Congress: महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे कई कारणों से ऐतिहासिक हैं। महाराष्ट्र में बीजेपी एक अरसे से सबसे ताकतवर पार्टी बनना चाहती थी। अब ये हसरत पूरी हो गई है और चुनौतीपूर्ण चुनाव में पूरी हुई है। इस चुनाव में मराठा और गैर मराठा वोटों को साथ लाने का मुश्किल काम करने में बीजेपी सफल रही। अब तक के नतीजों के हिसाब से बीजेपी का स्ट्राइक रेट करीब करीब 85 से 90 पर्सेंट है। वोट प्रतिशत भी करीब 50 फीसदी तक होगा। यह ऐतिहासिक है।
महाराष्ट्र में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए शतरंज की जितनी चालें चार-पांच साल में पार्टी ने चलीं, वो कामयाब रही। शिंदे को तोड़कर लाना। अजित पवार को साथ में लाना। एकनाथ शिंदे को अहमियत देना और ऐसे मुद्दे गढ़ना, जिसमें एक तरफ विकास और दूसरी तरफ उससे भी बड़ा महिला वोट बैंक सधे। इसने मिलकर कमाल किया। देखा जाए तो इस तरह की विजय की उम्मीद तो बीजेपी को खुद भी नहीं रही होगी।
एकनाथ शिंदे का क्या
सवाल पूछे जा रहे हैं कि महाराष्ट्र में अकेले बहुमत के पास जा पहुंची बीजेपी अपने दोस्तों को भाव देगी क्या? बीजेपी जब बहुत बढ़िया से जीतकर आती है, तो वह गठबंधन धर्म निभाती रही है। बीजेपी का यह इतिहास रहा है।आने वाले दिनों में बीजेपी अपने साथियों को बहुत अच्छे से साथ रखे, तो इसमें अचरज नहीं होना चाहिए। इन चुनाव नतीजों के बाद अजित पवार और एकनाथ शिंदे के लिए भी यह जरूरी होगा कि बीजेपी के साथ बने रहने और विश्वास का संबंध बनाने के लिए काम करें। भले ही अब गठबंधन में शिंदे की उतनी जरूरत न दिख रही हो, लेकिन बीजेपी लॉन्ग टर्म पॉलिटिक्स करने वाली पार्टी है। अभी तक सुना जाता था कि महाराष्ट्र में सीनियर और जूनियर पार्टनर कौन है, लेकिन अब बीजेपी सीनियर पार्टनर बनकर आई है, इसलिए यह लगता नहीं कि दोस्तों से तालमेल में कोई बदलाव आएगा।आने वाले दिनों में यह बहुत मुमकिन है कि पावर शेयरिंग के लिए कोई अच्छा फॉर्मूला निकलकर आए।
चुनाव के दौरान शिंदे ने कहा कि अभी सीएम तय नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा गया लेकिन इन बातों को आप दबाव की राजनीति कह सकते हैं। लेकिन ये गठबंधन की राजनीति में सामान्य बात है। बीजेपी की ऐतिहासिक जीत बीजेपी के लिए यह जीत इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि बीजेपी ने पहली बार राज्य में इतनी सीटें जीती हैं। बीजेपी तीसरी बार 100 के पार पहुंची है। एनडीए के करीब 50 पर्सेंट के वोट शेयर में अगर 25 पर्सेंट से ज्यादा उसका वोट शेयर है, तो यह ऐतिहासिक नंबर है। जनमत को ईमानदारी से डिकोड किया जाए तो सीएम का पहला हक बीजेपी का बनता है। ऐसे में शिंदे को पीछे आना ही पड़ेगा। और वह खुशी से आते भी दिखाए देंगे। इस पर भी चौंकना नहीं चाहिए।
विपक्ष के लिए सबक
यह चुनाव विपक्ष के नेताओं के लिए सबक है। लोकसभा चुनाव के बाद पूछा जा रहा था कि बीजेपी को दलित, पिछड़े वोट मिलेंगे क्या? दलित वोट जो संविधान के नाम पर चले गए थे, उसका क्या होगा? महाराष्ट्र में वे सब वापस आते हुए दिखाई दे रहे हैं। बीजेपी, पीएम मोदी, अमित शाह, संघ, एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फणडवीस ने किस तरह से रणनीति बनाई, इस चुनाव में धूल चाट रहे नेताओं के लिए यह पीएचडी के रिसर्च का विषय होना चाहिए।
इस चुनाव का सबसे बड़ा सबक कांग्रेस के लिए है। चुनाव कैसे हारें यह राहुल गांधी से सीखना चाहिए। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने क्या कहा, आज किसी को याद नहीं होगा। महाराष्ट्र की जनता से किया हुआ उनका कोई वादा शायद ही किसी के जेहन में ताजा हो। महाराष्ट्र कभी कांग्रेस मजबूत का गढ़ था। वो गढ़ अब ध्वस्त हो चुका है। इस चुनाव में शरद पवार ही थे, जिनके कारण कांग्रेस किसी तरह चुनाव लड़ पाई, नहीं तो उसकी क्या हैसियत थी, वह सभी जानते हैं।
सड़क पर नहीं, सोशल मीडिया पर सियासत
राहुल ऐसे मुद्दे पर लगे रहे जो जो सोशल मीडिया पर ट्रोल का मुद्दा था। जब नेता विपक्ष खुद को ही ट्रोल बना ले, सिंगल मुद्दा पार्टी बना ले, पूरे मीडिया में सनसनी फैलाने की कोशिश करे और फिर सोचे कि महाराष्ट्र तो निकल जाएगा, तो ऐसा नहीं हो सकता। महाराष्ट्र ने राहुल गांधी और कांग्रेस को ये सबक सिखाया है।
विदर्भ कभी कांग्रेस का गढ़ था। संघ का यहां मुख्यालय है। बीजेपी का कभी भी विदर्भ में ऐसा असर नहीं था, जो आज है। कांग्रेस को हारने की कला इतने शानदार तरीके से आती है कि यह इसका दूसरा उदाहरण है।
झारखंड में इंडिया गठबंधन भले ही सत्ता में वापसी कर रहा हो, लेकिन कांग्रेस वहां खुद कोई बहुत अच्छा नहीं कर पाई। इसलिए कांग्रेस पार्टी को यह सोचना पड़ेगा कि इस हकलाने वाले नेतृत्व के साथ वह कौन सी राजनीति कर रही है।
कांग्रेस से सवाल
आखिर क्या वजह थी कि कांग्रेस को महाराष्ट्र से ज्यादा ताकत वायनाड में झोंकनी पड़ी? वायनाड एक जीता हुआ चुनाव था, लेकिन कांग्रेस का पूरा कैडर अपने नेता को वहां चेहरा दिखाने के लिए जुटा था। यही सारे कारक हैं कि महाराष्ट्र कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बुरी खबर बन गया है। यह कांग्रेस के ध्वस्त होने की खबर है। राहुल गांधी के पूरी तरह फेल होने का संदेश इस जनादेश में छिपा है।
कांग्रेस के पुराने बीट रिपोर्टर के तौर पर मैं कह सकता हूं कि राहुल गांधी जिस सियासी रास्ते पर चल रहे हैं, वह साजिश की पॉलिटिक्स है, ट्रोल की पॉलिटिक्स है, यह पॉलिटिक्स वोट दिलाने वाली नहीं है। दरअसल बीजेपी और संघ का नेतृत्व राहुल गांधी को अपनी पार्टी का ध्यान असल मुद्दों से भटकाने के लिए शुक्रिया अदा कर रहे होंगे। बीजेपी की चुनाव लड़ने की महारथ से कांग्रेस ऐसे जमींदोज हुई है कि यह चुनाव राहुल गांधी के फेल होने का सबसे बड़े सबूत और मिसाल के तौर पर भी याद किया जाएगा।
उद्धव की विकास विरोधी राजनीति
चुनाव में उद्धव ठाकरे की भी हालत भी देखिए। बाला साहेब ठाकरे की विरासत को उन्होंने कैसे निभाया, यह भी देखने और समझने की जरूरत है। उनकी बातों में भी कर्कशपना था। विकास विरोधी बात कर रहे थे। प्रांतवाद को फैलाने की बातें करते थे। अब कांग्रेस गुजरात में जाकर कैसे वोट मांगेगी, यह भी देखने वाली चीज होगी। बाला साहेब ठाकरे के नाम पर कैसे उद्धव ठाकरे अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगे, यह भी देखने वाली बात होगी। महाराष्ट्र में राज करने वालीं ये पार्टियां 20-20 सीटों की पार्टियां बनकर रह गई हैं।
लोकतंत्र में विपक्ष को भी मजूबत होकर उभरना चाहिए। लेकिन जब विपक्ष के मुद्दे विकास विरोधी, देश विरोधी, कारोबार विरोधी हो जाएं और जनता के मुद्दे वो उठाना बंद कर दे तो भी यह स्थिति आती ही है। महाराष्ट्र के इस बड़े झटके के बाद कांग्रेस पार्टी अभी भी जागेगी, इसमें संदेह है।क्योंकि जब तक राहुल गांधी का नेतृत्व है, कांग्रेस धराशायी होती रहेगी। कांग्रेस को अगर लगता है कि वह 2029 को भी इस ट्रोल पॉलिटिक्स के सहारे जीत जाएगी, तो उसे भूल जाना चाहिए।
-संजय पुगलिया
(लेखक ‘एनडीटीवी’ के समूह संपादक हैं, उनके ये विचार वहीं से साभार)
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