Ratan Tata: देश के दिग्गज उद्यमी रतन टाटा नहीं रहे। मगर, उनकी जिंदगी की सेवा, स्नेह, समर्पण, सादगी और सफलता के किस्से और कहानियां सदा जिंदा रहेंगे। जिन्हें सुन कर न केवल हम बड़े हुए, बल्कि हमसे पहले और हमारे बाद की पीढ़ियां भी जीवन में आगे बढ़ी। उनका संसार से चले जाने दुखी कर गया। देश -दुनिया के उद्यमी, व्यापारी, उद्योगपति और धंधेबाज जिनके उद्यम नियमों को सीख-समझकर प्रेरित होते रहे, और करोडों लोग जिनके जैसा बनने और जिनसे जीवन में सिर्फ एक मुलाकात के सपना देखते रहे, वह रतन टाटा संसार से विदा हो गए। वे 28 दिसंबर 1937 में दुनिया में आए और 9 अक्टूबर 2024 की रात 87 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए। उनेक के इस पड़ाव पर भी वे काफी सक्रिय थे और भले ही बीमार वे पहले भी कभी कभार होते रहे, लेकिन हर बार अपनी आखरी सांस के साथ अठखेलियां करके उसे आगे धकेलते रहे। लेकिन शायद, उस आखरी सांस ने रतन टाटा की उसके साथ हो रही अठखेलियों के अंदाज को गहराई से जान लिया था, सो उन्हीं के अंदाज में उनके साथ खेल करके थम गई। रतन टाटा को चार बार प्रेम हुआ, पर विवाह एक बार भी नहीं हो सका। वे इश्क में असफल रहे, मगर इसी असफलता ने उनके जीवन में सफल बनाया। दिल टूटा, मगर खुद नहीं टूटे और हर टूट ने रतन टाटा को पहले से ज्यादा मजबूत बनाया। वे पद्म विभूषण थे और उनके निधन के साथ ही उन्हें भारत रत्न देने की मांग भी सोशल मीडिया पर हो रही हैे
चार बार प्रेम, फिर भी विवाह नहीं हो सका
रतन टाटा कोई जमशेदजी टाटा के परिवार के सदस्य नहीं थे, वे तो कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन के बाद नौकरी करते हुए अमेरिकी जीवनशैली से इतने प्रभावित हुए कि लॉस एंजिल्स में बसने का मन बना लिया था। लेकिन उनका प्रेम भी टूटा, और अमेरिका भी छूटा। नौकरी करते हुए उन्हें अमेरिका और अमेरीकन दोनों से प्रेम हो गया था। प्रेमी – प्रेमिका ने शादी का फैसला किया, लेकिन यह सपना पूरा नहीं हो सका, क्योंकि उसी दौरान उनको दादी की बीमारी के कारण भारत आना पड़ा और सन 1962 में भारत पाकिस्तान के युद्ध हालात के कारण उनकी प्रेमिका भारत नहीं आ पाईं। दिल की दीवारें दरकने लगीं। लेकिन रतन टाटा ने खुद को सम्हाला और 1962 में ही टाटा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई और उस अमरीकन ने भी वहीं किसी से ब्याह रचा लिया। हालांकि बाद में भी रतन टाटा को अलग अलग समय में तीन महिलाओं से प्रेम हुआ, जिसे उन्होंने एक इंटरव्यू में स्वीकारते हुए इतना ही कहा कि – उन्हें चार बार प्रेम हुआ और बात शादी तक भी पहुंची, पर हर बार किसी न किसी वजह से बात बिगड़ गई। ‘कई बार मुझे परिवार न होने के कारण अकेलापन महसूस होता रहा और यह भी कि जीवन में कुछ तो कम है। हालांकि, कभी-कभी मुझे यह आजादी भी लगती है कि मुझे किसी और की चिंताओं के बारे में चिंता न करने की जरूरत नहीं है। रतन टाटा ने अपने चार प्रेम में कभी किसी किसी का नाम जाहिर नहीं किया। लेकिन कभी फिल्म अभिनेत्री रही और बुढ़ापे में टीवी पर इंटरव्यू लेनेवाली सिम्मी ग्रेवाल ने जरूर खुद को खबरों में लाते हुए सन 2011 में एक इंटरव्यू में कहा कि वह रतन टाटा से प्रेम करती थी, लेकिन कुछ वक्त बाद रिश्ता टूट गया। हालांकि रतन टाटा ने इसकी कभी पुष्टी नहीं की लेकिन सिम्मी की बातों को फिल्मी गॉसिप की तरह भी नहीं लिया गया।
साधारण से अत्यंत असाधारण बने रतन टाटा
सही मायने में कहें, तो हर पीढ़ी के लिए बहुत कुछ सीखने जैसा रहा रतन टाटा का जीवन। थे तो वे उद्योगपति, लेकिन उनके योगदान को जीवन के ना जाने किन किन क्षेत्रों में याद किया जाता रहेगा। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार बताते हैं कि रतन टाटा में गजब की निर्णय लेने की त्वरित तात्कालिकता थी। साथ ही कार्यों और कार्यक्रमों की क्रियान्विती की कुशलता और हर हाल में हालात से जूझते रहने का मजबूत माद्दा उनकी सबसे बड़ी खासियत था। परिहार कहते हैं कि वे सपने नहीं देखते थे, सपने सजाते थे, और औरों के देखे हुए सपने संवारते थे। परिहार बताते हैं कि महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से 1 मई, 2017 को आयोजित एक विराट छात्र संगम ‘ट्रांसफॉर्म महाराष्ट्र’ के लिए जब वे रतन टाटा को आमंत्रित करने गए, तो टाटा सहर्ष तैयार हो गए। अपनी चिर-परिचित मुस्कान बिखेरते हुए बोले कि नई पीढ़ी से बात करूंगा, उनसे मिलूंगा, तो मुझे भी कुछ नया सीखने – समझने को मिलेगा। परिहार कहते हैं कि वे जब रतन टाटा मुंबई को मुंबई के एनएससीआई स्टेडियम में लेकर पहुंचे और वहां हजारों छात्रों के बीच जब उन्होंने खुद को देखा, तो उनका चमकता चेहरा और दीप्त हो उठा था। जेआरडी टाटा द्वारा स्थापित टाटा ग्रुप की 155 साल की औद्योगिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले रतन टाटा को आज दुनिया भर में एक सफल उद्यमी के रूप में भले ही जाना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि रतन टाटा ने टाटा ग्रुप में एक कर्मचारी के रूप में ही अपना करियर शुरू किया तो फैक्ट्री के मजदूरों के साथ भी काम किया। जिसके जरिए उन्होंने जाना कि आखिर मजदूर की जिंदगी क्या होती है और किसी मजदूर के परिवार को किसी और का बिजनेस खड़ा करने में कितना झेलना पड़ता है और मजदूर को कितनी मेहनत करनी होती है।
उद्योगपतियों के प्रति समाज का नजरिया बदला
रतन टाटा कमाने वाले के प्रति सम्मान और विश्वास पैदा करने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाएंगे, क्योंकि व्यवसायियों, उद्यमियों व उद्योगपतियों के बारे में उन्होंने देश की जनता का नजरिया बदला और उनके प्रति लोगों के मन में सम्मान पैदा किया। वे कहते थे कि जिसके पास धन है, उसका धर्म है कि वह अपने आसपास के लोगों का जीवन संवारने में भी उस धन को खर्च करे। अपने इसी सिद्धांत के तहत उन्होंने सामान्य लोगों के मन को समझा और अपनी कमाई के एक बहुत बड़े हिस्से को सामान्य लोगों का जीवन संवारने व परोपकार पर खर्च किया। उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत को केवल इस बात को समझा जा सकता है कि अपनी कमाई का 65 फीसदी हिस्सा दान करते रहे। आज, ये जो रतन टाटा के संसार से सिधारने पर देश के ही नहीं, दुनिया भर के लोगों के दिलों में उनके प्रति जो सम्मान उमड़ता दिखाई दे रहा है न, वह उनकी इसी सेवा का परिणाम है। यही नहीं, देश के उद्योगपति भी आज जो धन कमाने के साथ साथ अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा जनसेवा में लगा रहे हैं, यह भी रतन टाटा की ही सीख है। वे कहते थे कि जीवन में हमें जो कुछ मिला है, भले ही वह धन हो, सफलता हो या फिर सम्मान हो, सब कुछ समाज से ही मिला है। तो हमें जो हासिल हुआ है उसका हिस्सा समाज के उन लोगों के लिए भी लगाना चाहिए, जो उससे वंचित है। समस्त संसार में रतन टाटा जैसी शख्सियत शायद ही कोई और होगी।
गरीब परिवार को भीगते देखा, तो सस्ती कार बना डाली
उद्योगपति तो रतन टाटा थे ही और कार बनाने से लेकर बेकार को काम देने के मामले में भी सबसे आगे भी थे। लेकिन उद्यम के अलावा संस्कृति, खेल, समाजसेवा, पर्वतारोहण, नौकायन आदि सहित विभिन्न स्टार्टअप के जरिए भी उन्होंने देश के लाखों युवाओं की जिंदगी संवारी। वे अपने उद्योग स्थापित करने और कारोबार के विकसित करने में हर तरह के जोखिम लेने और अभिनव किस्म के प्रयोग करने में भी सदा आगे रहे। रतन टाटा की उद्यमिता की कल्पनाशीलता देखिए कि एक बार बारिश में भीगते परिवार को देखकर दिल पसीजा, तो उन्होंने भारत में सबसे सस्ती कार बनाने का कारखाना ही खोल दिया। यह अलग बात है कि हमारा गरीब होता तो असल में गरीब ही है, लेकिन वह मानसिकता का भी गरीब होता है, सो दिखावा अमीरों सा करने की कोशिश में अपनी गरीबी छुपाना चाहता हैष इसी वजह से नैनो कार ज्यादा चली नहीं। लेकिन रतन टाटा की उस सबसे सस्ती नैनो कार से लेकर जगुआर लैंड रोवर जैसी महंगी कारों तक की विभिन्न पहलों ने भारतीय उद्यमियों के प्रति दुनिया का नजरिया ही बदल डाला। टाटा ग्रुप में 1962 में नौकरी की शुरूआत के 30 साल बाद, सन 1992 में जेआरडी टाटा के निधन के बाद रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद की कमान सम्हाली।
मानवता को महानता की राह दिखाने वाले महामानव
ऐसा नहीं था कि रतन टाटा कोई आकाश से उतरे महामानव थे, वे भी आपकी और हमारी तरह मां को कोख से जन्मे सामान्य हाड़ – मांस से बने मनुष्य ही थे। लेकिन अपने साधारण होने की समझ ने ही उनको असाधारण बनाया। उन्होंने पढाई की, प्रेम किया, परमार्थ भी किया और प्रकृति के प्रताप सो सहेजने का पराक्रम भी किया। आज जब से इस संसार से सदा के लिए चले गए हैं, तो हर किसी को यही अहसास हो रहा हैं कि उनका जाना केवल भारतीय उद्योग जगत के लिए ही नहीं, संसार के समस्त सामान्य लोगों के लिए किसी ऐसे मसीहा का जाना है, जिसने दुनिया को बहुत कुछ दिया, मानवता को महानता की राह दिखाई और हर साधारण व्यक्ति के मन में असाधारण बन जाने का अहसास जगाया। रतन टाटा ऐसी शख्सियत थे, जो सदा सबके लिए जीते रहे, जागते रहे और जानते रहे कि संसार से जाने के बाद भी संसार को कैसे जगाते रहा जा सकता है। रतन टाटा का जीवन, हमें अपने जीवन को संवारने, अपने आस पास के लोगों का जीवन स्तर सुधारने और सभी के जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहने के लिए भी प्रेरणादायी बना रहेगा।
-आकांक्षा कुमारी