Prem Chand Bairwa: राजस्थान की भजनलाल शर्मा (Bhajanlal Sharma) के नेतृत्व वाली बीजेपी (BJP) सरकार में संतान की वजह से सांसत में आने वाले मंत्रियों की सूची में कानून मंत्री जोगाराम पटेल के बाद अब उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा का नाम भी जुड़ गया है। पटेल का बेटा अपने कानून मंत्री पिता के रसूख से पूरे प्रदेश का अतिरिक्त महाधिवक्ता बन बैठा मगर बाद में बाप – बेटे सहित समूची सरकार को इस्तीफा दिलवाने की शर्म झेलनी पड़ी। तो, उप मुख्यमंत्री बैरवा का बेटा सोशल मीडिया के लिए रील बनाने में राजस्थान (Rajasthan) पुलिस का सहयोग लेने के कारण चर्चा में है। वैसे, डॉ बैरवा ने इस मामले में अपनी बात कह दी है, लेकिन राजस्थान की राजनीति में बैरवा का कोई तौ बैरी है, जो इस तरह की खबरों को लगातार तूल देने की कोशिश में है। उधर, राजस्थान के राजनीतिक हलकों में हाल ही में नई दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल के कमरा नंबर 301 की अविश्वसनीय जानकारी भी प्रसारित करने की कोशिश की भी गई, जिसमें रशियन बाला के साथ प्रदेश की सरकार में ऊंचे ओहदे पर बैठे एक नेताजी का नाम चलाया गया। नेताजी के बेटे की 3 करोड़ की रैंज रोवर कार खरीदने के वीडियो, नेताजी के 75 हजार के जूते और 35 हजार के चश्मे सहित भाई की निजी कार पर सरकारी कार जैसी लाल पट्टी और ट्रांसपोर्ट विभाग से संबंधित खबरें प्रवाहित करने की कोशिश भी सबकी नजर में है। राजस्थान की राजनीति में रस रखने वाले और खास कर बीजेपी के मंत्रियों पर नजर रखनावाले इस मामले को भी प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक हालात से जोड़कर देख रहे हैं। वैसे तो सरकार में बैठे ओहदेदारों को निजी बदनामी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहना जरूरी है, लेकिन शौक और मिजाज अक्सर सावधानी पर भारी पड़ते रहे हैं।
लगते तो सीधे सादे हैं उप मुख्यमंत्री बैरवा
राजनीति में वैसे तो सीधे सादे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन फिर भी प्रेमचंद बैरवा सीधे – सादे ही लगते हैं। डॉक्टर हैं, भले आदमी हैं और भोले भी। भले हैं, इसीलिए, बेटे के रील के शौक की भेंट चढ़ गए। भोले हैं, इसी कारण तपाक से सफाई देने सामने आ गए। हालांकि, ना भी आते, तो कोई क्या कर लेता। फांसी थोड़े ही चढ़ा देता। वैसे देखा जाए तो होने को तो, डॉ बैरवा समूचे राजस्थान के उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी किसी को नहीं लगते। इसीलिए अपने नए बने दूदू जिले में भी राजनीतिक धाक कितनी जमा पाए है, सभी जानते हैं। हालांकि कुछ दिन बाद दूदू जिला भी बना रहेगा या नहीं, इसमें भी लोगों के शक है। तो, ऐसे राजनेता हैं प्रेमचंद बैरवा, जिनमें राजनीतिक चालाकियों के तत्व अगर तैरते होते, तो अब तक तो उप मुख्यमंत्री होने को भुना कर डॉ बैरवा बहुत कुछ कर चुके होते। लेकिन ना तो अब तक पद के मुताबिक राजनीतिक कद बना पाए और ना ही पद की हैसियत के तेवर आज तक किसी को दिखाए। सादगी पसंद लोगों की मुसीबतें ऐसी ही होती है कि अक्सर वे अपने आस पास के लोगों के अपकर्मों और धत्तकर्मों की वजह से ही खबरों की नजर में चढ़ते रहे हैं।
अचानक खबरों के आकाश में तैरने लगे डॉ बैरवा
राजस्थान की राजनीति में डॉ बैरवा अपने किसी काम की वजह से खबरों में रहे हो, ऐसा कोई उदाहरण अब तक तो सामने नहीं आया। उप मुख्यमंत्री के नाते भी उनका कोई राजनीतिक पराक्रम प्रदेश की प्रजा के सामने प्रकट हुआ हो, इसका भी कोई उदाहरण नहीं है। न वे कभी विवादित रहे और न ही अनावश्यक चर्चा में। लेकिन सीनियर स्कूल में पढ़ने वाले 18 साल के बेटे का अपने स्कूल के दोस्तों के साथ आमेर किले में जाकर पुलिस की सुरक्षा में रील बनाना डॉ बैरवा को पहली बार समूचे प्रदेश में चर्चित कर गया। भगवान करे बहुत बुरा हो मुई रील का कि सोशल मीडिया पर वायरल होते ही बवाल मचा और किसी भी विवाद से दूर रहने वाले डॉ बैरवा अचानक खबरों के आकाश में तैरने लगे। सीधे – सादे लोगों के साथ अक्सर यही होता है कि साधारण से मामले भी उनके लिए बहुत बड़े मुद्दे बनकर पहाड़ की तरह उनके सामने खड़े हो जाते हैं, या खड़े कर दिए जाते हैं। ताजा मामले में भी इस बात की तह तक जाने की जरूरत है कि आखिर डॉ बैरवा के खिलाफ इस मामले को हवा कौन दे रहा है।
सवाल दर सवाल – कानून के भी और सियासत के भी
दरअसल, बातों का स्वभाव यही है कि वे जब निकलती हैं, तो दूर तलक जाती ही है। इसीलिए, बात – बात पर सवाल है। और सबसे पहला सवाल यही है कि भले ही उप मुख्यमंत्री का बेटा रील बना रहा था, लेकिन राजस्थान पुलिस की उसकी गाड़ी को एस्कॉर्ट क्यों कर रही थी? इसके अलावा भी सवाल बहुत सारे हैं। सवाल यातायात नियमों का है। सवाल ये भी है कि जब बेटा नाबालिग है, तो निश्चित तौर पर लाइसेंस तो नहीं ही होगा, फिर गाड़ी क्यों चला रहा था, और सवाल बिना सीट बेल्ट वाहन चलाकर कानून तोड़ने का भी है। सवाल परिवहन विभाग की इजाजत के गाड़ी की बॉडी को मॉडिफाई करने का तो है ही, सवाल एचएसआरपी नंबर प्लेट के बिना वाहन चलाने का भी है। उप मुख्यमंत्री डॉ बैरवा भले ही कहें कि यातायात नियमों की किसी भी तरह से अवहेलना नहीं की गई है। लेकिन सवाल तो है, बहुत सारे हैं, जिनके जवाब भी देने ही होंगे। क्योंकि बात जब निकलती है, तो बहुत दूर तक जाती ही है। इसीलिए, उप मुख्यमंत्री डॉ बैरवा को अपने बालिग होने की कगार पर खड़े मासूम बेटे की नादानी की भेंट चढ़ गए और सफाई देनी पड़ी है, लेकिन लोग हैं कि मानें नहीं मानें, उनकी मर्जी। जैसा कि डॉ बैरवा ने खुद कहा – मेरे बेटे को कोई गाड़ी एस्कॉर्ट नहीं कर रही थी, बल्कि वो गाड़ी सुरक्षा में पीछे -पीछे चल रही थी। इसे अगर कोई बेवजह तूल देता है तो उसकी मर्जी है।’ मतलब साफ है कि कोई तो है, जो तूल दे रहा है। असल में वो है कौन, यह भी तो एक सवाल है।
पढ़े-लिखे डॉ बैरवा क्यों खटकने लगे किसी को
पढ़ने लिखने के शौकीन प्रेमचंद बैरवा कायदे से डॉक्टर हैं। डॉक्टर भी इंजेक्शन – ऑपरेशन वाले नहीं, बल्कि किताबी शोध वाले डॉक्टर। राजस्थान के जयपुर जिले के मौजमाबाद तहसील के श्रीनिवासपुरा गांव में 31 अगस्त 1969 को जन्मे डॉ बैरवा राजस्थान विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद कानून की पढ़ाई करके एलएलबी की डिग्री ली, लेकिन वकालात करने को मन नहीं माना, तो एमफिल करने के बाद पीएचडी कर ली और खेती को धंधे के रूप में अपना कर सेवा के शौक पूरे करने के लिए राजनीति में हाथ आजमाया और 2013 में बीजेपी के रास्ते दूदू से विधायक बन गए। अगली बार 2018 का चुनाव बाबूलाल नागर से हारे, लेकिन 2023 में फिर जीतकर सीधे उप मुख्यमंत्री बन गए। वैसे, किसी दलित का बहुत पढ़ लिख कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़कर शिखर के करीब पहुंच जाना सामान्य समाज को सदा से अखरता रहा है, इसिलिए लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है। सत्ता के उप शिखर पर उनका सवार हो जाना किसी को तो सुहा नहीं रहा। डॉ बैरवा का सियासत के मैदान में कोई तो बहुत बड़ा बैरी है, जो बेटे की हरकतों को हवा देकर उनकी हवा निकालना चाहता है। इस हवाबाज अदृश्य शक्ति को आप अगर जानते हो, तो बजाना।
-निरंजन परिहार
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