Sachin Pilot: सचिन पायलट अब अखिल भारतीय कांग्रेस (Congress) कमेटी के महासचिव बन गए हैं और बिना मांगे उनको मिला यह राष्ट्रीय नेता होने प्रमाण पत्र इतना अटपटा और हास्यास्पद है कि उस पर सिर्फ अवाक हुआ जा सकता है। अवाक तो राजस्थान (Rajasthan) के लाखों कांग्रेसी हैं, क्योंकि पायलट तो राजस्थान में ही रहकर कांग्रेस को मजबूत बनाना चाह रहे थे, लेकिन अब पायलट छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कांग्रेस को मजबूत करेंगे, जो जयपुर से 1223 किलोमीटर हैं और अगर वे कार से जाना भी चाहें, तो गूगल मैप के अनुसार इस दूरी का पार करने में उनको 22 घंटे 56 मिनट लगेंगे। दूरी बहुत है और इसी दूरी के बहाने कांग्रेस में पायलट विरोधी उनको राजस्थान से दूर करने में सफल हो गए हैं। जबकि पायलट राजस्थान में ही रहकर पार्टी के लिए काम करना चाहते थे। हालांकि, सचिन पायलट (Sachin Pilot) राजस्थान में क्या ‘काम’ कर रहे थे, यह उनके विरोधियों ने पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के जरिए सार्जनिक तौर पर कांग्रेस आलाकमान को बता दिया था कि उन्हीं के कहवने पर गुर्जरों ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया, वरना सरकार कांग्रेस की बही बनती।
राजस्थान में रोजमर्रा की दखल और खींचतान
अब, जब कांग्रेस (Congress) महासचिव के रूप में सचिन पायलट (Sachin Pilot) भले ही राष्ट्रीय नेता बना दिए गए हैं, लेकिन उनके सबसे ज्यादा समर्थक राजस्थान में ही हैं, उनकी खुद की राजनीतिक जमीन भी राजस्थान है और उनका दिल भी राजस्थान में ही रमता है। आखिर वे लगातार 5 साल तक अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को हटाकर राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने की हसरत पाले हुए रहे। राजस्थान में पायलट समर्थक हर्षित हैं कि उनके नेता को पार्टी में राष्ट्रीय स्तर का पद मिल गया है और अब वे राहुल गांधी व प्रियंका वाड्रा से सीधे आसानी से मिल सकेंगे, लेकिन विरोधी इस बात से खुश है कि राजस्थान में रोजमर्रा की दखल और खींचतान की असली जड़ को उखाड़कर छत्तीसगढ़ भेज दिया गया है। राजस्थान (Rajasthan) की राजनीति में अब कांग्रेस को साफ तौर पर यह लग रहा है कि पायलट अगर दिल से काम करते और गुर्जर वोट कांग्रेस के साथ रहता, तो फिर सरकार बन जाती। लेकिन पायलट ने दगा दे दिया। अब उन्हीं सचिन पायलट को राजस्थान से बहुत दूर छत्तीसगढ़ भेज दिया गया है।
Sachin Pilot कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार !
राजस्थान (Rajasthan) की राजनीति के जानकार कांग्रेस (Congress) की इस ताजा तस्वीर में कुछ और देख रहे हैं। क्योंकि सचिन पायलट (Sachin Pilot) राजस्थान से बाहर जाने को तैयार नहीं थे, वे कहते रहे कि यहां के लोगों से मिला समर्थन मेरे लिए किसी भी पद से बड़ा है और यहां के लोग ही मेरे लिए सब कुछ हैं। वे सूबे में ही सक्रिय रहकर कांग्रेस को मजबूत बनाने की बात करते रहे। लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उस हार का ठीकरा पायलट के सर पर फोड़ते हुए कहा था कि उन्हीं के कहने से गुर्जरों ने कांग्रेस को 1 प्रतिशत भी वोट नहीं दिया और पार्टी हार गई। कोई नहीं जानता कि इसी वजह से पायलट को राजस्थान से वाया दिल्ली छत्तीसगढ़ भेज दिया गया है। लेकिन यह सभी जान रहे हैं कि अब पायलट का राजस्थान की राजनीति में सीधा दखल कम हो जाएगा। क्योंकि अब जो भी प्रदेश अध्यक्ष रहेगा, या बनेगा और जिसे विपक्ष के नेता की कमान मिलेगी, उस पर पायलट की धाक नहीं चल सकेगी। जबकि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) तो राजस्थान में ही रहेंगे।
राजस्थान से जाना ही नहीं चाहते थे पायलट
राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विजय विद्रोही (Vijay Vidrohi) कहते हैं कि सचिन पायलट (Sachin Pilot) तो सदा ही कहते रहे हैं कि वे राजस्थान छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे, यहां की जनता के बीच ही रहेंगे। तो लग रहा था कि राजस्थान (Rajasthan) में प्रदेश कांग्रेस या फिर विपक्ष के नेता की कमान उनको मिलेगी, लेकिन कांग्रेस (Congress) गजब करती है, जब फैसले लेने होते हैं तो वह नहीं लेती और जब जल्दी करनी होती है, तो मामले हाशिये पर सरका देती है। विद्रोही कहते हैं कि ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पायलट को राजस्थान के बाहर भेजकर नई टीम बनाकर कांग्रेस चाहती क्या है। कांग्रेस का पास तो क्या, बीजेपी के पास भी राजस्थान में पायलट जैसा 46 साल का कोई युवा चेहरा नहीं है। फिर भी उनको राजस्थान से बाहर भेज दिया गया है। विद्रोही का मानना है कि किसी दूसरे प्रदेश का प्रभारी अपने गृह राज्य में सीधे कुछ भी करना आसान नहीं होता। विद्रोही मानते हैं कि कांग्रेस आलाकमान यानी मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी दोनों ही अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को नाराज नहीं करना चाहते। इसीलिए फिलहाल पायलट को प्रदेश में कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है। लेकिन आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता।
विधायक के नाते नाता बना रहेगा पायलट का
अब पायलट का मुख्यालय नई दिल्ली और जिम्मेदारी रायपुर में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस को संवारने की। सीधे राजस्थान (Rajasthan) कांग्रेस में उनका दखल आसान नहीं होगा और ज्यादातर वक्त पायलट राजस्थान से बाहर ही रहेंगे। राजस्थान की राजनीति के जानकार निरंजन परिहार (Niranjan Parihar) कहते हैं कि सचिन पायलट (Sachin Pilot) को उनके वास्तविक कद का पद अब जाकर मिला है, लेकिन उनका मन तो राजस्थान की माटी में ही रमता है। पायलट के कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव पद पर पहुंचने के बाद परिहार मानते हैं कि कांग्रेस में अधिकारिक रूप से राष्ट्रीय नेता होने के बाद पायलट के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि वे राजस्थान की लोकल राजनीति में उलझें या नहीं। क्योंकि, राजस्थान में ही रहकर लोगों की सेवा और कांग्रेस (Congress) को मजबूत करने की बात पायलट कई बार कह चुके हैं। परिहार कहते हैं कि नई दिल्ली में महासचिव और छत्तीसगढ़ के प्रभारी होने के बावजूद पायलट विधानसभा सदस्य तो राजस्थान से ही हैं, सो इस नाते राजस्थान से उनका नाता बना रहेगा, लेकिन लोकल लेवल की राजनीति में उनका दखल कितना रहेगा, यह अभी तय नहीं है।
आलाकमान ने समझाया, लेकिन खींचतान करते रहे
सचिन पायलट (Sachin Pilot) को राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की तरह ही राजनीति की लंबी रेस का खिलाड़ी माना जाता रहा है। गहलोत राजस्थान (Rajasthan) में कांग्रेस व बीजेपी दोनों पार्टियों के किसी भी नेता के मुकाबले सबसे बड़े नेता हैं और पायलट कांग्रेस (Congress) में तेजी से पकड़ बनानेवाले नेता। गहलोत को अखित भारतीय कांग्रेस कमेटी की लोकसभा चुनाव नेशनल अलाइंस कमेटी में सदस्य बनाया गया है, तो पायलट को महासचिव। राजनीतिक विश्लेषक संदीप सोनवलकर के मुताबिक राजस्थान में जब कांग्रेस की सरकार थी, तो लगातार 5 साल तक मुख्यमंत्री गहलोत को लेकर पायलट अपनी खींचतान चलाते रहे। पार्टी आलाकमान ने दोनों नेताओं को कई बार दिल्ली बुलाकर खूब समझाया, लेकिन दोनों ही नेता आलाकमान की खींची हुई लकीर पर नहीं चल पाए और खींचतान इस तरह बढ़ी कि पार्टी राजस्थान में विधानसभा का चुनाव हार गई। अब दोनों को जिम्मेदारी तो देनी ही थी, सो दे दी गई। यह एक सवाल है कि पायलट को पार्टी महासचिव और प्रभारी बना दिया गया है, तो तय है कि वे न तो प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते और न ही विपक्ष के नेता। तो क्या इसमें अशोक गहलोत भी जादूगरी है
क्या राजस्थान से विदाई सोची समझी रणनीति?
अब राजस्थान से सचिन पायलट Sachin Pilot) के रुखसत हो जाने के बाद अब सवाल उठ रहा है कि राज्य में उनके नेतृत्व में कांग्रेस (Congress) मजबूत नहीं होगी तो 5 साल बाद, जब सरकार बदलने का जो सपना कांग्रेस देख रही है, उसका प्रदेश अध्यक्ष कौन बनेगा? या गोविंद सिंड डोटासरा पद पर बने ही रहेंगे? और डोटासरा ही रहेंगे, तो पायलट को लिए कितनी जगह बचेगी? फिर विधानसभा में विपक्ष का नेता कौन बनेगा? और जो बनेगा, वो 5 साल तक लगातार काम करते रहने से प्रदेश में वो पायलट से ज्यादा बड़ा नहीं बन जाएगा? और सवाल यह भी है कि अभी तो अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) में दम बहुत बाकी है, कांग्रेस चुनाव हारी है, लेकिन गहलोत हिम्मत नहीं हारे। मैदान छोड़कर जाना उनकी राजनीति का हिस्सा नहीं है और दुश्मन को पूरी तरह से ठिकाने लगाकर ही दम लेना उनको सुहाता है। ऐसे में पायलट के दिल्ली में महासचिव बनने और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनने को कुछ लोग राजस्थान (Rajasthan) में उनकी राजनीतिक का पराभव मान रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि पायलट का गुर्जरों का एकछत्र नेता साबित हो जाने का उनको जो नुकसान हुआ है, वह तो झेलना ही होगा। कहते हैं कि अब, जब कांग्रेस राजस्थान में सत्ता से बाहर है तो पायलट को भी राजस्थान से बाहर भेज दिया गया है। इसी वजह से इसे पायलट की राजस्थान से विदाई को कांग्रेस के किसी बड़े नेता की सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। लेकिन यह कोई बड़ा नेता कौन हो सकता है, इसी के अर्थ तलाशे जा रहे हैं।
-हरि सिंह