं है कि बीजेपी जीतेगी या कांग्रेस, मगर कांग्रेस जीती, तो कुछ दिन पहले तक राजनीति की हवाओं में तैर रहा कौन बनेगा मुख्यमंत्री का सवाल अब शांत हो गया है। क्योंकि जिसके चेहरे पर चुनाव हो रहा है, जिसके सबसे ज्यादा विधायक होंगे और जो सबको साथ लेकर चलने में सक्षम होगा साथ ही जिसका राजनीतिक कद बड़ा होगा, मुख्यमंत्री तो वही बनेगा, यह लगभग तय है। हालांकि, 25 सितंबर 2022 को कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के लगभग तामसिक यज्ञ की समिधा बन जाने के बावजूद गहलोत (AshokGehlot) अपने आलाकमान सोनिया गांधी का सहज विश्वास हासिल किए हुए हैं, तो इसे उनके सफल राजनेता होने की निशानी माना जाना चाहिए।
Rajasthan Politice में अपने लोगों को ज्यादा टिकट
वैसे, राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता और प्रियंका गांधी के परिपक्व पायलट प्रेम की जिद को बीच में रख कर राजस्थान की राजनीति को देखें, तो निश्चित तौर पर गहलोत के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की राह में राजनीतिक मुश्किलें कम नहीं हैं। मगर, ऐसी मुश्किलों से पार पाने में गहलोत (AshokGehlot) का कोई सानी नहीं है। वे अशोक हैं और शोक से निकलना उन्हें अच्छी तरह आता है। इसीलिए, राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में दो तिहाई से ज्यादा सीटों पर अपने लोगों को टिकट दिलाकर गहलोत ने पहले ही स्वयं को सबसे बड़ा नेता साबित करते हुए विरोधियों की जुबान बंद कर दी है। सबसे ज्यादा टिकट का मतलब यही है कि कांग्रेस जीती, तो ज्यादा उन्हीं के लोग जीतेंगे, तो अगली बार की राह भी ज्यादा समर्थन से आसान। ऐसे में अब, अगले महीने गहलोत (AshokGehlot) फिर मुख्यमंत्री बनेंगे या राजधर्म निभाएंगे, यह तो कोई ज्योतिष भी नहीं बता सकता। लेकिन, जो भी होगा उसमें गहलोत अपने राजनीतिक जीवन के अगले शिखर पर बिराजमान होंगे, यह लिखकर रख लीजिए।
-निरंजन परिहार
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)