‘प्राइम टाइम’ की शुरुआत पर कोई बड़ी बात नहीं, मगर यह कहना जरूरी है कि इसके उद्भव के लिए हमें एक बड़ी मजबूरी में सोचना पड़ा। मजबूरी यही कि हमारे हिंदुस्तान में वास्तविक अर्थों में जैसी होनी चाहिए, वैसी पत्रकारिता का मार्ग तेजी से सिकुड़ रहा है। ऐसे में हम या तो मौन होकर, अपने आस पास जो सब कुछ घट रहा है, उसके साक्षी बने बैठे रहें, या कुछ सार्थक करने के संघर्ष में समाप्त हो जाएं, और या फिर एक बार विजेता होने के गर्व से स्वयं को गौरवान्वित करने के प्रयास में कई कई बार हारने के दंश में अपना जीवन गंवा दें। ये तीनों ही काम हम नहीं कर सकते थे, इसीलिए स्वयं को सार्वजनिकता के संकल्प के अवसर के रूप में अपने टाइम को सबका ‘प्राइम टाइम’ बनाने का निश्चय किया।
आप जानते हैं कि मीडिया अब मंडी है। खबरों की मंडी, सूचनाओं की मंडी, प्रोपेगंडा की मंडी और भी ना जाने क्या किस किस तरह के सौदों की मंडी। और मंडी का शाश्वत सत्य यही है कि दलाल के बिना वहां कोई सौदा नहीं होता। हर काम का माध्यम दलाल और हर दलाल के अपने कमाल। तो, दलाली के इस दावानल में कुछ भी नहीं बचता, सब जलकर भस्म हो जाता है। सच्चाई, सरोकार, नैतिकता, मूल्य, आशा, विश्वास, आस्था और यहां तक कि भावनाएं भी, सब कुछ भस्म, जो कि हो भी रहा है। मीडिया की इस मंडी में दहक रहे दलाली के दानावल के बीच शीतल जल के छींटों की तासीर आप ‘प्राइम टाइम’ में तलाश सकते हैं। माना कि झूठ की ज्वाला के जाज्वल्यमान जंगल में कुछ भी नहीं बचता। लेकिन सत्य तो सदा अटल है, कोई आग उसे भस्मिभूत नहीं कर सकती। अतः विश्वास कीजिए, ‘प्राइम टाइम’ आशा की उसी किरण के उजाले की आभा से आपके आकाश को आलोकित करने का माध्यम बना रहेगा।
आज के दौर में उपजी अनेकानेक मीडिया बेवसाइट्स की भीड़ में एक स्वतंत्र हिंदी समाचार पोर्टल के रूप में primetimebharat.com औरों से बहुत अलग है। अलग इस मायने में कि इसमें सामान्य समाचारों, सूचनाओं और के लिए कोई जगह नहीं है। जो कुछ है, वह सब हर एक के लिए ‘कुछ खास’ है। खास खबरें, विशेष लेख और हिंदी के विशिष्ट लेखकों के विचार, वक्तव्य तथा तीखे तेवर वाले तीर भी हैं। इस सबके अलावा, कुछ उसी किस्म की जानकारी भी है जैसी आपका मन चाहता है – जरा हट के। हम जानते हैं कि ख़बर क्या होती है, क्यों होती है और किस किस शक्ल में आजकल खबरें परोसी जाती हैं और यह भी कि इस तरह की खबरें परोसने वाले किस – किस कला में पारंगत होते हैं। जानते यह भी हैं कि किस तरह की खबर से खबरदार रहना है और किस खबर से समाज को कैसे खबरदार करना है। यह भी कि समय का मोल हमारे जीवन में क्या है, और समय का समाज से क्या सरोकार होना चाहिए। यह समझ इसलिए है, क्योंकि यह प्रभाष जोशी के उन पहरुओं का निर्मित मंच है जिन्हें, भले ही मीडिया मंडी बन गया है, लेकिन प्रभाष जी की जलाई मशाल में अब भी आशाओं का आकाश नज़र आता है। भरोसा रखिए, आपको इस मंच पर केवल खबर मिलेगी, बेलाग खबर, बेलौस खबर और बेशकीमती खबर।
माना कि पत्रकारिता अब मीडिया है, और हम भी मीडिया की मंडी में खड़े हैं। लेकिन मीडिय़ा का उचित अर्थ है माध्यम। बस, उस माध्यम की शुचिता बनी रहे, माध्यम पर विश्वास की छाया बनी रहे और माध्यम का रूप – स्वरूप आपकी आशाओं के अनुरूप बना रहे, इसी प्रयास में ‘प्राइम टाइम’ सदा रहेगा, यह भरोसा रखियेगा। भरासा इसलिए, क्योंकि ‘प्राइम टाइम’ की नींव में वे विश्वसनीय लोग हैं, जिन्होंने बीते वर्षों में देश के पुरस्कार विजेता संस्थानों को स्थापित करने में अपना योगदान दिया है और पुरस्कार प्राप्त करने वाले पत्रकारों को गढ़ा, लेकिन कभी स्वयं पुरस्कार प्राप्ति का परम प्रयास नहीं किया। हां, एक और खास बात, ‘प्राइम टाइम’ न तो धन के लालच में किसी के समक्ष स्वयं को समर्पित कर देने वाली कंपनी है, न ही हम इस तरह की रटी-रटाई शब्दावली से अपने लिए सच्चाई के झूठे कवच का निर्माण करने वाले लोग हैं। बल्कि ‘प्राइम टाइम’ इसलिए है क्योंकि इसके संस्थापक स्वयं की निगाह में ‘कुछ खास’ हैं, वे अपने काम को बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण मानने वालों में से हैं, और समझते हैं कि जीवन के हर पहलू का जब बाजारीकरण हो रहा हो, तो भी बाजार बनते जीवन में स्वयं को कैसे बचाए रखा जा सकता है। इसीलिए आज मंडी बन चुके मीडिया के बाजार में भी वे ‘कुछ खास’ के रूप में पहचाने जाते हैं। इस खासियत का ही कमाल है कि बदलती पत्रकारिता के दौर में ‘प्राइम टाइम’ में बहुत कुछ बदला बदला सा मिलेगा और जो मिलेगा, वह विश्सनीय तथा विकव्पविहीन मिलेगा। मगर, यह सब हमसे तभी होगा, जब आप स्वयं भी ऐसा चाहेंगे। अतः आपसे विनती कि साथ चलिए। क्योंकि टाइम तो किसी के लिए रुकेगा नहीं, वह तो सतत चलता रहेगा। इसीलिए, अपने टाइम को ‘प्राइम टाइम’ बनाते हैं, चलिए चलते हैं….!