निरंजन परिहार
सत्य शाश्वत है, और संसार का समग्र सत्य यही है कि सत्य कभी परेशान नहीं होता। लेकिन राजस्थान की सियासत में एक स्वयं भू सत्य भी है, जो होने को तो अर्द्ध सत्य भी नहीं है, फिर भी सत्य होने का स्वांग करने की वजह से इन दिनों कुछ ज्यादा ही परेशान है। इतना परेशान कि यह ‘सत्य’ अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए अराजकता पर आमादा है। ठीक वैसे ही जैसे किसी बददिमाग पायलट से उसके घमंड का हवाई जहाज और उड़ान दोनों छिन जाएं, तो रूठकर कभी वह अपने क्रू के साथ रिसॉर्ट में रातें गुजारता है, तो कभी रनवे पर पदयात्रा से दूसरों की उड़ानों को अटकाने की अनर्गल आराधना करता है।
सियासत का संसार जानता है कि कुछ मनुष्य अकारण ही अपनी औकात से भी ज्यादा पा जाते हैं। लेकिन सांसारिक सुखों की संरचना का ध्रुव सत्य यह हैं कि जो लोग अपनी झोली से भी ज्यादा उसमें ठूंसने का पतित प्रयास करते हैं, उनकी झोली का फटना और उसमें जो कुछ है, उसका भी गिर जाना ही उनकी नियती बन जाता है। राजस्थान की सियासत के एक स्वघोषित सत्य का भी यही हाल है। परेशानियों का परचम इन दिनों पराक्रम पर आरूढ़ है। हालांकि परेशान तो यह सत्य बीते साढे चार साल से हैं, और सत्य की सियासी उछालों का राजस्थान जब – तब मजे भी लेता रहा है।
समझदार लोग इस सिद्ध सत्य को समझते है कि सियासत 5 साल में सिर्फ एक ही फसल पैदा होने देती है, और इसीलिए इस दौर में तो अघोषित अकाल ही इस स्वयंभू सत्य का चिर सत्य है। हालांकि, सत्य कभी अकाल पड़ने नहीं देता, लेकिन असत्य जब सत्य का स्वांग कर के स्वयं को परमसत्य बनने करने का प्रयास करे, तो सत्य भी स्वयं के होने को साबित भी करता है और असत्य की आवारगी को अधिक आक्रामकता से उजागर भी करता है। इसीलिए राजस्थान का सियासी सत्य यही है कि हवाई जहाज तो लगातार उड़ रहा है, लेकिन पायलट बिना कॉकपिट ही हिचकोले खा रहा हैं। खैर, सत्य का स्वांग करने वालों का यही हाल होता है, और सियासत वैसे भी हर कदम पर हिचकोलों के अलावा है ही क्या?