Prashant Kishor: फिल्म निर्माता और ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ बनाकर अधिक चर्चा में आए विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) ने हाल ही पॉलिटिक स्ट्रेटेजिस्ट और टेक्टिशियन प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) से पत्रकार करण थापर (Karan Thapar) कुछ सटीक बातें लिखी हैं। पंजाबी में एक कहावत है, कहणा धी नूं, सुनानां नौं नूं। यानी कहना तो बेटी को; लेकिन सुनाना बहू को। कुछ ऐसा ही मामला मुझे विवेक अग्निहोत्री के ट्वीट में लगा। विवेक का कहना है, मीडिया से बहुत अधिक बातें करना अंततः अपने पतन को सुनिश्चित करना है। सबसे पहले, आप अतीत में बोले गए सभी झूठों को याद नहीं रख सकते। दूसरे, मीडिया (Media) का एकमात्र नियम पुराने नायकों को किसी तरह नष्ट करना और नए नायकों को पैदा करना है। लेकिन क्या विवेक ने यह सिर्फ़ प्रशांत किशोर के संदर्भ में कहा है या उनका इशारा किसी और की तरफ भी है? आगे देखिए, वे कहते हैं – आप हीरो तभी बन सकते हैं जब आप उच्च उपलब्धि हासिल करने वाले हों या आपके पास तर्क, व्यक्तिगत आकर्षण और भावनात्मक जुड़ाव हो। पीके के पास केवल इधर-उधर से जुटाया डेटा, अर्जित अहंकार और एक बहुत ख़तरनाक़ दंभ है, जिसके केंद्र में सिर्फ़ और सिर्फ़ केवल मैं, मेरा और मुझ पर है। एक चतुर पत्रकार के लिए इस दंभ को नष्ट करना बहुत आसान है।” क्या यह सिर्फ़ पीके पर लागू होता है या इस सहज सी बात के भीतर की तीव्रता आपको कहीं और ले जा रही है? सोचिए कि विवेक सिर्फ़ पीके के संबंध और संदर्भ में कह रहे हैं या पीके वाले ये कुछ किसी और में और भी मुखरता से दिखाई देते हैं। पीके काफ़ी बार मैं, मैं और मैं पर फोकस करते हैं; लेकिन क्या वाक़ई सिर्फ़ पीके की मैं ही मैं है? और किसी की मैं नहीं है?
कौन है, जो दोस्ताना पिचों पर खेल रहा है?
विवेक ने रग तो दु:खने वाली ही पकड़ी है; लेकिन वह पीके की रग है या किसी और की है? मैं पीके को बहुत सुनता हूँ; लेकिन पीके शायद कभी नहीं कहते कि प्रशांत किशोर यह कहते हैं या प्रशांत किशोर वह कहते हैं! कहता तो है कोई, लेकिन वह प्रशांत किशोर नहीं है। प्रशांत किशोर का ईगो बहुत ही बेबी ईगो है। जायंट ईगो तो कहीं और है और वह बहुत दूर से दिखाई देता है। कश्मीर फ़ाइल्स के भीतर से भी और कश्मीर घाटी के किसी गहन गह्वर से भी। विवेक भैया से वैसे यह उम्मीद प्रशांत किशोर को भी नहीं रही होगी कि वे इस तरह से ट्वीट करेंगे; लेकिन कई बार घटनाएं न चाहते हुए भी मनुष्य के विवेक के किसी अंदरूनी कोने में स्पंदन कर देती हैं। उन्हें बाहर आने के लिए कोई सहारा चाहिए। विवेक भैया के विवेक को वह सारा प्रशांत किशोर के रूप में मिल गया है। विवेक प्रशांत किशोर से करण थापर वाले विडियो का लिंक शेयर करके कह रहे हैं – इस वीडियो में करण थापर जैसे अहंकारी एंकर के बावजूद पीके को हकलाते हुए और अपना आपा खोते हुए पाया गया है; क्योंकि अहंकार और झूठ एक आत्म-विनाशकारी मिश्रण है। अब तक पीके दोस्ताना मैदानों पर खेलते रहे हैं। वह पहली बार किसी अपरिचित पिच पर खेले और इसलिए परिणाम!” तो मित्रों! कौन है, जो बार-बार दोस्ताना पिचों पर खेल रहा है? कौन है, जिसने अपने निरंतर झूठों और अहंकार का एक आत्मविनाशकारी मिश्रण तैयार कर लिया है? और कौन है, जो बार-बार विशालकाय दोस्ताना और मैदानों पर खेल रहा है? विवेक भैया चेतावनी दे रहे हैं या हमला कर रहे हैं? या अपने भीतर के सच को बाहर ला रहे हैं? या वे इस बात से डर गए हैं कि लोकसभा चुनाव का सातवां चरण आते-आते कहीं झूठ और अहंकार का निर्झर किसी आत्मविनाशकारी क्षण में करण थापर को ही न बुला ले!
फंस जाओगे, ज़्यादा साक्षात्कार मत दो
विवेक अग्निहोत्री लिखते हैं, कपिल सिब्बल के साथ एक पॉडकास्ट हुआ था, जिसमें पॉडकास्टर ने सिब्बल को नष्ट करने के इरादे से शुरुआत की थी; लेकिन वह आख़िर तक लड़खड़ाती, हक-हक हकलाती रही और ख़ुद ब ख़ुद ही बेनक़ाब हो गई। विवेक का तर्क बहुत अच्छा है। वे कहते हैं, ऐसा इसलिए हुआ; क्योंकि कपिल सिब्बल शांत और बुद्धिमान् थे। साथ ही, वह ज़्यादा साक्षात्कार नहीं देते। लिहाजा, उनके पास कहने के लिए कुछ नया था; जबकि पीके ने स्पॉट-लाइट में रहना चुना और वह हर जगह अपना आधा सच और आधा झूठ दोहरा रहो था, उसका अपने ही जाल में फंसना तय था। तो विवेक अग्निहोत्री के कथन का निहितार्थ क्या यह नहीं है कि आप फंस जाओगे। ज़्यादा साक्षात्कार मत दो। आप ये क्या कर रहे हो? आप कम इंटरव्यू दोगे तो कहने को कुछ नया होगा; लेकिन पीके की तरह स्पॉट लाइट में रहना ही चुना है और अपना आधा सच और आधा झूठ ही दुहराना है तो आपका जाल में फंसना भी तय है।
बुद्धिमान व समझदार लोग मीडिया से दूर
कई बार इन्सान किसी का भला सोचता है और कुछ कहना भी चाहता है; लेकिन वह कहने वाला इतना दूर होता है या उस तक पहुँचना इतना मुश्किल होता है कि फिर किसी पीके का सहारा ही बचता है या फिर कुछ पीके ही कहो! विवेक अग्निहोत्री ने अपने ट्वीट का सारांश बहुत शानदार किया है। वे कहते हैं, “अब आप जानते हैं कि सभी अच्छे, बुद्धिमान् और समझदार लोगों ने मीडिया से बातचीत करना क्यों बंद कर दिया है। केवल बदमाश, भ्रष्ट और हताश लोग ही भारतीय मीडिया से बात करते हैं।” आख़िरी पंक्ति से पहले विवेक ने एक वाक्यांश लिखा था, जो मैंने एक लम्हे के लिए वहाँ से हटा दिया है। वह वाक्यांश है – जब तक आप राजनेता नहीं हैं या किसी उत्पाद का प्रचार नहीं कर रहे हैं। लेकिन प्रशांत किशोर तो अब राजनेता भी हैं और वे अपने उत्पाद का प्रचार भी कर रहे हैं। उनसे जब भी पूछा जाता है कि आपके पास पैसा कहां से आ रहा है तो वे बार-बार कह ही रहे हैं कि उनकी कंपनी से आ रहा है और सबको पता है कि उनकी कंपनी क्या-क्या काम करती है। तो विवेक जी के कथन का सारांश यह है कि आजकल सभी अच्छे, बुद्धिमान और समझदार लोगों ने मीडिया से बातचीत करना बंद कर दिया है। केवल बदमाश, भ्रष्ट और हताश लोग ही भारतीय मीडिया से बात करते हैं। विवेक जी ने भारतीय राजनीति के इन दिनों के सच को सबके सामने रख दिया है। वे भले पीके के सहारे कहें और ज़रा सावधानी या अग्रिम ज़मानत के रूप में कुछ वाक्यांश जैसे किंतु – परंतु या जब तक लगाकर कुछ कहें, कह तो सच ही रहे हैं कि केवल बदमाश, भ्रष्ट और हताश लोग ही भारतीय मीडिया से सबसे ज़्यादा बात करते हैं। ऐसा करना किसी अच्छे, समझदार और बुद्धिमान् इन्सान की पहचान तो नहीं! विवेक के इस जागृत विवेक और उनकी अग्नि को प्रज्वलित होने के लिए प्रणाम, ताकि एक नए होत्र की ओर हम बढ़ सकें!
-वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन की ‘एक्स’ वॉल के साभार
(एक्स, जो पहले ट्विटर हुआ करता था। )
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