Sharad Pawar: इंडिया गठबंधन के नेतृत्व के बहाने कांग्रेस पर शरद पवार के तेवर हमलावर लग रहे हैं। इसके साथ ही महाराष्ट्र में कांग्रेस से समाजवादी पार्टी के टकराव के बाद अब पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस बीच की दरार में भी दूरियां बढ़ने की संभावनाएं बन रही हैं। पवार जानते हैं कि महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद तो वैसे भी किसी को नहीं मिल रहा, जिससे कि विपक्ष के नाते ही सही कांग्रेस का उनको समर्थन करना पड़े। इसी कारण इंडिया गठबंधन की अगुवाई के मामले में शरद पवार का खुलकर ममता बनर्जी पर भरोसा जताने को कांग्रेस नेतृत्व को कमजोर दिखाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। पवार के बयान को महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के लिए बड़ा झटका और राहुल गांधी की राजनीतिक हैसियत के खिलाफ असली खेल की शुरूआत माना जा रहा है।
शरद पवार के बयान के कई राजनीतिक मायने
इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस प्रमुख शरद पवार ने ममता बनर्जी का समर्थन किया है। उनका कहना है कि ममता में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की क्षमता है, वे आक्रामक हैं और उन्होंने कई लोगों को खड़ा किया है। शरद पवार के इस बयान के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रकाशित एक समाचार में राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार बताते है कि शरद पवार ने राहुल गांधी को कभी अपना नेता नहीं माना, और वे कभी भी नहीं चाहेंगे कि कभी राहुल के नेतृत्व में उन्हें चुनाव लड़ना पड़े। इसलिए इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए ममता बनर्जी का साथ देना उनके लिए राजनीतिक रूप से जरूरी है। ममता बनर्जी ने हाल ही में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने की इच्छा जताई थी, जिस पर समाजवादी पार्टी ने समर्थन दिया था, जबकि कांग्रेस ने राहुल गांधी को गठबंधन का सबसे उपयुक्त नेता बताया था। इसीलिए बीजेपी नेता प्रवीण दरेकर ने कहा है कि ममता बनर्जी के बहाने शरद पवार वह मैसेज देना चाहते हैं कि राहुल गांधी का नेतृत्व अक्षम है और अब कांग्रेस विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने में असमर्थ है।
सपा का महाराष्ट्र में कांग्रेस से दूरी का ऐलान
राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन में साथी समाजवादी पार्टी महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी से पहले ही अलग हो गई है। समाजवादी पार्टी के नेता अबू आसिम आजमी ने दो दिन पहले ही कहा है कि कांग्रेस और एनसीपी दोनों धर्म निरपेक्ष होने के बावजूद शिवसेना (उद्धव) के साथ हैं, जो बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने वालों की खुलेआम प्रशंसा करती है, तो हमें उनके साथ क्यों रहना चाहिए। महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार कहते हैं संदीप सोनवलकर कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना कर चुके विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी के लिए समाजवादी पार्टी के इस फैसले को बड़ा झटका माना जा रहा है। इसी बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस के मुखिया शरद पवार ने भी कांग्रेस पर करारा वार करके कांग्रेस से दूरी बनाने के संकेत दे दिए हैं। राजनीतिक विश्लेषक निरंजन परिहार भी मानते हैं कि यूपीए में इससे कांग्रेस की ताकत कम होगी और राहुल गांधी की राजनीतिक गंभीरता पर भी सवाल खड़े होंगे।
नेता प्रतिपक्ष का पद भी नहीं, तो क्या साथ रहना
उधर, महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति को लेकर भी शरद पवार किसी मुगालते में नहीं है। उनका साफ मानना है कि महाविकास अघाड़ी के घटक दल इस बात पर जोर दे ही नहीं दे सकते कि उन्हें यह पद मिले, क्योंकि विपक्ष के किसी भी दल के पास विपक्ष का नेता पद लेने के लिए आवश्यक संख्याबल नहीं है। इस बार के चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति को विधानसभा की 288 सीटों में से 232 पर जीत मिली है जबकि महाविकास आघाड़ी गठबंधन ने महज 46 सीटों पर जीत दर्ज की है। इसमें से भी शिवसेना (उद्धव) को 20, कांग्रेस को 16 और राष्ट्रवादी कांग्रेस को 10 सीटें ही मिली है। इनमें से किसी भी पार्टी के पास विधानसभा की कुल सदस्य संख्या 288 में से 10 फीसदी यानी 28-29 सीटें नहीं है। महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार एडवोकेट संदीप शुक्ला कहते हैं कि शरद पवार को पता है कि जब कांग्रेस किसी भी मायने में राजनीतिक रूप से सक्षम नहीं है, और उसे कमजोर साबित करके ही प्रदेश में खुद को ताकतवर दिखाया जा सकता है। शुक्ला मानते हैं कि पवार इसीलिए कांग्रेस के किसी भी नेता के बदले ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन के नेतृत्व के लिए ज्यादा उपयोगी मान रहे हैं।
-राकेश दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
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