Girija Vyas: नहीं रहीं डॉ गिरिजा व्यास। मेरे ख़्वाब जुदा, ख़्वाबों के अस्बाब जुदा जैसी लाइनें लिखने वाली कवयित्री और नेता डॉ. गिरिजा व्यास नहीं रहीं। मेरे दुश्मन तेरे दोस्त दोनों के अहबाब जुदा, तेरा मेरा साथ है यूँ जैसे सहरा से आब जुदा। लब से साग़र क्या मिलते महफ़िल के आदाब जुदा। सूना सूना दिल मेरा दरिया से है आब जुदा। यह लिखने वालीं कवयित्री उदासी छोड़ चली हैं।
सब हैं उस के क़ब्ज़े में, कोई यहाँ आज़ाद नहीं
कभी सियासी हालात में उन्होंने लिखा था : आँख में आँसू ठहरा है , दिल पर ग़म का पहरा है। इक दिन भर ही जाएगा, घाव जो दिल में गहरा है। मेरी चारों सम्त अभी रंज-ओ-अलम का सहरा है। ख़ौफ़ कहाँ मेरे दिल में ये सर्दी का लहरा है। मेरी बात पे क्यूँ चुप है क्या तू गूँगा बहरा है। वे यह महसूस कर कुछ तकलीफें दर्ज करके चली गईं! कभी अपनी खुद्दारी को आगे रखने वाली गिरिजा व्यास ने साफ लिखा था : इक तू ही बर्बाद नहीं, कोई यहाँ आबाद नहीं। मेरा दुख है मैं जानूँ, तुझ से तो फ़रियाद नहीं। ग़म की मारी दुनिया में, कौन है जो नाशाद नहीं। सब हैं उस के क़ब्ज़े में, कोई यहाँ आज़ाद नहीं। डर मत ऐ पंछी मुझ से, साथी हूँ सय्याद नहीं।
ज़ख़्मों को मेरे दिल के वो भरने नहीं देगा
वे सांसद रहीं, विधायक रहीं और राजस्थान पीसीसी की चीफ रहीं। पीसीसी की चेयरपर्सन रहते उन्होंने पूरे प्रदेश के दौरे किए और तूफानी बनी रहीं। वे पार्टी को सत्ता में नहीं ला सकीं, लेकिन यह कहने से नहीं चूकीं कि ख़ंजर को रग-ए-जाँ से गुज़रने नहीं देगा, वो शख़्स मुझे चैन से मरने नहीं देगा। फिर कोई नई आस वो दे जाएगा, दिल को टूटे हुए शीशे को बिखरने नहीं देगा। दिन ढलते निकल आएगा फिर याद का सूरज साया मिरे आँगन में उतरने नहीं देगा। गिरिजा अपने सियासी सर्किल में दीदी कहलाती थीं और खाली समय में गजलें लिखतीं और गुनगुनाती थीं। वे बहुत बेबाक थीं। प्रेम करती थीं, लड़ लेती थीं और कोई रूठता तो मान मनुहार भी कर लेतीं थीं। उनके भीतर अपने विरोधियों की तरह की कटुता नहीं थी। वे अपने भीतर एक दर्द रखती थीं और कहती थीं : हर शख़्स को मेहमान बना लेगा वो, लेकिन मुझ को कभी घर अपने ठहरने नहीं देगा। रक्खेगा न शाने पे मिरे हाथ वो अपना, ज़ख़्मों को मिरे दिल के वो भरने नहीं देगा।

मेरे पास तो सच्चाई है झूट-कपट से बंधी नहीं हूँ
गिरिजा एक साहसी नेता थीं। साफ कहती थीं : तोड़ सको तुम शाख़ से मुझ को, ऐसी तो मैं कली नहीं हूँ। रोक सको तुम मेरी राहें इतनी उथली नदी नहीं हूँ। वे कांग्रेस में बहुत छोटे से पद से राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन तक पहुंचीं और पूरी धमक के साथ राजनीति की। एक बार उन्होंने लिखा : मेरी बातें सीधी-सादी मक्कारी से भरे हुए तुम, मेरे पास तो सच्चाई है झूट-कपट से बंधी नहीं हूँ। बुने हैं मैं ने अपने सपने ख़ुद ही अपनी राह बनाई, राह से तुम भटका दो मुझ को नींद में ऐसी घिरी नहीं हूँ! वे एक ज़हीन शहीन नेता थीं। उनका जाना उदययुर के लिए बड़ी रिक्तता ले आया है। उदयपुर उनकी ताकत था। वे कहती रहीं : नील-गगन है मेरी ताक़त धरती मुझ को थामे रखती, कोई आँधी मुझे उड़ाए तिनकों की मैं बनी नहीं हूँ। तुम भी ज़ुल्म कहाँ तक करते मैं भीउन्हें कहाँ तक सहती तुम भी इतने बुरे नहीं हो मैं भी ऐसी भली नहीं हूँ!
तुम, वफ़ाओं का कभी सौदा न करना
गिरिजा से बात करके आनंद आता था। वे अंतरंगता में बहुत भीतर से पुकारती थीं। आम कार्यकताओं से उनका बहुत स्नेह था। उदयपुर का जो माधुर्य है, उदयपुर का जो नैसर्गिक पानी है, उसकी आब उनमें हमेशा रही। उनका यह संदेश कितना बेहतरीन है: किसी से ख़्वाब का चर्चा न करना, तमन्नाओं को बे-पर्दा न करना। ज़माना लाख बहकाए मगर तुम, वफ़ाओं का कभी सौदा न करना। ख़ताओं की सज़ा आख़िर मिलेगी, रुलाएगा उसे तौबा न करना। बिछड़ते वक़्त आँसू रोक लेना। तुम अपने आप को रुस्वा न करना। तुम्हें अच्छी तरह पहचानती हूँ, वफ़ा का मुझसे तुम वादा न करना>
-त्रिभुवन (लेखक राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं, उनकी ‘एक्स’ पोस्ट, जस की तस
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