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Home»देश-प्रदेश»Ram Mandir: रामलला की प्रतिष्ठा से दूरी, कांग्रेस की क्या मजबूरी? हिंदी पट्टी में नुकसान तय है!
देश-प्रदेश 6 Mins Read

Ram Mandir: रामलला की प्रतिष्ठा से दूरी, कांग्रेस की क्या मजबूरी? हिंदी पट्टी में नुकसान तय है!

Prime Time BharatBy Prime Time BharatJanuary 20, 2024No Comments
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          • Ram Mandir: Report / Niranjan Parihar
  • Ram Mandir का कांग्रेस ने न्यौता ठुकराया, फिर भी जा रहे है नेता
  • तो क्या राहुल के मुताबिक खड़गे, सोनिया और अधीर मंदिर के समर्थन में नहीं
  • कांग्रेस की गलती से हिंदी पट्टी से  पूरी तरह से सफाये का इंतजाम
  • मुसलमान कौन सा शत प्रतिशत कांग्रेस के साथ खड़ा रहता है!
          • -निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
Ram Mandir: Report / Niranjan Parihar

अगली 22 जनवरी को अयोध्या में (Ayodhya) रामलला के भव्य राम मंदिर (Ram Mandir) के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल होने का न्यौता ठुकरा कर कांग्रेस (Congress) ने अपना नुकसान कर लिया है। हिंदी पट्टी में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है और पता नहीं लाभ मिलता कि नहीं मिलता, लेकिन फिर भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से लाभ की संभावनाओं को भी सीधे सीधे खतरे में डाल दिया है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट (Ram Janma Bhoomi) की ओर से कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं, मलिल्कार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) , सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और अधीर रंजन चौधरी को राम लला (Ramlalaa) के पावन मंदिर की प्रतिष्ठा समारोह में आने का निमंत्रण दिया गया था। लेकिन कांग्रेस ने यह फैसला किया है कि उसके जिन तीन नेताओं को निमंत्रण मिला है, वे तीनों अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएंगे। बाद में राहुल गांधी ने कोहिमा में कहा कि धर्म बिल्कुल निजी मामला है और अगर कांग्रेस कोई नेता अयोध्या जाना चाहता है तो उस पर कोई रोक नहीं होगी। ऐसे में लगने लगा है कि कांग्रेस अपने आप ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य आयोजन के विरोध में खड़ी हो गई है।

RamMandir Congress PrimeTimeBharat 1
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Ram Mandir का कांग्रेस ने न्यौता ठुकराया, फिर भी जा रहे है नेता

उल्लेखनीय है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर लगभग सभी बड़े नेताओं को राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह में आने का निमंत्रण दिया गया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिल्कार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को न्यौता मिला था। इस बारे में पार्टी के नेताओं से कई बार अधिकारिक रूप से पूछे जाने पर कांग्रेस बार बार केवल यही कहती रही कि उसने फैसला नहीं किया है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा था कहा कि कांग्रेस जल्दी ही फैसला करेगी। लेकिन निमंत्रण मिलने के कई दिनों बाद 11 जनवरी को फैसला लेकर कहा गया कि कांग्रेस राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएगी। मगर, ज्ञात रहे कि उसके कुछ नेता, जिनको व्यक्तिगत निमंत्रण मिला है, वे राम दिर प्रतिष्ठा महोत्सव में जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि अयोध्या जाएंगे, क्योंकि यह उनके पिता दिवंगत और दिग्गज कांग्रेसी नेता वीरभद्र सिंह की इच्छा थी। उनकी माता प्रतिभासिंह हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। प्रतिभा सिंह ने इस निमंत्रण पर खुशी व्यक्त की है और भगवान राम का मंदिर बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार भी जताया है। उन्होंने कहा है कि हिमाचल में 90 फीसदी हिंदू हैं, राम सबकी आस्था के केंद्र हैं और उनके पति राजा वीरभद्र सिंह भी चाहते थे कि राम मंदिर बने। इसी तरह से यूपी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लखीमपुर खीरी से संसद सदस्य रहे निर्मल खत्री ने भी निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और कहा है कि वे अयोध्या जाएंगे। खत्री की तरह ही उत्तर प्रदेश के कुछ नेता भी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में हिस्सा लेने अयोध्या पहुंच रहे पहुंच रहे हैं। तो, कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का इस तरह से न्यौता ठुकराने का कोई मतलब ही नहीं रहा।

तो क्या राहुल के मुताबिक खड़गे, सोनिया और अधीर मंदिर के समर्थन में नहीं

राजनीति के जानकार मानते हैं कि प्रतिष्ठा महोत्सव का निमंत्रण मिलने के तत्काल बाद पहले दिन ही स्वीकार करने का सहर्ष ऐलान कर लेती, और भले ही बाद में नहीं भी जाती, तो भी कांग्रेस को नुकसान कम होता। लेकिन एक तो राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के निमंत्रण पर फैसला बहुत बाद में लिया, दूसरा लिया भी तो नहीं जाने का फैसला लिया, इससे अपना बड़ा नुकसान कर लिया। फिर राहुल गांधी ने कह भी दिया कि जो जाना चाहते हं, वे जा सकते है, क्योंकि यह निहायत निजी मामला है। मतलब, एक तरह से यह राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन निजी तौर पर राम मंदिर के समर्थन में नहीं है। जानकार बताते हैं कि कांग्रेस को अपना मुसलमान वोट खोने का डर है, उसी कारण उसने राम मंदिर प्रतिष्ठा महोत्सव में जाने का न्यौता ठुकराया है। लेकिन वे यह भी मानते हैं कि न जाकर भी तो हिंदू वोटों को नुकसान किया है, उसकी भरपाई कहां से होगी।

कांग्रेस की गलती से हिंदी पट्टी से  पूरी तरह से सफाये का इंतजाम

कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के जानकार मानते हैं कि कांग्रेस की इस देरी का बड़ा नुकसान होगा। बड़े नेताओं को सलाह मिली थी कि इसमें क्या फैसला करना था? फैसले में देरी करके कांग्रेस ने फिर वही गलती की, जो राजीव गांधी ने की थी। मंदिर को ताले भी खुलवा दिए, लेकिन क्रंडिट भी नहीं ले सके। एक समुदाय को संतुष्ट करने के लिए कांग्रेस के नेता राजीव गांधी ने ताले खुलवाने का फैसला किया था, तो अब दूसरे समुदाय को संतुष्ट करने के लिए राजीव गांधी के उत्तराधिकारियों ने मंदिर की प्रतिष्ठा में न जाने का फैसला किया है। इससे दोनों तरफ उसका नुकसान होगा। इस तरह राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं के अयोध्या जाने पर लगी अघोषित रोक हटा दी है। तो, ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस आखिर चाहती क्या है। हालात साफ है कि राम मंदिर के मामले में कांग्रेस की गलती ने हिंदी पट्टी से अपने पूरी तरह से सफाये का इंतजाम कर लिया है। कांग्रेस को इस बात पर गहरे चिंतन करना चाहिए कि वह कोई बदरूद्दीन अजमल या असदुद्दीन ओवैसी की तरह मुसलमानों की राजनीति नहीं कर सकती है।

मुसलमान कौन सा शत प्रतिशत कांग्रेस के साथ खड़ा रहता है!

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, मल्लिकार्जिन खड़गे और अधीर रंजन को आगे बढ़ कर न्यौता स्वीकार कर लेना चाहिए था, रामलला के कार्यक्रम में भले ही उनको सबसे पीछे बैठाया जाता तो भी अयोध्या में जाकर वहां बैठना चाहिए था और प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के दर्शन भी करने चाहिए थे। फिर, अगर कांग्रेस के इन नेताओं के ऐसा करने से मुसलमान अगर नाराज भी हो जाते, तो देश को यह तो समझ लेमें आ ही रहा है कि मुसलमान कांग्रेस से नाराज होने का बहाना खोज रहे थे और उनको इस देश की समावेशी संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। फिर वैसे भी मुसलमान कौनसा शत प्रतिशत कांग्रेस के साथ खड़ा रहता है। वह तो, जहां कांग्रेस और अजमल बदरुद्दीन की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट अर्थात एआईयूडीएफ या फिर कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दोनों के उम्मीदवारआमने सामने होते हैं, वहां कांग्रेस को छोड़ अपने समाज की प्रीट के साथ ही खड़ा होता है। ऐसे में कांग्रेस मुसलमनों की चिंता करके भी क्या पा लेगी, यह सबसे बड़ा सवाल है।

-निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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