Australia Election: ऑस्ट्रेलिया में चुनाव हैं, भारतीय भी हैं और भारतीयों की बड़ी ताकत भी है। हर दल भारतीयों को लुभाने में लगा है। जीत की जुगत भिड़ाने की कोशिश में कई उम्मीदवार भारतीय परंपरा के धर्मस्थलों में मत्था टेक रहे हैं, प्रमुख लोगों से मिल रहे हैं और सामाजिक संस्थाओं से सहजता बना बना रहे हैं। दोनों मुख्य दलों, लेबर और लिबरल पार्टी सहित कई निर्दलीय उम्मीदवार भी भारतीय त्योहारों पर वीडियो संदेश जारी कर भारतीय समुदाय को बधाई दे रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जबरदस्त क्रेज है। चुनाव लड़ रहे नेता पीएम मोदी से संबंधों के हवाले से भी वोट का जुगाड़ कर रहे हैं। वहां किसी भी दूसरे देश के लोगों में सबसे बड़ा समुदाय भारतीय ही है, जो पढ़ा लिखा भी है और धनी भी। ऑस्ट्रेलिया के संघीय चुनाव के लिए भारतीय मतदाताओं का मूड जानने के लिए सर्वे कर रही एजेंसी ‘प्राइम टाइम’ के आखरी सर्वे की रिपोर्ट से साफ है कि लेबर पार्टी फिर सत्ता में आ रही है और उसके नेता एवं प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज के प्रति लोगों में विश्वास काफी बढ़ा है।
भारतीयों को लुभाने के लिए मोदी से दोस्ती का जिक्र
ऑस्ट्रेलिया में चुनाव पूर्व लगभग चार सप्ताह के दौरान सैकड़ों भारतीयों से मिलने के बाद भारतीय राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार कहते हैं कि यहां मतदाता के रूप में भारतीयों को काफी सम्मान से देखा जा रहा है। वे ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के लोगों में चुनावी सर्वे कर रही ‘प्राइम टाइम’ के निदेशक हैं। परिहार मानते हैं कि ऑस्ट्रोलिया में भारतीयों का बढ़ती संख्या ही यहां के राजनेताओं की दिलचस्पी की बड़ी वजह है, क्योंकि वे उनकी जीत में सहायक साबित हो रहे हैं। परिहार कहते हैं कि चुनाव लड़ रहे लगभग सभी उम्मीदवार भारतीयों को लुभाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी दोस्ती का जिक्र कर रहे हैं। पीएम मोदी के साथ पुरानी तस्वीरों शेयर कर रहे हैं और भारतीयों से मिलकर अपनी जीत पक्की करने की कोशिश कर रहे हैं।

भारतीय वोटों के लिए मंदिर-गुरुद्वारों के चक्कर
ऑस्ट्रेलिया में अर्ली-वोटिंग यानी मतदान-पूर्व-मतदान जारी है। ….. महीने पहले से ही लोगों ने वोट डालना शुरू भी कर दिया था। 3 मई को आखरी मतदान होना है और मतदान करना हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। भारतीय मूल के वोटरों को लुभाने के लिए राजनेताओं में एक तरह की होड़ मची हुई है। भारतीय वोटरों को लुभाने के लिए उम्मीदवार मंदिर-गुरुद्वारों के चक्कर भी लगा रहे हैं। लेबर पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी भी कई मंदिरों और गुरुद्वारों में जा चुके हैं। उन्होंने हाल ही में विभिन्न हिंदू संगठनों के नेताओं से भी मुलाकात की और भारत व भारतीय मूल के लोगों की जमकर तारीफ की। अन्य कई उम्मीदवारों ने भी भारतीय मेलों, समारोहों और उत्सवों में खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। मेलबर्न, एडिलेड, ब्रिसबेन और सिडनी आदि प्रमुख शहरों में दोनों मुख्य दलों, लेबर और लिबरल पार्टी के कई उम्मीदवार भारतीय मूल के उद्योगपतियों, प्रोफेशनल्स तथा बिजनेसमेन के साथ बैठकें कर चुके हैं। स्वामी नारायण संप्रदाय के सभी पंथ के मंदिरों, इस्कॉन मंदिरों, गुरुद्वारों तथा विभिन्न भारतीय धर्म गुरुओं के स्थलों में भी उम्मीदवारों का आना जाना रहा है।

अप्रवासी भारतीयों में नेताओं की बढ़ती दिलचस्पी
मेलबर्न में लंबे वक्त तक रहने के बाद राजस्थान में विधायक बने वाजिब अली कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों की अहमियत बढ़ने की एक बड़ी वजह यह भी है कि यहां का भारतीय समुदाय शिक्षित और धनी है, क्योंकि ज्यादातर प्रोफेशनल्स हैं। फिर ऑस्ट्रेलिया के भारत के साथ बेहतर राजनायिक संबंध हैं। भारत दुनिया की बड़ी ताकत है, और भारतीय यहां के विकास में भूमिका भी निभा रहे हैं। भारतीय समुदाय में यहां राजनेताओं की बढ़ती दिलचस्पी की एक और वजह बताते हुए वाजिब अली कहते हैं कि भारतीयों की संख्या तो बढ़ी ही है, साथ ही भारत के आप्रवास आर्थिक पायदान पर ऊपर की ओर बढ़ते प्रोफेशनल्स हैं। भारतीय आप्रवासी समुदाय में भी राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है, जिसका नतीजा है कि यहां की पार्टियों और उम्मीदवारों की उनमें ज्यादा दिलचस्पी हैं।

भारतीयों बड़ी संख्या ने उनकी अहमियत को बढ़ा दिया
भारतीय मूल के विमल गहलोत करीब डेढ़ दशक से ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हैं और कई राज्य और संघीय चुनाव देख चुके हैं। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट गहलोत कहते हैं कि भारतीय समुदाय ऑस्ट्रेलिया का दूसरा सबसे बड़ा आप्रवासी समुदाय बन गया है। ञस्ट्रेलिया में भारतीयों की इस दूसरी सबसे बड़ी संख्या ने भारतीयों की अहमियत को बढ़ा दिया है। मेलबर्न में लिबरल पार्टी के संसदीय उम्मीदवार सीए गहलोत को मिले और भारतीयों से उनके पक्ष में वोट करवाने में मदद की अपील की। सिडनी में विदेश सेवा प्रदाता दीपक पढ़ियार कहते हैं कि भारत में जन्मे और ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बन गए लोगों में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। सिडनी में दो दशक से रहने वाले सुरेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि यहां प्रत्येक नागरिक के लिए वोट देना अनिवार्य है।

राजनीतिक रूप से सक्षम हैं अप्रवासी भारतीय
राजस्थान के मेवात क्षेत्र के इंताज अली मेलबर्न में दो बार काउंसिलर रहे हैं, वे संसदीय चुनाव लड़ना चाह रहे थे। क्योंकि अब तक भारतीय समुदाय केवल नीतियां बनाने में सलाह देने वालों में शामिल रहा है। लेकिन ब्रिटिश संसद में पिछले साल चुने गए 24 भारतीय मूल के सांसदों और अप्रेल 2025 के अंत में संपन्न कनाड़ा के संसदीय चुनाव में निर्वाचित 22 भारतीय मूल के सांसदों के बाद और ऑस्ट्रेलिया में भी ज्यादातर भारतीय सोच रहे हैं कि अब वक्त आ गया है कि भारतीय समुदाय को नीति-निर्माण में भी हिस्सेदारी मिले ताजा आंकड़े कहते हैं कि वर्तमान में भारतीय मतदाता कुल 10.30 फीसदी हैं। सन 2021 में भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई लोगों की संख्या 7,10,000 पर पहुंच गई थी। दस साल पहले यानी 2011 में यह संख्या इसकी लगभग आधी यानी 3,73,000 ही हुआ करती थी। इस तरह भारतीयों ने आप्रवासी समुदायों के मामले में इंग्लैंड को छोड़कर बाकी सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है। इसीलिए, सभी पार्टियों के बीच भारतीय मूल के वोटरों को लेकर उत्साह लाजमी है।
-राकेश दुबे
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