Jhunjhunu: राजस्थान की राजनीति में झुंझुनू विधानसभा सीट पर कांग्रेस का चुनावी गणित इस बार जबरदस्त उलझ रहा है। अब तक 18 चुनाव जीत चुके कांग्रेस के ओला परिवार की तीसरी पीढ़ी के अमित ओला को विरासत में मिली उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस में ही खींचतान है। मुसलमान नाराज हैं और विधानसभा के कांग्रेसी कार्यकर्ता खुद ही ओला परिवार के खिलाफ खड़े दिख रहे हैं। कांग्रेस का मूल वोटर दलित भी नाराज हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं, मुसलमानों और दलितों की नाराजगी का कारण यही है कि कांग्रेस को लगातार 18 बार चुनाव लड़ चुके ओला परिवार के अलावा कोई और दिखता क्यों नहीं है। ओला की जाति के जाट मतदाताओं में भी एक बहुत बड़ा वर्ग हर बार एक ही परिवार को ही उम्मीदवारी दिए जाने से नाराज है, तो पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा भी निर्दलीय तौर पर मैदान मारने की कोशिश में हैं। बीजेपी इसी बिखराव में अपनी जीत के सपने देख रही है। वैसे, झुंझुनू का इतिहास रहा है कि जब जब ओला परिवार का व्यापक विरोध हुआ है, तो तब बीजेपी को जीत हासिल हुई है।
ओला परिवार का यह 19वां चुनाव
विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव तक में झुंझुनू में ओला परिवार के कब्जा रहा है। ओला परिवार इस बार 19 वां चुनाव लड़ रहा है। शीशराम ओला 5 बार सांसद और 4 बार विधायक रहे। वे राजस्थान में मंत्री और केंद्र सरकार में भी मंत्री रहे। उनके बेटे बृजेन्द्र ओला ने 7 विधानसभा चुनाव लड़े और पहली बार लोकसभा में पहुंचे हैं। बृजेंद्र भी राजस्थान में मंत्री रहे हैं। अब लोकसभा चुनाव में जब बृजेंद्र सांसद चुन लिए गए, तो उनकी खाली सीट पर उनके बेटे अमित ओला को विधानसभा का उपचुनाव लडवाया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि झुंझुनू में कांग्रेस ने ओला परिवार के अलावा किसी अन्य कार्यकर्ता पर भरोसा ही नही किया, कांग्रेस में इसी वजह उसके अपने कार्यकर्ता ही उम्मीदवार अमित ओला के खिलाफ काम कर रहे हैं और मुसलमानों में भी जबरदस्त नाराजगी है।
जातिगत समीकरण में जीत की तस्वीर
एक अनुमान के आधार पर झुंझुनू में जाट करीब 63200 हजार वोट हैं। कांग्रेस के दो परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम और दलित हैं, जिनमें 51000 मुस्लिम, जो ओला परिवार से नाराजगी जाहिर कर रहे हैं, मगर वोट बोजेपी को देंगे, इसमें शक है। दलित 42000 हजार हैं। कांग्रेस अब तक इसी समीकरण में अपनी जीत के रास्ते तलाशती रही है। इसी गठजोड़ के कारण झुंझुनूं विधानसभा सीट पर अब तक हुए 17 विधानसभा चुनावों में से 13 बार कांग्रेस जीती। बीजेपी का झुंझुनू में बड़ा वोट बैंक राजपूत 31700, माली–सैनी 28600, ब्राहमण 21200, बनिया 8900 हजार, कुम्हार 8400, खाती 7300, नाई 2350, और स्वामी मतदाता 1560 हैं और बाकी एसटी 4500, गुर्जर 3900 और मुसलमानों तथा दलितों में सेंध लगाए तो जीत आसान हो सकती है।
उम्मीदवारी की उम्मीद में मुसलमान नाराज
कांग्रेस से मुस्लिम समुदाय की नाराजगी का कारण इस बार उम्मीदवारी न मिलना है। इस नाराजगी ने चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। मुस्लिम न्याय मंच ने झुंझुनू के विधानसभा उपचुनाव में टिकट की मांग को लेकर 11 अक्टूबर को महापंचायत बुलाई थी। मंच के पदाधिकारियों ने मुखर होकर मुस्लिम समुदाय को उम्मीदवारी की मांग बुलंद करते हुए प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से मिलकर टिकट की मांग की थी। लेकिन विरासत में उम्मीदवारी मिली ओला परिवार की तीसरी पीढ़ी को। जिसे लेकर मुसलमानों में नाराजगी का असर धरातल पर है और कांग्रेस के बड़े नेता मुसलमानों को मनाते दिख रहे हैं। मगर कोई फर्क नजर नहीं आ रहा। कांग्रेस परेशान है, खास तौर से ओला परिवार कि मुसलमानों अब कैसे साधा जाए, यह समझ में नहीं आ रहा है।
तीसरी ताकत बने हुए हैं निर्दलीय राजेंद्र गुढ़ा
निर्दलीय उम्मीदवार राजपूत नेता राजेंद्र सिंह गुढ़ा का फोकस राजपूत, मुसलमान और दलित वोटों के जरिये फतह हासिल करने पर है। वे गोल टोपी लगाकर मुसलमानों के वोट मांगते देखे जा रहे हैं। उपचुनाव में निर्दलीय के तौर पर गुढ़ा ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों के समीकरणों को बिगाड़ कर रख दिया है। गुढ़ा की सभाओं में उमड़ रही भीड़ से बीजेपी और कांग्रेस इसकी काट ढूंढने में जुटी है। गुढ़ा अगर कांग्रेस के मुसलमान और दलित वोट ज्यादा वोट खींचने में सक्षम रहे, तो कांग्रेस की हालत खराब हो सकती है। वैसे तो जाट और दलित भी बीजेपी को वोट देते रहे हैं, लेकिन गुढ़ा के मुसलमान और दलित कांग्रेसी वोट बैंक सेंध लगाने से कांग्रेस को फटका लगने की संभावना है, तो राजपूतों के वोट गुढ़ा को जाने से बीजेपी को नुकसान।
बीजेपी भी लगा रही है जोरदार ताकत
वैसे देखा जाए तो बीजेपी के लिए झूंझुनू सीट प्रयोगशाला जैसी रही है। जीत की उम्मीद में वह हर बार उम्मीदवार बदलती रही। जाट, मुस्लिम और दलित वोट बैंक के कारण लगातार चार बार से हार झेल रही बीजेपी इस सीट पर मुसलमानों के बदलते समीकरण में जीत के सपने पाल रही है, लेकिन उसका राजपूत वोट बैंक गुढ़ा खा रहे है, यह भी उसके लिए चिंता का विषय है। बीजेपी यहां करीब एक दशक बाद पूरी ताकत को एकजुट करके चुनाव लड़ रही है और अपने उम्मीदवार राजेन्द्र भांभू को जिताने के लिए दम लगा रखा है। कई मंत्री, विधायक सांसद और सैकड़ों कार्यकर्ता दिन रात एक किए हुए हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी खास रणनीती पर काम कर रहे हैं क्योंकि इस बार के 7 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव उनके लिए अग्नि परीक्षा जैसे हैं।