Rajasthan Politics : Niranjan Parihar
जो लोग सचिन पायलट (Sachin Pilot) से बहुत ज्यादा नजदीकियों का दावा करते वे सन्न हैं। उनकी हालत देख कर कहा जा सकता है कि पायलट को लोग जानते भी हैं और नहीं भी जानते। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उभरते नेता पायलट के प्रशंसकों को यह कतई अच्छा नहीं लग रहा कि उनका नेता निजी जीवन में भी अब अकेला है। राजनीति में तो पहले से ही उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्तगी के साथ ही दरकिनार कर दिया गया था। समर्थकों को सुनकर बुरा लग रहा है कि पायलट का तलाक (Divorce) हो चुका है और अब वे सारा अब्दुल्ला (Sara Abdullah) के पति नहीं हैं। माना कि यह सत्य है, लेकिन यह सत्य किसी को नहीं सुहाया। वैसे, पायलट और सारा के निहायत निजी जीवन से जुड़े इस सत्य को कम लोग ही जानते थे, और ज्यादातर बिल्कुल ही अनजान थे, मगर अब जमाना जान रहा है। Social Media पर भी उनके चर्चै हैं। यह तो पायलट चुनाव नहीं लड़ रहे होते, तो शायद कुछ और सालों तक किसी को पता तक नहीं चलता। लेकिन चुनाव आयोग के नियमों में सख्ती इतनी है कि ऐसे सत्य को सार्वजनिक करना ही सही होता है।
नामांकन के बजाय तलाक की चर्चा
यह एक दिल कचोटने वाला संयोग हैं कि सारा से पायलट (Sachin Pilot) के तलाक की खबर उस दिन सार्वजनिक हुई जिस दिन पूरा देश पायलट के नामांकन में उमड़ी अथाह भीड़ में उनकी लोकप्रियता का अक्स देख रहा था। आज वास्तव में चर्चा तो केवल होनी थी Rajasthan Assembly Election के लिए पायलट के नामांकन में उपस्थित समर्थकों के ऐतिहासिक जलसे और उनकी अप्रतिम लोकप्रियता की। चर्चा होनी थी राजस्थान के इस लोकप्रिय युवा नेता के प्रति युवा वर्ग के अपार स्नेह की। मगर, हलफनामे के हिसाब ने हादसे की शक्ल में जब हकीकत परोस दी, तो उसकी चर्चा को भी रोका तो नहीं जा सकता था। फिर, क्योंकि हमारी दुनिया में अक्सर यह होता रहा है कि कोई एक जीता जागता शख्स अचानक ही कुछ अलग तरह के कारणों से शीर्षकों और सुर्खियों में तब्दील हो जाता है और फिर उसके बारे में लोग वे भी कहानियां कहने लगते हैं जिनसे उसका कभी कोई वास्ता नहीं रहा होता। शायद इसी कारणवश कुछ लोग हैं, जो कह रहे हैं कि पायलट के जीवन की इस निजी घटना के वे गवाह है, लेकिन कौन जाने कि वे सच ही बोल रहे हैं।
लंदन में दिल मिले, दिल्ली में बिखरा परिवार
सारा अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के दो बार मुख्यमंत्री रहे शेख अब्दुल्ला की पोती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी और उमर अब्दुल्ला की बहन हैं। उमर भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं। लंदन में, जहां सचिन पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे तभी सारा और वे नजदीक आए और बाद में 2004 में विवाह हुआ। हालांकि महज 10 साल बाद ही सन 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले भी सचिन और सारा के तलाक की चर्चाएं सुनाई दी थीं। लेकिन बाद में ये चर्चा अफवाह ही साबित हुई। Rajasthan Assembly Election में जीत के बाद दिसंबर 2018 में सचिन जब उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तो उस आयोजन में सारा बाकायदा उनकी पत्नी के रूप में अपने दोनों बेटे आरान और विहान सहित अपने पिता फारूक अब्दुल्ला के साथ उपस्थित थीं। लेकिन अब साफ तौर पर जाहिर है कि सचिन व सारा तलाक (Divorce) हो चुका है और अब वे पति – पत्नी नहीं हैं।
सार्वजनिक जीवन में भी होता है निजी जीवन
वैसे, जीवन में कुछ हादसे इतने अंतरंग होते हैं कि बाहर की दुनिया को आखिर उन हादसों की हकीकत जानने का हक हासिल होना भी क्यों चाहिए। मगर, दुनिया तो दुनिया है, हादसों और उनकी हकीकत को सूंघने की ललक लोगों को परेशान किए रहती है। शायद इसीलिए, सामान्य किस्म के लोग सामान्यतः यही मान लेते है कि व्यक्ति का जीवन अगर सार्वजनिक है, तो फिर उसके जीवन की बातें क्यों सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोगों को व्यक्तिगत विवादों और निजी घटनाओं को भी चौराहों की चर्चा बनाए रखने में रस आता है। मगर, फिर भी धीर गंभीर व्यक्तित्व के धनी सचिन पायलट के निजी जीवन के इस अंतरंग प्रसंग की निजता का सम्मान बनाए रखना ही उचित होगा।
Rajasthan Politics में व्यक्तिगत मामले पर चर्चा जरूरी नहीं
मामला आखिर एक सम्मानित राजनेता के सामाजिक जीवन और सेवाभाव से जुड़ा है, क्यों उस पर कोई और बात हावी हो। फिर, भी लोग अगर कुछ कहते रहें, तो माना कि जमाना अक्सर चौराहों की चर्चाओं के हिसाब किताब अपने तरीकों से करता रहता है, तो फिर यह भी माना जाना चाहिए कि हर हिसाब की और हर कर्म की भी अपनी एक सीमा होती है और इस सीमा को तोड़ने वालों का अपराध भी किसी को तो तय करना ही चाहिए। यह सब इसलिए, क्योंकि सन 2018 में कांग्रेस को Rajasthan Assembly Election में सत्ता में लाने की कोशिश में Sachin Pilot ने अपने लाखों समर्थकों के लिए अपने दिल के दरवाजों को तो खोल कर रख दिया था, मगर इस चक्कर में वे परिवार की अंजुरी को शायद ठीक से बांध नहीं पाए। अंजुरी सहेजने का होश जब तक आया, तब तक पारिवारिक ताना बाना बिखर चुका था और सत्ता में पार्टी के आने के बावजूद उनके लिए राजनीति के रास्ते बिखरे हुए ही रह गए थे, क्योंकि सत्ता में वे जो मुकाम चाहते थे, वह नहीं मिल सका। लेकिन पायलट ने मन में एक सपना जिंदा रखा कि इसी सागर की एक सार्थक लहर बनकर वे अपना होना सिद्ध करेंगे। सपने के आने से पहले ही नींद के टूट जाने का दर्द दिल में दबाकर भी वे लगे हुए हैं। ऐसे में, नदी अगर सागर से बिना मिले ही अपनी धारा को कहीं और ले निकली, तो उस पर कोई चर्चा क्यों होनी चाहिए। उस रिश्ते, उस धारा और उस सपने का भी तो सम्मान बने रहना चाहिए। बात गलत तो नहीं?
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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