Rajasthan BJPः यह दाँव भाजपा ही खेल सकती है और कॉंग्रेस में इसकी संभावना न के बराबर है। किसी जाति के वोट पूरे राज्य में बहुत अधिक नहीं हों और उसका कोई नेता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष (Rajasthan BJP President) आज जैसे जातिगत मारकाट वाले माहौल में बना दिया जाए और जाट-गुर्जर-राजपूत आदि ख़म ठोकने वाली जातियों के नेता सिर झुकाकर देखते रह जाएँ, यह अकल्पनीय भी भाजपा (BJP) में ही संभव है। यह भी अकल्पनीय है कि 2003-2008 में सुमेरपुर (पाली) विधायक रहते हुए तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष ओम माथुर ने जिन मदन राठौड़ (Madan Rathod) का टिकट काट दिया था और यह प्रकरण एक कटु विवाद तक पहुँचा, वह एक बहुत सामान्य कार्यकर्ता आज संगठन का प्रदेश अध्यक्ष बन चुका है और ओम माथुर अब अघोषित रूप से मार्गदर्शक मण्डल में हैं।ओम माथुर नरेंद्र मोदी के साथ अपने रिश्तों, संगठन में अपनी लंबी भूमिका और प्रतिकूलताओं को अनुकूलताओं में बदल लेने में माहिर होने की वजह से इस बार मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार थे; लेकिन नरेंद्र मोदी ने कई महाबल-वैभवशाली और अदृश्य राजसी शक्तियों के विभ्रम में आए नेताओं को एहसास भी नहीं होने दिया कि भजनलाल शर्मा जैसा एक साधारण कार्यकर्ता मुख्यमंत्री बन जाएगा।
समीकरण साधने में बहुत होशियार है राठोड़
भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने की तरह ही मदन राठौड़ का अध्यक्ष बनना भारतीय जनता पार्टी की आंतरिक शक्तियों पर दूसरा वज्रपात है। मदन राठौड़ भाजपा के ज़मीनी कार्यकर्ता रहे हैं और इस बार फ़रवरी में राज्यसभा का टिकट मिलने से पहले उनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि वे राज्यसभा पहुँचेंगे। मदन राठौड़ के बारे में सबसे दिलचस्प जानकारी ये है कि वे दसवीं कक्षा से ही राजनीति में आ गए थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के कुशासन के ख़िलाफ़ उठने वाले मुद्दों को लेकर उन्होंने गिरफ़्तारी दे दी थी। वे पाली जिले के लंबे समय पार्टी अध्यक्ष रहे हैं और ज़मीनी कार्यकर्ता हैं। वे बातूनी नेता नहीं हैं। वे पार्टी के विभिन्न ताक़तवर नेताओं के बीच समीकरण साधने में भी बहुत होशियार हैं और इस मामले में उन्होंने वसुंधरा राजे का भी दिल जीत रखा हो तो हैरानी नहीं।
ओबीसी को साधने के लिए राठौड़ को अध्यक्ष बनाया
यह भी माना जा रहा है कि इन दिनों वसुंधरा राजे के साइड लाइन होने से पार्टी को जिस तरह की राजनीतिक क्षति कुछ जगह हुई है और कुछ जगह होते-होते रही है, उस मामले में मदन राठौड़ कुछ राह निकाल सकते हैं। भाजपा में ऐसे नए नेताओं की एक मज़बूत खेप है, जिन्होंने भाजपा के बुरे और संघर्ष के दिन नहीं देखे। ये लोग मोदी के अंधड़ में उड़कर आए और सत्ता वृक्ष के शिखर पर अटक गए; लेकिन मदन राठौड़ जैसे कितने ही लोग इस वृक्ष की जड़ों में पनाह लिये हुए हैं। मुख्यमंत्री बने भजनलाल शर्मा की तरह मदन राठौड़ ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि इस संगठन की बागडोर एक दिन उनके हाथ में आ सकती है। प्रारंभिक राजनीतिक विश्लेषण में माना जा रहा है कि ओबीसी को साधने के लिए राठौड़ को अध्यक्ष बनाया गया है; लेकिन ऐसा होता तो ओबीसी की बड़ी जातियों पर फ़ोकस किया जाता।
कमजोर समाज के एहसास को जगाने की कोशिश
दरअसल, प्रदेश में आरएसएस का सांगठनिक जाल बहुत नीचे तक है। यह परिकल्पना उसी की है कि आम राजनीतिक दलों के प्रतिकूल ऐसी जातियों को साधा जाए, जो वंचित हैं और हाशिये से बाहर हैं। साथ ही, ऐसी संभावनाओं को आकर्षण के रूप में स्थापित किया जाए, जिससे कमज़ोर से कमज़ोर और बहुत सामान्य जन को यह भ्रामक एहसास रहे कि भजनलाल मुख्यमंत्री बनाए जा सकते हैं तो वह क्यों नहीं! इस एहसास को जगाने का नाम ही मोदी माहात्म्य है। मदन राठौड़ भाजपा के सोलहवें अध्यक्ष हैं। इनमें सात ब्राह्मणों को दस कार्यकाल मिले हैं। कायस्थ, वैश्य और राजपूत समुदाय को दो-दो मौक़े मिले हैं। जाट, खत्री और माली को एक-एक अवसर दिया गया। अच्छा काम करने वाले सतीश पूनिया को रिपीट करना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
भाजपा का साल 2014 के बाद का नेतृत्व बहुत प्रयोगशील है। वह तरह-तरह के प्रयोग करके देख रहा है। तुम आए हो तुम्हें भी आज़मा कर देख लेता हूँ। तुम्हारे साथ भी कुछ दूर चल कर देख लेता हूँ। सियासी हवाएँ जिनकी अंधी खिड़कियों पर सर पटकती थीं, मैं उन महलों को खंडहरों बदलकर देखता हूँ और ये मशाल किसी बेचेहरा के हाथ देकर बेचेहरा समाजों को चेहरा देकर देखता हूँ। मदन राठौड़ और भाजपा की यही ताक़त है।