Navjot Singh Sidhu: क्रिकेट, टीवी, राजनीति और जेल में वैसे तो कोई समानता नहीं है, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की जिंदगी में ये सभी समान रूप से उपस्थित हैं। वही सिद्धू एक बार फिर पंजाब की राजनीति (Punjab Politics) में सक्रिय हो गए हैं। इन दिनों वे पंजाब मुख्यमंत्री भगवंत मान (Bhagwant Mann) पर हल्लाबोल की वजह से खबरों में हैं। सिद्धू ने कहा है कि ‘थोथा चना बाजे घना, सीएम मान को इतना अहंकार नहीं करना चाहिए, अहंकार करने वाले इस धरती पर रहे नहीं, कांग्रेस थी और हमेशा रहेगी।’ सिद्धू ने यह करारा जवाब मुख्यमंत्री मान के उस बयान पर दिया है जिसमें उन्होंने कांग्रेस (Congress) पर तंज कसते हुए उसे सबसे छोटी कहानी बताया था। मान ने कहा था कि कांग्रेस का क्या हुआ, यह सबको पता है? और दिल्ली से पंजाब (Punjab) के बीच कोई मां अपने बच्चे को दुनिया की सबसे छोटी कहानी सुना सकती है- एक थी कांग्रेस। जेल की सलाखों से पिछले साल अप्रेल में आजाद होने के बाद सिद्धू क्या कर रहे थे, लोग जानता चाहते थे, तो आप भी जान लीजिए कि सिद्धू स्वयं को साध रहे थे, नए सिरे से सहेज रहे थे और अपने अस्तित्व को निखारने का नया मार्ग खोज रहे थे।
Navjot Singh Sidhu फिर मैदान में पूरी ताकत के साथ
लगता है कि वे फिर से अपने नए अस्तित्व की खोज में निकल पड़े हैं, इसीलिए पंजाब सरकार पर बरस रहे हैं। सिद्धू ने कहा है कि सरकार वास्तविक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रही है। पंजाब की त्रासदी यह है कि लोगों ने अपने फायदे के लिए व्यवस्था बदली मगर, उस व्यवस्था ने राज्य को पीछे धकेल दिया। कुछ दिन पहले भी सिद्धू ने यह भी कहा कि क़समे वादे प्यार वफ़ा सब बातें है बातों का क्या, आम आदमी पार्टी के वादे बांस की तरह लंबे मगर अंदर से खोखले हैं! पिछले साल 17 अक्टूबर 2023 को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा – ‘जो अपना पुराना परिचय भूलकर नये अस्तित्व की खोज में निकले, मार्ग उसे अपना ही लेता है!’ दरअसल, गुरू के साथ जिंदगी के मैदान में अक्सर खेल होते रहे हैं, और लग तो यह भी रहा है कि अपने साथ होते रहे खेल को खिलाड़ी खुद भी आज तक समझ भी नहीं पाया! मगर, पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर सिद्धू ने सिद्ध कर दिया है कि वक्त चाहे कितना भी बुरा हो, उससे लड़कर उसे हराया तो जा सकता है, बस हिम्मत जुटानी आनी चाहिए
जेल से निकलकर नवजोत पत्नी को कैंसर से उबारने में जुटे
कुछ दिन पहले तक जीवन के सबसे घनघोर एवं घटाटोप अंधकार को दूर से देख रहे तथा जीवन की त्रासदी को झेलने के दिनों में नवजोत सिंह सिद्धू की धर्मपत्नी और संयोग से हमनाम नवजोत कौर सिद्धू ही केवल उनके साथ रही। वे पंजाब में बीजेपी की विधायक रही हैं और सरकार में मंत्री भी। मगर, काफी महीनों से वे कैंसर से पीड़ित थीं। जिसने जीवन भर हर सुख दुख में मजबूती से साथ निभाया, जेल से निकलकर सिद्धू, अपनी उस बीमार पत्नी की सेवा में साथ थे। मगर, अब उन्होंने फिर से मोर्चा सम्हाल लिया है। कभी सियासत के सरताज कहलाते थे, मगर सजा पूरी करने के बाद जेल से बाहर आने के बाद इतने महीनों तक वे क्या कर रहे थे, और कहां थे, यह कोई नहीं जानता। वैसे भी, सिद्धू जब जेल में थे, तभी पीछे से पत्नी को कैंसर ने जकड़ लिया था, कैंसर की इस जकड़न में नवजोत कौर अकेले ही जीवन से जूझ रही थीं। सिद्धू को बताया तक नहीं। जेल से निकले तब सिद्धू को पता चला। तो फिर, सिद्धू उन्हीं की सेवा में अपना सर्वस्व लगा रहे थे, यह जानना जनता के लिए आखिर जरूरी भी क्यों हो। वैसे नवजोत कौर सिद्धू कैंसर को मात देकर ठीक हो गई हैं और इसीलिए सिद्धू फिर से सक्रिय हो गए हैं। और इसे क्रिकेट की भाषा में कहे, तो सिद्धू नई ओपनिंग कर रहे हैं। सिद्धू के बीते जीवन के इस सबसे त्रासद दौर में उनका कोई हमनशीं नहीं था, केवल उनकी पत्नी नवजोत ही साथी थी। मगर, आप जब यह पढ़ रहे हैं, तो जीवन के सबसे मुश्किल पड़ाव को पार करके सिद्धू अकेले ही आगे बढ़ रहे हैं, और इस चिंतन में भी हैं कि कहां, कैसे फिर नई शुरूआत करे, दम लगा के।
सिद्धू की सियासी कहानी में कई मोड़ आते रहे
हालांकि, यह तो कांग्रेस नहीं मानी, वरना पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी की जगह 6 महीने के लिए ही सही, सिद्धू मुख्यमंत्री तो बन ही जाते। लेकिन सिद्धू की सांसें सियासत के मैदान में आम आदमी के नाम पर खास लोगों की बन चुकी भगवंत मान सरकार की सांसों को फूलाती हुई सी लग रही हैं। इन दिनों वे कई परेशानियों से पार पा कर फिर से राजनीति के मैदान में हैं। वे जिस बीजेपी के बारे में कहते रहे कि पार्टी उनकी मां है, जिसने उन्हें बहुत कुछ दिया, उसी बीजेपी से तो वे बहुत पहले ही अलग हो चुके थे। मगर, कांग्रेस में भी उन्हें बाद में कोई खास भाव नहीं मिल रहा है। हालांकि कांग्रेस उनकी सौदेबाजियों की सियासत से आजिज आ चुकी थी और बीजेपी तो पहले ही उन पर पलटवार को बेताब थी। कांग्रेस में रहकर केजरीवाल की पार्टी से प्याग की पैंगे भिड़ाने का उनका करतब भी सबके सामने प्रकट हो गया और अब जब वे साल भर की सजा काटकर फिर से सरकार पर हमलावर हैं, तो किसी को पता नहीं कि उनका अगला असल मुकाम क्या है।
भस्मासुर के कलयुगी अवतार में सिद्धू की सख्शियत
नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेटर रहे हैं। राजनेता भी रहे हैं। कमेंटेंटर का काम भी उन्होंने बखूबी किया हैं। टीवी पर सबसे चर्चित रहे कॉमेड़ी शो कपिल शर्मा शो और उससे पहले लाफ्टर चैलेंज की तो वे जान रहे हैं। वे कवि हैं। समां बांधनेवाले वक्ता के रूप में नका कोई सानी नहीं है। उम्र के उतार पर भी वे दिखने में सुदर्शन हैं। टीवी एंकर भी हैं और कलाकार तो वे हैं ही। एक आदमी सिर्फ एक ही जनम में आखिर जो कुछ हो सकता है, नवजोत सिंह सिद्धू उससे कहीं ज्यादा हैं। लेकिन फिर भी मशहूर लेखक सरदार खुशवंत सिंह ने मरने से पहले एक लेख में पता नहीं क्यों नवजोत सिंह सिद्धू को सिख समुदाय की महिमा को कम करने वाला ‘जोकर’ बता दिया था। खुशवंत सिंह का यह खुल्लमखुल्ला हमला यह अपनी समझ से परे था, फिर भी नवजोत को बहुत नजदीक से जानने वालों को यह कहने का हक है कि जेल से निकलने के बाद जीवन में वे अब अगर और कुछ भी नहीं कर पाए, तो भी उनका चुटीला कविताई अंदाज उन्हें बेरोजगारी से तो बचा ही लेगा। हालांकि, सिद्धू जब जेल गए थे, तो अपन नहीं जानते कि उनके विरोधियों को ऐसा क्यों लग रहा था कि भस्मासुर के कलयुगी अवतार के रूप में वे जीते जी मोक्ष को प्राप्त हो जाएंगे। सिद्धू क्रिकेट में खेल के मैदान में एक बार जीरो पर आउट हुए थे, अब राजनीति के मैदान में भी उनका वही हाल हुआ। मगर किस्मत का कमाल देखिए कि राजनीति के रंगमंच पर सिद्धू अब फिर से अवतरित हैं और क्रिकेट की तरह बयानों के चौके – छक्के भी मार रहे हैं। सार्वजनिक जीवन में ही नहीं, निजी जीवन में भी सिद्धू वक्त न गंवानेवाले व्यक्ति के रूप में मशहूर रहे हैं, इसलिए जो लोग मान बैठे हैं कि वे जेल से निकलने के बाद वक्त क्यों गंवा रहे हैं, तो कारण आप जान ही चुके हैं कि वे गृहस्थ धर्म निभा रहे थे, जिससे वे अब उबर चुके हैं।
राजनीति के रेगिस्तान में एक बार फिर अकेले दम पर
क्रिकेट के पुराने वीडियो फुटेज देखें, तो नवजोत सिंह सिद्धू कभी टीम इंडिया के चमकदार सितारे हुआ करते थे। क्रिकेट के खेल में सफलता ने सिद्धू की दीन – दुनिया ही बदल कर रख दी थी। वे जब जीतकर लौटते थे, तो हर बार उनका अभिनंदन कारगिल के विजेता हमारे शूरवीर सैनिकों जैसा बहुत शानदार होता रहा। वे क्रिकेट के खेल से ही करोड़पति बने और कॉमेडी के जरिए किंग। लेकिन क्योंकि राजनीति न तो क्रिकेट का खेल है और न ही कोई कॉमेड़ी शो। इसलिए राजनीति में आकर वे भरपूर सफल भी हुए और घनघोर असफल भी यहीं से हो गए थे। गुरू का गेम बिगड़ गया था और राजनीति के रेगिस्तान में वे एक बार फिर एकदम अकेले हैं। कांग्रेस में हैं, तो कांग्रेस पंजाब में नहीं है। बीजेपी से रिश्ते वे पहले ही इतने खराब तरीके से तोड़ चुके हैं कि सुखद संभावनाएं लगभग समाप्त हैं। जीवन के इस मोड़ पर उनके अकेले हाल पर सिर्फ यही कहा जा सकता हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू तकदीर के तिराहे पर खड़े हैं, जहां से आगे का हर रास्ता उनके लिए पहले से ज्यादा खराब, खतरनाक और बहुत ऊबड़ खाबड़ है।
पता नहीं कहां कहां, क्या क्या होता रहा सिद्धू के साथ
राजनीति में जितने चर्चित रहे, उससे ज्यादा उनकी चर्चा एक व्यक्ति की गैर इरादतन हत्या के लिए मिली तीन साल की सजा को लेकर रही। इस केस के बाद उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की। जहां निचली अदालत के सजा के फैसले पर रोक लगने के बाद उन्होंने 2007 में फिर उसी सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस को करीब 75 हजार से भी ज्यादा वोट से हराया। इसके बाद वे 2009 में एक बार वहीं से फिर बीजेपी के सांसद बने। और 2014 में बीजेपी ने उनकी जगह लोकसभा का टिकट अरुण जेटली को दे दिया था, जिससे वे नाराज हुए तो दो साल बाद ही बीजेपी ने 2016 में सिद्धू को राज्यसभा में मनोनीत किया। लेकिन कुछ ही दिन के बाद सिद्धू इस्तीफा देकर घर आ गए।कुल मिलाकर चार बार, तीन बार लोकसभा टिकट पर और चौथी बार राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सांसद के रूप में राजनीति में अपना सिक्का जमानेवाले बड़बोले सिद्दू ने सबसे पहले सम्मान के साथ मिली मिलाई राज्यसभा की सदस्यता छोड़ी। फिर जिस बीजेपी को वे कभी ‘मां’ कहते थे, उस ‘मां’ से भी दामन छुड़ा लिया। राजनीतिक मातृत्व के इस रिश्ते को तजने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू उस कांग्रेस में आ गए, जिसे वे जीवन भर गालियां देते रहे। पंजाब में वे मंत्री बने और फिर उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए जोर भी लगाया मगर उनके बजाय चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया, तो वे कांग्रेस को भी छोड़कर ‘आवाज-ए-पंजाब’ मोर्चा बनाकर खुद ही मैदान में उतर गए। मगर कदम सही नहीं पड़ रहे थे और उनका राजनीतिक गणित भी शून्य ही दिखा रहा था। लेकिन राजनीति में कहते हैं कि जो दिखता है, वह होता नहीं। सो, सिद्धू के साथ तो यही हो रहा है।
राजनीति की असलियत से अलग सिद्धू की सियासत
पंजाब के पटियाला जिले में जन्मे नवजोत सिंह सिद्धू सिख है, और कट्टर शाकाहारी होने के कारण जितने लोग उन्हें पंजाब में पसंद करते हैं, उससे भी ज्यादा उन्हें किसी भी अन्य सिख के मुकाबले देश में ज्यादा पसंद किया जाता है। सन 1983 से लेकर 1999 तक वे टीम इंडिया में क्रिकेट खेलते थे, और क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद बीजेपी के टिकट पर 2004 में अमृतसर से लोकसभा के लिए पहली बार चुने गये। सांसद के रूप में तो सिद्धू ने ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिसे देश याद रख सके, लेकिन उनकी तुकबंदियों के मिसरे और चुटकलों से भरे चुटिले भाषणों ने कभी देश को उनका दीवाना बना दिया, तो कभी देश ने उनको जोकर मान लिया। हालांकि सिद्धू के अब तक के राजनीतिक कदमों की तासीर पढ़े, तो स्पष्ट तौर पर यही लगता है कि वे राजनीति की गहराई और उथलेपन की असलियत को अब तक सहज स्वरूप में नहीं समझ पाए हैं। संभवतया वे इसी कारण वे बीजेपी में ही टिके नहीं रह सके। माना कि अमृतसर से लोकसभा टिकट काटकर वहीं से अरुण जेटली लड़ लिए थे तो उनसे ठन गई थी, लेकिन बाद में राज्यसभा में मनोनयन भी तो उन्हीं के जीते जी हो ही गया था करवाया था। जीवन में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। जेटली कुछ वक्त बाद स्वर्ग सिधार गए, लेकिन सिद्धू उससे पहले ही बीजेपी से किनारा करके राज्यसभा से भी इस्तीफा देकर निकल गए। इसीलिए लगता है कि सिद्धू के लिए कभी कोई दरवाजा खुलता सा दिखता है, तो उससे पहले ही वह बंद होता भी दिखता है। अब सिद्धू फिर मैदान में हैं, और ईश्वर करे, वे सफल हों, लेकिन फिलहाल तो यही लग रहा है कि सिद्धू की राजनीति और उनकी पार्टी कांग्रेस दोनों ही पंजाब में सबसे मुश्किल मुकाम पर हैं और सिद्धू खुद अपनी राजनीतिक तकदीर के तिराहे पर।