IndiGo: भारत की घरेलू हवाई सेवाएं देश की विकास यात्रा का महत्वपूर्ण संकेत है। लेकिन दिसंबर 2025 ने यह भी दिखा दिया कि सरकार की थोड़ी-सी चूक भी पूरे देश की हवाई यातायात व्यवस्था को ठप कर सकती है। हाल में देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो द्वारा बड़े पैमाने पर उड़ानें निरस्त किए जाने से देश के लगभग हर प्रमुख हवाई अड्डों पर जो हाहाकार मचा, वह भारतीय विमानन प्रणाली की कमियों का बड़ा संकेत है। सरकार को समझना होगा कि केवल नियम बनाना काफी नहीं, उन्हें लागू कराने से पहले एयरलाइंस की तैयारी का उचित ऑडिट भी होना चाहिए। सरकार को यह भी समझना होगा कि सुरक्षा के नाम पर क्रू को आराम देने के लिए एयरलाइंस को क्रू की संख्या बढ़ानी होगी, क्रू की संख्या बढ़ाने पर अतिरिक्त खर्च लगेगा, अतिरिक्त खर्च को पूरा करने के लिए किराये बढ़ाने होंगे और सरकार अगर लोगों को सस्ती यात्रा कराना चाहती है, तो फिर एयरलाइंस के खर्चों की पूर्ति कैसे होगी, इसका भी रास्ता निकालना होगा।

हर हवाई अड्डे पर देश भर में अफरा-तफरी
घटना इतनी व्यापक रही कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता, चेन्नई जैसे व्यस्ततम हवाई अड्डों पर हजारों यात्री अचानक फंसे रह गए। कई दिन तक उड़ानों के लगातार रद्द होते रहने या देर से संचालन के कारण एयरपोर्ट टर्मिनलों में भीड़, तनाव और अनिश्चितता का माहौल बना रहा। यात्रियों में पर्यटक भी थे, कार्यालय-यात्रा करने वाले भी, परीक्षा देने जा रहे छात्र भी और इलाज के लिए जा रहे लोग भी—हर वर्ग इससे प्रभावित हुआ। टिकट रद्द होने के बाद रिफंड और रीबुकिंग के बार फिर से रद्दीकरण जैसी प्रक्रियाओं ने लोगों की परेशानी और बढ़ाई। जिन लोगों को किसी आवश्यक कार्य से यात्रा करनी थी, उन्हें भारी कीमतों पर दूसरी एयरलाइनों की उड़ानें खरीदनी पड़ीं। कई ने अपने कार्यक्रम बदल दिए, तो कुछ यात्रियों को रातभर हवाई अड्डों पर ही ठहरना पड़ा।
सरकारी आदेश से शुरू हुआ देश भर में संकट
इस हाहाकार के पीछे कई परतें हैं, लेकिन प्रमुख कारण नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) नियम बने, जिन्हें पायलटों की थकान और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया। नए मानकों के अनुसार सुरक्षा कारणों से पायलटों को अधिक आराम अवधि देना अनिवार्य किया गया, विशेषकर रात में उड़ान संचालन को लेकर। नियम तो समय पर लागू हुए, पर एयरलाइन कंपनियों की तैयारियां अधूरी थीं, यहीं से समस्या शुरू हुई। भारत में व्यापक पैमाने पर कम कीमतों पर यात्रियों को उड़ान सुविधाएं देने के कारण आय भी कम होने से एयरलाइंस में पायलटों की संख्या पहले ही सीमित है, और अचानक सरकारी आदेश से बढ़ी पायलटों के आराम की अवधि के कारण शेड्यूलिंग डगमगा गई। कई रूट्स पर पर्याप्त क्रू उपलब्ध नहीं रहा, और एयरलाइन को उड़ानें निरस्त करनी पड़ीं। यह वह स्थिति थी जो योजनाबद्ध संसाधन प्रबंधन से टाली जा सकती थी। संकट में एक और पहलू जुड़ा तकनीक का। कुछ विमान मॉडलों में सॉफ़्टवेयर अपडेट और निरीक्षण की आवश्यकता ने उड़ानों के लिए विमानों की उपलब्धता घटा दी। सर्दियों के भारी यात्री-भार और धुंध-प्रभावित समय सारिणी ने भी परिस्थिति को और जटिल बना दिया।
यात्रियों पर बहुआयामी असर, सारे परेशान
इस संकट ने दिखाया कि हवाई यात्रा सिर्फ सुविधाजनक विकल्प नहीं, बल्कि आज के दौर में कई लोगों और उद्योगों के लिए आवश्यक हो चुकी है। उड़ानों के अचानक रद्द होने लागत बढ़ाती है, योजनाएं बिगाड़ती है और आर्थिक व मानसिक तनाव बढ़ाती है। एक साथ बहुत बड़े पैमाने पर कैंसल हुए उड़ानों की वजह से देश भर में अलग अलग जगहों पर होने वाली व्यापारिक व सरकारी बैठकों में देरी, पर्यटकों की छुट्टियों का बिगड़ना, मेडिकल यात्राओं का बाधित होना, छात्रों की परीक्षाओं पर असर होने जैसी अनेक आपदाओं में अवसर चलाशती गिद्ध इकॉनोमी की शिकार अन्य एयरलाइन में यात्री टिकटों की बेतहाशा बढ़ी कीमतों आदि ने परेशनी को और भी बढ़ा दिया। इस हालात ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी एक बड़ी एयरलाइन की विफलता पूरे देश की यात्रा व्यवस्था को झटका दे सकती है।

पहले भी हुए हालात, लेकिन इस बार पैमाना बड़ा
भारत में मौसम, एयरस्पेस प्रतिबंध या तकनीकी खराबी के कारण उड़ानों के रद्द होने की घटनाएं नई नहीं हैं। लेकिन इस बार यह समस्या किसी एक-आध दिन की नहीं, बल्कि संपूर्ण ऑपरेशनल ढांचे में आई थकान, संसाधन कमी और बदलावों से उत्पन्न हुई—इसलिए इसका प्रभाव भी अभूतपूर्व रहा। विमानन विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संकट सिर्फ एक एयरलाइन की गलती नहीं, बल्कि तेज गति से विस्तार कर रहे क्षेत्र की एक सामूहिक चुनौती है, जहां मांग तो बढ़ रही है, लेकिन पायलट, इंजीनियरिंग, शेड्यूलिंग और नियामकीय तालमेल उतनी गति से विकसित नहीं हो पा रहे।
सब कुछ ठीक करने के लिए आगे क्या होना चाहिए
मजबूत बैक अप अर्थात फूलप्रूफ पायलट सिस्टम लागू होना चाहिए, जिसके लिए एयरलाइनों को ‘ओवर-ऑप्टिमाइज़्ड’ शेड्यूल बनाकर स्टाफ को हर मिनट निचोड़ने की बजाय पर्याप्त बैक-अप क्रू रखना होगा। लचीली और आधुनिक रोस्टरिंग तकनीक के तहत शेड्यूलिंग और आपातकालीन बैक-अप मॉडल अनिवार्य होने चाहिए। इसके साथ ही स्पष्ट और त्वरित यात्री संचार व्यवस्था को भी लागू करना होगा, ताकि अंतिम क्षण में उड़ान रद्द करने से होने वाली अव्यवस्थाओं को रोका जा सके। यात्रियों को पहले से हर संचार माध्यम से सूचित करना भी आवश्यक है। हालांकि नागरिक उड्डयन निदेशालय और मंत्रालय द्वारा सक्रिय मॉनिटरिंग भी जरूरी है।
वैकल्पिक यात्रा साधनों पर समानांतर निवेश जरूरी
देश में हाई-स्पीड रेल, बेहतर ट्रेन कनेक्टिविटी और बहु-माध्यम विकल्प विकसित किए बिना एयर ट्रैफिक पर अत्यधिक निर्भरता जोखिम उत्पन्न करती है। यह संकट भारतीय विमानन जगत के लिए एक चेतावनी है—तेजी से बढ़ता उद्योग यदि संतुलित तैयारी और संसाधनों के बिना आगे बढ़ेगा, तो यात्रियों पर उसका बोझ भारी पड़ेगा। अगर भारत को वैश्विक विमानन केंद्र बनना है, तो सुरक्षित, स्थिर और विश्वसनीय हवाई सेवाएँ अनिवार्य हैं। हवाई यात्रा सिर्फ उड़ान नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की योजनाओं, भावनाओं और अवसरों का आधार है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
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आकांक्षा कुमारी
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